ब्लड कैंसर के मरीजों में कोविड-19 बूस्टर डोज से बन रही हैं एंटीबॉडीज! अमेरिकी रिसर्च में हुआ खुलासा   

हम सभी जानते हैं कि ल्यूकेमिया, लिम्फोमा, और मल्टीपल मायलोमा सहित ब्लड कैंसर वाले मरीजों का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. इसकी वजह से ये नुकसान होता है कि इन मरीजों को कोविड-19 इन्फेक्शन का ज्यादा खतरा होता है. इनसे कई मौतें भी हो जाती हैं.

Blood Cancer
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 5:25 PM IST
  • कैंसर के कारण कमजोर हो जाता है इम्यून सिस्टम 
  • एंटीबॉडी वाले मरीजों को ज्यादा खतरा नहीं 

जैसे जैसे कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं वैसे वैसे डॉक्टर्स और वैज्ञानिक इसके प्रभाव को कम करने और इसे जड़ से खत्म करने  लिए और अधिक काम कर रहे हैं. अब एक नई रिसर्च ब्लड कैंसर के मरीजों पर की गई है. इसके मुताबिक, ज्यादातर ब्लड कैंसर वाले मरीजों में कोविड-19 वैक्सीन की बूस्टर डोज लेने के बाद इम्यूनिटी बढ़ी है. 

कैंसर के कारण कमजोर हो जाता है इम्यून सिस्टम 

बता दें, ल्यूकेमिया, लिम्फोमा, और मल्टीपल मायलोमा सहित ब्लड कैंसर वाले लोगों में उनकी बीमारी और लगातार ट्रीटमेंट और दवाइयां खाने की वजह से इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. इससे ये नुकसान होता है कि उन्हें गंभीर कोविड-19 इन्फेक्टिन का खतरा होता है और वैक्सीन भी उनपर ज्यादा असर नहीं करती है.  दरअसल, ये स्टडी CANCER जर्नल में पब्लिश हुई है. 

क्या पाया रिसर्च में?

आपको बता दें, रिसर्च में पाया गया कि कोविड-19 वैक्सीनेशन के बाद हेमटोलोजिक मैलिग्नेंसी वाले आधे से भी कम रोगियों ने बहुत कम नाममात्र के लिए एंटीबॉडी बनीं. लेकिन 56 प्रतिशत "नॉनरेस्पॉन्डर्स" में बूस्टर डोज लेने के बाद भरपूर एंटीबॉडी नजर आयीं. अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी के थॉमस ने कहा, "हमारी रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों की बॉडी में कोविड-19 वैक्सीन लेने को बाद असर दिखाई नहीं दिया है उन्होंने बूस्टर डोज लेने के बाद बेहतर तरीके से रिस्पॉन्ड किया है और उनके ऊपर असर भी हुआ है.”

एंटीबॉडी वाले मरीजों को ज्यादा खतरा नहीं 

अमेरिका में ब्राउन यूनिवर्सिटी के ही एक प्रोफेसर कहते हैं, "इसके अलावा, जब हमने रिजल्ट को देखा, तो हमने पाया कि हमने कोविड​​​​-19 से होने वाली मौतों की समीक्षा की. इसमें हमने पाया कि केवल उन्हीं मरीजों की मौत हुई है जिनमें एंटीबॉडीज नहीं बनी थीं. और इनमें ऐसा कोई मरीज नहीं था जिसे एंटीबॉडी थेरेपी दी गई थी.” यानि जिन  ब्लड कैंसर के मरीजों में एंटीबॉडीज बनीं हुई हैं उन्हें कोविड-19 से ज्यादा खतरा नहीं है.    

कैसे की गई रिसर्च?

गौरतलब है कि रिसर्च में हेमटोलोगिक मैलिग्नेंसी वाले 378 रोगियों  को शामिल किया गया.  इनमें  कोविड-19 बूस्टर डोज देने के बाद जो एंटीबॉडीज बनीं उनके बारे में जांच की गई. रिसर्च में पाया गया कि कोविड-19 वैक्सीन दिए जाने के बाद 181 रोगियों (48 प्रतिशत) के ब्लड में एंटी-सार्स-कोव एंटीबॉडी का पता चला है.  

इसके बाद फरवरी 2022 के आखिर में 33 रोगियों (8.8 प्रतिशत) को कोरोना वायरस इन्फेक्शन हो गया जिसमें से तीन मरीजों (0.8 प्रतिशत) की मौत हो गई. हालांकि, टीकाकरण के बाद एंटीबॉडी रेस्पॉन्स और कोविड-19 इन्फेक्शन की घटनाओं के बीच कोई संबंध नहीं था, लेकिन एंटीबॉडी वाले किसी भी रोगी की कोरोना वायरस से मौत नहीं हुई. 

शोधकर्ताओं के मुताबिक, "इससे हमें इन रोगियों में एंटीबॉडी के लेवल की जांच करने और एंटीबॉडी थेरेपी के महत्व का पता चलता है. इसकी मदद से कई जानें बचाई जा सकती हैं. हालांकि, बड़े स्तर पर इसपर और रिसर्च होनी जरूरी है.  
 

 

Read more!

RECOMMENDED