केरल के त्रिशूर जिले में अफ्रीकन स्वाइन फीवर के कई मामले मिले हैं. यह सूअरों के बीच फैलने वाली बीमारी है. इसे लेकर पूरे जिले में अलर्ट जारी कर दिया गया है. संक्रमित इलाकों में सख्त निगरानी की जा रही है. इसके अलावा डिसइन्फेक्शन के भी कड़े इंतजाम भी किए गए हैं.
प्रभावित क्षेत्रों से सूअर के मांस और चारे की आवाजाही पर अगले आदेश तक प्रतिबंध लगा दिया गया है. पशुपालन विभाग इस बात की जांच करेगा कि पिछले दो महीनों में प्रभावित फार्म से सूअरों को दूसरे फार्मों में ले जाया गया था या नहीं.
इस बीच राहत की बात ये है कि केरल में फैल रहा अफ्रीकन स्वाइन फीवर (एएसएफ) जूनोटिक नहीं है और यह इंसानों में नहीं फैल सकता है. इससे पहले 2020 में असम में स्वाइन फ्लू से 2900 सूअरों को जान चली गई थी.
क्या आपको इसे लेकर परेशान होना चाहिए?
डॉक्टरों का कहना है कि अफ्रीकी स्वाइन फीवर एक वायरल बीमारी है जो पोर्स इंडस्ट्री को प्रभावित कर सकती है. चीन में 2018 में इसी स्वाइन फ्लू के कारण सूअरों को मार दिया गया, जिससे मांस की भारी कमी हुई, किसानों का मुनाफा कम हुआ और उपभोक्ताओं के लिए कीमतों में वृद्धि हुई. सूअर का मीट प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत होता है. ऐसे में अगर आप कोई भी ऐसी चीज खा रहे हैं जिसका संबंध पशुओं से है तो यह हमें भी बीमार कर सकता है.
टिक्स के जरिए फैलती है ये बीमारी
अफ्रीकन स्वाइन फ्लू टिक्स के जरिए फैलता है. इसलिए इसे रोकना या कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है. इंसान अपने जूतों या कपड़ों पर वायरस ले जा सकते हैं. अगर आप एक देश से दूसरे देश में यात्रा करते हैं, तो यह बहुत बड़ी महामारी को जन्म दे सकता है. यह बीमारी झुंडों में तेजी से फैलती है क्योंकि वायरस वाहनों या मशीनों जैसी सतहों पर कई दिनों तक, कच्चे मांस में हफ्तों तक और जमे हुए मांस में महीनों तक जीवित रह सकता है. इसकी ऊष्मायन (Incubation Period) अवधि 5-21 दिनों की होती है.
सावधानी ही बचाव है
कई बार संक्रमित जानवर में इसके लक्षण भी दिखाई नहीं देते हैं. अफ्रीकी स्वाइन फीवर के लिए कोई प्रभावी उपचार या टीका नहीं है. इस बीमारी कंट्रोल करना बेहद मुश्किल है. इसलिए जरूरी है सावधानी बरती जाए. किसी फार्म हाउस में बीमार दिखने वाले किसी भी जानवर को न पकड़ें. खाना पकाने से पहले सभी कच्चे प्रोडक्ट्स को अच्छे से धोएं.