Mother of Peacocks: खेत में अंडे दे गई मोरनी तो दो मोरों की 'मां' बना सहारनपुर का यह लड़का, खाने-पीने से लेकर रहना तक साथ

कई अन्य प्रजातियों की तरह मोर भी एक इंसान को 'इंप्रिंट' कर सकते हैं. यानी अगर कोई इंसान उनकी देखरेख करे तो वह उसे अपनी मां के तौर पर पहचान सकते हैं. इन दो मोरनियों ने अरुण को इसी तरह इंप्रिंट कर लिया है.

अरुण पिछले छह महीनों से इन मोरनियों की देखभाल कर रहे हैं.
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 19 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST

इंसानों और जानवरों के बीच रिश्ते तबसे मधुर रहे हैं, जब सभ्यता भी नहीं थी. इन मार्मिक रिश्तों की बानगी साहित्य में अलग-अलग रूपों में देखने को मिलती रही है. उत्तर प्रदेश में सहारनपुर जिले के एक छोटे से गांव में इस रिश्ते की नई मिसाल देखने को मिल रही है. यहां एक शख्स के खेत में जब एक मोरनी अपने दो बच्चों को छोड़ गई, तो उसने खुद इन्हें पालने का फैसला किया. 

दो मोरनियों की 'मां' बने अरुण
कई अन्य प्रजातियों की तरह मोर भी एक इंसान को 'इंप्रिंट' कर सकते हैं. यानी अगर जन्म से एक शख्स उनके साथ रहे और उनकी देखरेख करे  तो वह उसे अपनी मां या केयरटेकर मान सकते हैं. सहारनपुर के जफरपुर रनयाली गांव के रहने वाले 25 साल के अरुण कुमार छह महीने पहले जन्मी दो मोरनियों के लिए इसी तरह 'मां' बन गए हैं. 

दरअसल एक मोरनी उनके खेतों के पास कुछ समय पहले अंडे दे गई थी. उन अंडों में से जब बच्चे निकले तो दो मोरनियां अरुण के पास ही रह गईं. अरुण ने उनकी देखभाल की. देखते ही देखते दोनों बच्चों के साथ अरुण का घरेलू रिश्ता बन गया है. अरुण की उनसे इतनी घनिष्टता है कि ये दोनों मोरनियां उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं. 
 

समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ एक खास बातचीत में अरुण बताते हैं, "ये मोर हमारे खेतों के पास अंडे दे रहे थे. उनमें से दो बच्चे हमारे पास रह गए थे. और बाकी निकल गए थे. यह छह महीने पहले की बात है. अब दोनों हमारे पास ही रहती हैं. यह दोस्ती ऐसी है जैसे हमारा परिवार ही हो. जैसे कि परिवार में और सदस्य हैं, इनके साथ भी वैसा ही रिश्ता है. ये दो बच्चे हमारे लिए परिवार जैसे ही हैं." 

परिवार संग खाना खाती हैं मोरनियां
अरुण छह महीने से रोजाना उन्हें तीनों वक्त खाना खिला रहे हैं. रोटी-चावल से लेकर खीरे और मूली तक अरुण की थाली में जो भी आता है, वह दोनों मोरनियों का खाना बनता है. अरुण बताते हैं, "हमारा खाने का टाइम होता है, तभी ये खाना खाते हैं. वरना घूमते-फिरते रहते हैं. दोपहर के वक्त साथ बैठकर दोपहर का खाना खाएंगे और शाम का वक्त होगा तो चार बजे इन्हें खाना चाहिए." 

अरुण कहते हैं, ये वक्त होते ही अपने आप आ जाते हैं. खाने में रोटी हो गई, चावल हो गया और घासफूस जो अलवई होती है, उसे खा लेते हैं. सब जगह टाइम पर जैसे आगे खीरा चलेगा. मूली के टाइम पर मूली खा लेंगे. वैसे अपने आप खा लेते हैं. ये खाना हमारे साथ में ही खाते हैं." अरुण कुमार और मोरनियों के रिश्ते बताते हैं कि इंसान चाहे तो जानवरों के साथ प्रेम से रह सकता है. इनकी दोस्ती ना सिर्फ दुर्लभ है, बल्कि प्रेरक भी है. 

Read more!

RECOMMENDED