उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले में मौजूद क्यामपुर छावनी के लोगों ने यह साबित कर दिया है कि अगर ठान लो तो कोई काम नामुमकिन नहीं है. यह देश के उन गांवों में से है जहां या तो विकास पहुंचा नहीं, और अगर पहुंचा तो टुकड़ों में. इस गांव के लोगों ने प्रशासन की अनदेखी से तंग आकर अपने लिए मगाई नदी पर पुल बनाने का फैसला किया है. ताकि ये बाकी दुनिया से जुड़ सकें.
पतली नदी, गहरी खाई
मगाई नदी महज़ 70 फुट चौड़ी है. लेकिन इसके ऊपर एक पुल न होने के कारण यह सिर्फ क्यामपुर छावनी के 3500 लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि आसपास के 50 गांवों के 70,000 लोगों के लिए परेशानी का सबब थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि पुल न होने की वजह से ग्रामीणों को सिर्फ 10 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए 40 किलोमीटर का लंबा सफर करना होता था.
ग्रामीणों ने कच्चा पुल बनाकर अस्पताल या सरकारी मुख्यालयों तक जाने की कोशिश भी की लेकिन इस नदी पर कई हादसे हो जाया करते थे. आखिर क्यामपुर छावनी के लोगों ने अपने गांव के विकास को अपने हाथ में लेने का फैसला किया.
फिर पूर्व सैनिक ने किया पुल बनाने का फैसला
ग्राम प्रधान शशिकला उपाध्याय और कासिमाबाद के ब्लॉक प्रमुख मनोज गुप्ता ने जून 2022 में इस नदी पर पुल बनाने का फैसला किया. जैसे ही गांव वालों के दिल में उम्मीद जगी, मनरेगा के तहत जारी इस प्रोजेक्ट को प्रशासनिक अड़चनों के कारण रोकना पड़ा. यह प्रोजेक्ट आखिरकार पिछले साल शुरू हुआ.
जनवरी 2024 में जब भारतीय सेना के इंजीनियर कॉर्प्स के रविंद्र यादव रिटायरमेंट के बाद अपने पैतृक गांव क्यामपुर लौटे तो उन्हें इस गांव का हाल देखकर बेहद दुख हुआ. एक इंजीनियर के तौर पर उन्होंने बीते तीन दशकों में देशभर में कई पुल बनाए थे. जब उन्होंने देखा कि उनके ही गांव में पुल नहीं है, तो उन्होंने यह जिम्मा अपने कंधों पर लिया.
रविंद्र ने अपने रिटायरमेंट फंड से 10 लाख रुपए इस ब्रिज के लिए दिए. उन्होंने अपने अनुभव के दम पर इस पुल के निर्माण कार्य की देखरेख करने का भी फैसला लिया. टाइम्स की रिपोर्ट रविंद्र के भाई कलिका के हवाले से बताती है कि रविंद्र के इस कदम ने ग्रामीणों को हौसले से भर दिया. उन्होंने इस काम में रविंद्र का साथ देने का फैसला किया.
क्यामपुर के रहने वाले राम नरेश राजभर कहते हैं, "लोगों से जो बन पड़ा, उन्होंने दिया. कई लोगों ने 100 रुपए जितनी छोटी मदद भी की. जिनके पास देने के लिए पैसे नहीं थे उन्होंने अपनी मज़दूरी से मदद की." रविंद्र ने अपनी जान-पहचान के आर्किटेक्ट और इंजीनियरों की मदद से 105 फीट लंबे इस पुल का डिज़ाइन तैयार किया.
आखिर 25 फरवरी 2024 को इलाहबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव की मौजूदगी में इस पुल का निर्माण शुरू हुआ. क्यामपुर के लोगों की कोशिश ने मोहम्मदाबाद के विधायक सुहैब अंसारी का ध्यान भी आकर्षित किया. सुहैब ने इस पुल के लिए एक लाख रुपए दान किए हैं और रात में निर्माण कार्य के लिए लाइट्स भी दी हैं.
गांव वालों को बस एक शिकायत
सुहैब अंसारी का कहना है कि उनके पिता ने अपनी विधायकी के दौर में राज्य सरकार को इस पुल की फाइल दी थी. उन्होंने खुद भी 2022 में विधायक बनने पर यह मुद्दा उठाया था. लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि पुल 'राजनीतिक इच्छा' की कमी की वजह से नहीं बना. रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इस पुल में 65 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं, जबकि 30 लाख रुपयों की अब भी ज़रूरत है.
अब जिला प्रशासन ने भी निर्माण कार्य की सनद लेते हुए लोगों से काम रोकने के लिए कहा है. जिला मजिस्ट्रेट आर्यका अखौरी ने कहा है कि इस काम में विशेषज्ञ शामिल नहीं थे, इसलिए यह सुरक्षित नहीं है. उनका कहना है कि गांव वालों को और इंतज़ार करना चाहिए था. हालांकि वे 58 साल इंतज़ार कर चुके हैं.