Base Editing Therapy: चमत्कार! ब्लड कैंसर से जूझ रही 13 साल की लड़की ने ल्यूकेमिया को दी मात

कैंसर का नाम सुनकर ही जहन में मौत का डर उभर आता है. अबतक यही कहा जाता रहा है कि, कैंसर जिसे एक बार हो गया वो जल्दी पूरी तरह से ठीक नहीं होता लेकिन लंदन के डॉक्टरों ने 28 दिन में कैंसर को मात देकर कैंसर मरीजों को नई उम्मीद दिलाई है.

Teenage girl
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 12 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:15 PM IST
  • एलिसा का कैंसर लाइलाज माना जा रहा था.
  • बेस एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया.

ब्रिटेन के डॉक्टरों ने 13 साल की लड़की में मौजूद ल्यूकेमिया कैंसर को 28 दिन में खत्म कर दिया है. एलिसा नाम की 13 वर्षीय लड़की को 2021 में टी सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया का पता चला था. इसके बाद उसे लंदन के ग्रेट आरमंड स्ट्रीट हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रेन (जीओएसएच) भर्ती किया गया. जहां एडिटेड टी-सेल द्वारा एलिसा का इलाज किया गया. एलिसा इस थैरेपी में नामांकित होने वाली पहली टीजएन मरीज थीं. यह कैंसर इतना खतरनाक था कि कीमोथैरेपी और बोन-मैरो ट्रांसप्लांट की मदद से भी इसे निकाला नहीं जा सका. 

एडिटेड टी-सेल से किया गया इलाज

13 वर्षीय बच्ची पर स्वस्थ वॉलेंटियर से आनुवंशिक रूप से इंजीनियर प्रतिरक्षा कोशिकाओं का उपयोग किया गया. उसे बेस एडिटेड टी-सेल दिए गए . 28 दिनों में एलिसा के शरीर से कैंसर खत्म हो गया था.एलिसा का इलाज बेस एडिटिंग (Base Editing) नामक तकनीक के जरिए किया गया. जिसका आविष्कार केवल 6 साल पहले किया गया था. ये थेरेपी उन मरीजों के लिए वरदान साबित होगी जिनमें कैंसर के इलाज का कोई दूसरा तरीका काम नहीं आता. डॉक्टरों की टीम ने करीब छह महीने तक एलिसा पर नजर रखी. अब वह पूरी तरह से स्वस्थ है.

बच्चों में होने वाला आम कैंसर

लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) बच्चों में सबसे आम प्रकार का कैंसर है और यह प्रतिरक्षा प्रणाली में कोशिकाओं को प्रभावित करता है, जिन्हें बी कोशिकाओं और टी कोशिकाओं के रूप में जाना जाता है. ये वायरस से लड़ते हैं और उनकी रक्षा करते हैं. एलिसा पहली मरीज थी जिसे बेस-एडिटेड टी सेल दिए गए थे, लंदन के शोधकर्ताओं ने 2015 में बी-सेल ल्यूकेमिया के इलाज के लिए जीनोम-संपादित टी कोशिकाओं के उपयोग को विकसित करने में मदद की थी.

हर साल देश और दुनिया में कैंसर से लाखों मौत होती हैं. जर्नल ऑफ ग्लोबल ऑन्कोलॉजी के मुताबिक भारत में हर 10 कैंसर मरीजों में से 7 की मौत हो जाती है जबकि विकसित देशों में यह संख्या 3 या 4 है. पुरुषों में कैंसर के सबसे ज्यादा मामले मुंह और फेफड़ों के हैं, वहीं महिलाओं में सबसे ज्यादा मामले ब्रेस्ट और गर्भाशय के कैंसर के सामने आते हैं.

 

 

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