बोडो समुदाय की ये आदिवासी महिलाएं अपने हुनर से जीत रही हैं दिल, पाक कौशल से बन गयी हैं सबके लिए मिसाल.....

असम के मानस नेशनल पार्क के आसपास के गांवों में रहने वाली महिलाएं अपने परिवार के लिए कमाने के लिए अपने पाक कौशल का इस्तेमाल कर रही हैं. ये महिलाएं मानस नेशनल पार्क में आने वाले पर्यटकों को बोडो व्यंजन पेश कर अपना घर चला रही हैं. गुंगज़ेमा किचन द्वारा जो बोडो थाली परोसी जाती है उसमें लगभग 7-8 आइटम होते हैं और इसकी कीमत 500 रुपये होती है.

प्रतीकात्मक तस्वीर
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 15 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 5:08 PM IST
  • विभाग ने बांसबारी एंटी-पोचिंग कैंप में जगह दिलवाने में की आदिवासी महिलाओं की मदद
  • बोडो महिलाएं अपने व्यंजनों को सबसे अच्छी तरह से जानती हैं और उन्हें खाना पकाने के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती
  • शुरुआत में कोई मदद न होने के कारण ये प्रयास विफल हो गया था

आदिवासी महिलाएं अपनी मेहनत के लिए जानी जाती हैं. ज्यादातर जगहों पर आदिवासी महिलाओं को ही घर चलाते हुए देखा जाता है. ऐसे ही आज बोडो समुदाय की महिलाओं का सफर दूसरों के लिए मिसाल बन गया है. असम के मानस नेशनल पार्क के आसपास के गांवों में रहने वाली ये आदिवासी महिलाएं अपने परिवार के लिए कमाने के लिए अपने पाक कौशल का इस्तेमाल कर रही हैं. ये महिलाएं मानस नेशनल पार्क में आने वाले पर्यटकों को बोडो व्यंजन पेश कर अपना घर चला रही हैं.

ऐसे हुई सफर की शुरुआत….  

बांसबारी रेंज और उसके आसपास की इन महिलाओं ने मानस नेशनल पार्क में आने वाले पर्यटकों को बोडो व्यंजन पेश किये और अपने पारंपरिक पाक कौशल का इस्तेमाल किया. आपको बता दें , ये पार्क एक सींग वाले राइनो और रॉयल बंगाल टाइगर के लिए जाना जाता है. हालांकि शुरुआत में कोई मदद न होने के कारण ये प्रयास विफल हो गया था. 

एक कुलिनरी आंत्रप्रेन्योर मिताली जी दत्ता को जब इन महिलाओं के बारे में पता चला तो उन्होंने इनकी मदद करने का मन बनाया. आज मिताली ने इन आदिवासी महिलाओं को विश्व वन्यजीव कोष (WWF) के साथ मिलकर कुशल बनाने और उन्हें बाजार मुहैया करवाने में मदद कर रही हैं.   

वह कहती हैं, "जब मुझे मानस पार्क के लिए बताया गया तब मैं पहले से ही काजीरंगा नेशनल पार्क में एक ऐसे ही प्रोजेक्ट में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साथ काम कर रही थी. मैंने 2017 में उनके साथ काम करना शुरू किया और ग्राहकों के सामने कोई भी डिश कैसे परोसी और पेश की जाए, इस बारे में सुझाव देना शुरू किया. 

खाना पकाने के लिए नहीं दी जाती कोई ट्रेनिंग

 

मिताली आगे बताती हैं कि बोडो महिलाएं अपने व्यंजनों को सबसे अच्छी तरह से जानती हैं और उन्हें खाना पकाने के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती  है, लेकिन कितना परोसा जाना चाहिए, प्लेटों की व्यवस्था कैसे की जानी चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे एक स्थायी व्यवसाय मॉडल कैसे बनाया जाए ये सभी चीजें इन महिलाओं को सिखाई जा रही हैं. 

वह कहती हैं, "वन विभाग ने बांसबारी एंटी-पोचिंग कैंप में जगह दिलवाने में हमारी मदद की. वहां अलग अलग ग्रामीण लोग आते हैं और छोटे-छोटे फ़ूड स्टॉल लगाते हैं. कोई वित्तीय सहायता न होने के कारण शुरुआत में साल 2018-19 में, ये मॉडल विफल रहा. लेकिन आज यह जोरो-शोरों से चल रहा है.”

आदिवासी महिलाओं ने की गुंगजेमा किचन की स्थापना

पीटीआई के अनुसार, इन महिलाओं ने गुंगजेमा किचन नाम की स्थापना की. शुरुआत में मानस स्प्रिंग फेस्टिवल के दौरान पारंपरिक और प्रामाणिक बोडो भोजन और सांस्कृतिक प्रदर्शनों को प्रदर्शित किया गया. जहां गुंगज़ेमा किचन टीम ने आदिवासी महिलाओं के कौशल को बेहतर बनाने पर काम किया, वहीं मिताली दत्ता ने अपने स्वयं के स्थापित ब्रांड 'फूडसूत्र बाय मिताली' की मदद से बाहरी दुनिया में उनके ऑनलाइन प्रचार का ध्यान रखा.

एक थाली की कीमत है 500 रुपये 

गुंगज़ेमा किचन द्वारा जो बोडो थाली परोसी जाती है उसमें  लगभग 7-8 आइटम होते हैं और इसकी कीमत 500 रुपये होती है. किचन की सदस्य, शर्मिला कहती हैं, “जब पर्यटक हमारे भोजन का सैंपल लेते हैं, तो वे आमतौर पर हमें बताते हैं कि उन्होंने हमारी थाली में उन्हें क्या पसंद आया. यह हमें प्रोत्साहित करता है और हमें खुश करता है!"

ये सीजन रहा किचन के लिए काफी सफल 

मिताली दत्ता ने बताया कि 2020-21 पर्यटन सीजन काफी सफल रहा और यात्रियों ने बोडो खाने को खूब पसंद किया. महिलाओं द्वारा ऑफ-सीजन में अनाज, सब्जियों की खेती और मुर्गी पालन किया जाता है. अधिकांश परिवारों के अपने किचन गार्डन हैं. कुछ परिवार अपने उत्पादों की बुनाई और बिक्री में भी लगे हुए हैं.

 

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