कोविड का टीका लेने वाले लोगों में जान का जोखिम 40% तक कम, पोस्ट कोविड समस्याओं के कारण 6.5 फीसदी मरीजों ने गंवाई जान

रिसर्च के मुताबिक मध्यम से गंभीर कोविड-19 संक्रमण के साथ अस्पताल में भर्ती कराए गए लोगों में से 6.5% की मौत एक साल के अंदर ही हो गई. ये निष्कर्ष 31 अस्पतालों के 14,419 मरीजों के डेटा पर आधारित हैं, जिनका एक साल तक फोन पर फॉलो-अप किया गया था. 

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 22 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 1:22 PM IST
  • डिस्चार्ज के एक साल के अंदर 6.5 फीसदी मरीजों की चली गई जान
  • टीकाकरण ने बचाई 40 फीसदी मरीजों की जान

कोविड ने दुनियाभर में हजारों लाखों लोगों की जान ली. संक्रमण की चपेट में आने के बाद जिन लोगों को गंभीर हालत में भर्ती किया गया उनमें संक्रमण का असर लंबे समय तक देखने को मिला. कोरोना से संक्रमित होने के एक साल के अंदर करीब 6.5 फीसदी कोविड मरीजों की मौत हो गई थी. आईसीएमआर की एक स्टडी में ये हैरान करने वाली जानकारी सामने आई है.

17.1 फीसदी लोगों ने पोस्ट कोविड का अनुभव किया

रिसर्च के मुताबिक मध्यम से गंभीर कोविड-19 संक्रमण के साथ अस्पताल में भर्ती कराए गए लोगों में से 6.5% की मौत एक साल के अंदर ही हो गई. ये निष्कर्ष 31 अस्पतालों के 14,419 मरीजों के डेटा पर आधारित हैं, जिनका एक साल तक फोन पर फॉलो-अप किया गया था. रिसर्च में बताया गया है कि सितंबर 2020 से अस्पताल में भर्ती हुए लोगों में से 17.1% ने पोस्ट-कोविड का अनुभव किया.

पुरुषों में मौत का जोखिम अधिक

महिलाओं की तुलना में पुरुषों में मौत का आंकड़ा अधिक था. जिन मरीजों की मौत हुई उनको लंग्स, हार्ट और लिवर की गंभीर बीमारियां थीं. इन मरीजों को पोस्ट कोविड समस्याएं भी थी. कोविड से ठीक होने के बाद भी लोगों को सांस लेने में परेशानी, ध्यान लगाने में परेशानी और ब्रेन फॉग जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. करीब 74 फीसदी कोविड मरीजों को बीमारियां थीं.

टीका लेने से जान का जोखिम 40% तक कम

इसी विश्लेषण में यह भी पता चला कि अस्पताल से छुट्टी के बाद जिन लोगों ने कोरोना का टीका लिया उनमें जान का जोखिम 40% तक कम देखने को मिला है. यह अध्ययन मध्यम से गंभीर कोविड-19 से पीड़ित अस्पताल में भर्ती लोगों की मृत्यु दर से संबंधित है. आईसीएमआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा यह 6.5% मृत्यु दर उन लोगों पर लागू नहीं होती है जिन्हें श्वसन संक्रमण था या है. इन निष्कर्षों को उन मामलों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता जिनकी रिपोर्ट नहीं की गई. 18-45 वर्ष के लोगों में अचानक होने वाली मौतों से जुड़े कारणों का पता लगाने के लिए अध्ययन जारी है.

 

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