मेडिकल साइंस का चमत्कार, बिना सिर खोले कान के पीछे से होगी ब्रेन ट्यूमर सर्जरी

लखनऊ के पीजीआई अस्पताल के न्यूरो विभाग ने ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी में नई तकनीक से सर्जरी करने की विधि विकसित की है. जिसमें अब सिर खोलकर ट्यूमर का ऑपरेशन नहीं करना पड़ेगा.

ब्रेन ट्यूमर सर्जरी
gnttv.com
  • लखनऊ ,
  • 21 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 1:44 PM IST
  • कान के पीछे से हो सकती है ब्रेन ट्यूमर सर्जरी
  • टेंपोरल बोन के पीछे से होती है सर्जरी

मेडिकल साइंस ने आजतक कई चमत्कार किए है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई अस्पताल ने ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी में नई तकनीक से सर्जरी करने की विधि विकसित की है, जिसमें अब सिर खोलकर ट्यूमर का ऑपरेशन नहीं करना पड़ेगा. बल्कि कान के पीछे के रास्ते से स्कल एरिया से करना संभव होता है.

टेंपोरल बोन के पीछे से होती है सर्जरी
पीजीआई अस्पताल के न्यूरो विभाग के न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर अमित केसरी ने बताया कि, "अभी तक सिर्फ सिर को खोलकर ही 
ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन किया जाता था. लेकिन अब कान के पीछे एक टेंपोरल बोन होती है, जिसे मास्टॉयड टेंपोरल बोन कहते हैं. जो स्कल का हिस्सा होती है. इसी कान के पीछे के रास्ते से हम सिर के ट्यूमर तक पहुंचाते हैं और फिर उसे निकालते हैं. कान के रास्ते से छोटे मोटा ट्यूमर तो निकाले जा सकते हैं लेकिन बड़े ब्रेन ट्यूमर नहीं निकाले जा सकता है. क्योंकि कान का छेद छोटा होता है. ऐसे में हम लोग कान के पीछे जो टेंपोरल बोन होता है. उसके रास्ते से ब्रेन ट्यूमर तक पहुंचकर उसे निकालते हैं."

डॉ अमित केसरी ने बताया कि, "ऐसे ऑपरेशनों को करने में 6 घंटे का समय लगता है और अभी तक हमने हमारे विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राजकुमार के नेतृत्व में अब तक आठ से दस ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन इसी विधि से किए जा चुके हैं, जो सफल रहे हैं. डॉक्टर केसरी बताते हैं कि, ऐसे ट्यूमर को एकॉस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर कहते हैं.

क्या है एकॉस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर?
एकॉस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर एक ऐसा ट्यूमर है जो बैलेंस की नर्व्स से निकलता है. इसके आसपास एक हियरिंग नर्व्स होती है. जब यह एकॉस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर निकलता है. तो इसके प्रभाव से बगल में मौजूद हेयरिंग नर्व्स में दबाव आता है. जिसके चलते सुनने की क्षमता कम हो जाती है. जिनको एकॉस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर होता है, उसमें सबसे पहला लक्षण यही होता है कि, उनके अंदर सुनने की क्षमता नहीं रह जाती है. 

किस उम्र में कितनी है ट्यूमर की संभावना
डॉ अमित केसरी आगे बताते हैं कि, जो जेनेटिक सिंड्रोम होता है उसमें यह ट्यूमर 30 साल की उम्र के बाद लोगों में होने लगता है लेकिन जिनके अंदर नॉन जेनेटिक सिंड्रोम होता है उनमें यह थोड़ी देरी से पनपता है और फिर आगे चलकर ट्यूमर का रूप लेता है. डॉ अमित ने यह भी जानकारी दी कि, सभी ट्यूमर का ऑपरेशन नहीं किया जाता है, अगर कोई ट्यूमर हम लोगों ने डिटेक्ट किया और पाया कि, मरीज के कान में सांय-सांय या सीटी की आवाज आ रही है औऱ हल्का-फुल्का सिर दर्द हो रहा है और ट्यूमर छोटा निकलता है तो ऐसे में हम लोग ऐसे टयूमर्स को एमआरआई के जरिए फॉलो करते हैं औऱ फिर गामा नाइफ़ की प्रक्रिया से ट्यूमर को खत्म करते हैं.

क्या है गामा नाइफ अडवांस रेडियोथेरेपी प्रसीजर?
गामा नाइफ अडवांस रेडियोथेरेपी प्रोसीजर है. यह अधिकतर नसों में मौजूद ट्यूमर खासकर ब्रेन ट्यूमर के लिए इस्तेमाल की जाती है. इस रेडियोथेरेपी के माध्यम से रेडिएशन केवल ट्यूमर पर दिया जाता है, जिससे कैंसर सेल के अंदर मौजूद डीएनए नष्ट हो जाते हैं. इस इलाज के बाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में कैंसर जाने का खतरा भी नहीं रहता. पीजीआई न्यूरोलॉजिस्ट डॉ अमित आगे यह भी बताते हैं कि, ब्रेन ट्यूमर को सिर को खोलकर ऑपरेशन करने में रिस्क होता है. वहीं कान के पीछे से मास्टॉयड टेंपोरल बोन के रास्ते से जाकर ब्रेन ट्यूमर सर्जरी करने में रिस्क कम होता है, क्योंकि ऑपरेशन के वक्त हम ब्रेन के हिस्से को कम टच करते हैं और सीधे ट्यूमर तक पहुंच जाते हैं. ऐसे ऑपरेशन करने में दो से तीन लोग रहते हैं,जिसमें न्यूरो सर्जन के साथ न्यूरो ऑटोलॉजिस्ट भी मौजूद होते हैं. 

(सत्यम मिश्रा की रिपोर्ट)

 

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