गंजेपन के शिकार लोगों के लिए एक गुड न्यूज है. एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि गठिया के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा गंजेपन को कंट्रोल करने में मदद कर सकती है. रूमेटाइड अर्थराइटिस और एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के इलाज के लिए आमतौर पर टोफैसिटिनिब दवा का इस्तेमाल किया जाता है. इस दवा से ऑटोइम्यून डिसऑर्डर के इलाज में मदद मिली है. इस गंजेपन में अचानक गोलाकार पैच में बालों का झड़ना शुरू होता है.
स्टडी में क्या पाया गया-
ये स्टडी पिछले हफ्ते ऑनलाइन जर्नल इंडियन डर्मेटोलॉजी में छपी थी. इस स्टडी के मुताबिक एलोपेसिया एरीटा के 94.1 फीसदी मरीजों पर इस दवा के सकारात्मक नतीजे आए. इस स्टडी में 23.5 फीसदी लोगों के पूरे बाल उग आए. इन लोगों पर 8 महीने तक टोफैसिटिनिब दवा का इस्तेमाल किया गया. इस दौरान मरीजों की औसत उम्र 17.6 साल थी. इन मरीजों में 5 साल से 34 साल तक के लोग शामिल थे. इसमें पुरुष और महिला का अनुपात 8:1 था.
इस स्टडी के मुख्य ऑथर आरएमएल अस्पताल के डर्मेटोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉ. कबीर सरदाना थे. उन्होंने कहा कि एलोपेसिया यूनिवर्सलिस के साथ एलोपेसिया एरीटा के गंभीर मामले में टोफैसिटिनिब को सेफ और प्रभावी पाया गया है. हालांकि ये दवा 10 साल से अधिक समय से गंजेपन से पीड़ित मरीजों में अच्छे नतीजे नहीं दिए हैं.
बुजुर्ग और दिल के मरीजों के लिए दवा ठीक नहीं-
डॉ. सरदाना के मुताबिक यह एक सुरक्षित दवा है. इसके दुष्प्रभाव सिर्फ बुजुर्ग लोगों और दिल की समस्याओं वाले लोगों में देखा गया है. उनका कहना है कि ऑटो इम्यून डिसऑर्डर दोबारा हो जाते हैं, इसलिए जरूरत पड़ने पर इसे फिर से लेने की जरूरत होती है. इसका दूसरा विकल्प ओरल स्टेरॉयड था, जिसके कई अधिक दुष्प्रभाव हैं और इसका दुरुपयोग किया जाता है.
इस स्टडी का प्राइमरी मकसद एलोपेसिया टूल स्कोर की गंभीरता में लेटेस्ट परसेंटेज चेंज का इस्तेमाल करके एए, एटी और एयू मरीजों में टोफैसिटिनिब मोनोथेरेपी के लिए पूरे रिस्पॉन्स का आंकलन करना था. आमतौर पर क्निलनिकल ट्रायल्स में इसे सिर के बालों की मात्रा निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. डॉ. सरदाना का कहना है कि इस स्टडी में टोफैसिटिनिब मोनोथेरेपी से इलाज किए गए एए, एटी और एयू वाले 17 मरीजों के इंस्टीट्यूशनल रिकॉर्ड का विश्लेषण किया गया था.
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