Breaking the Taboo: हरियाणा के गांव के पूर्व सरपंच ने शुरू किया Menopause Awareness कैंपेन, मर्दों को दे रहे औरतों की सेहत को लेकर क्लासेज  

सुनील जागलान ने GNT डिजिटल को बताया कि जब उन्होंने इस विषय पर रिसर्च शुरू की तो पाया कि 70% पुरुषों को मेनोपॉज के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हालांकि, सुनील ने पहले पीरियड्स पर जागरूकता फैलाने का काम किया और अब वे मेनोपॉज को लेकर पुरुषों को जागरूक कर रहे हैं.

Menopause Classes for Men (Photo Credit: Sunil Jaglan)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 17 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:11 PM IST
  • पुरुषों की बदल रही सोच
  • मेनोपॉज को लेकर चला रहे अभियान  

हरियाणा के जींद जिले के छोटे से गांव बीबीपुर के पूर्व सरपंच सुनील जागलान (Sunil Jaglan) ने महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी एक ऐसी समस्या को लेकर पहल शुरू की है, जिसके बारे में न तो अधिकतर पुरुष जानते हैं और न ही महिलाएं खुलकर चर्चा करती हैं. उन्होंने ‘Menopause Classes for Men’ अभियान की शुरुआत की है. इस अनोखी पहल का उद्देश्य है महिलाओं में मेनोपॉज के दौरान होने वाली शारीरिक और मानसिक समस्याओं के प्रति पुरुषों को जागरूक करना. 

सुनील बताते हैं, “जब मैं छोटा था, तब टीवी पर एक विज्ञापन आता था जिसमें एक लड़की चुपचाप बैठी रहती थी और बाकी लड़कियां उससे पूछती थीं कि क्या हुआ? मैं अपने माता-पिता से पूछता था कि यह विज्ञापन किस बारे में है, लेकिन मुझे कभी कोई जवाब नहीं मिला. उसी समय से मेरे मन में यह जिज्ञासा थी कि आखिर महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी चीजों पर खुलकर बात क्यों नहीं होती.”

वक्त के साथ यह जिज्ञासा एक सामाजिक अभियान का रूप ले चुकी है. सुनील ने पहले पीरियड्स पर जागरूकता फैलाने का काम किया और अब वे मेनोपॉज को लेकर पुरुषों को जागरूक कर रहे हैं.

क्या है मेनोपॉज और क्यों है चर्चा जरूरी?
मेनोपॉज वह अवस्था है जब महिलाओं का मासिक धर्म (पीरियड्स) बंद हो जाता है. यह आमतौर पर 45 से 55 साल की उम्र में होता है. इस दौरान महिलाओं को कई शारीरिक और मानसिक बदलावों का सामना करना पड़ता है, जैसे – हॉर्मोनल इम्बैलेंस, हड्डियों की कमजोरी, डिप्रेशन, नींद की समस्या आदि. 

सुनील कर चुके हैं मेनोपॉज चार्ट जारी (फोटो क्रेडिट-सुनील जागलान)

सुनील GNT डिजिटल को बताते हैं, “जब मैंने इस विषय पर रिसर्च शुरू की, तो पाया कि 70% पुरुषों को मेनोपॉज के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उन्हें यह भी नहीं पता कि इस दौरान महिलाओं को किस तरह की समस्याएं होती हैं.”

चौपाल से यूनिवर्सिटी तक पहुंची पहल
सुनील ने अपने अभियान की शुरुआत हरियाणा के गांवों की चौपालों से की. वे बताते हैं, “जब मैंने पहली बार इस विषय पर बात करनी शुरू की, तो कुछ पुरुष हंसने लगे और कुछ उठकर चले गए. लेकिन मैंने हार नहीं मानी. धीरे-धीरे लोग इस मुद्दे को गंभीरता से लेने लगे. अब तक मैंने 160 से ज्यादा गांवों और कुछ यूनिवर्सिटी में मेनोपॉज क्लासेज ली हैं.”

यह अभियान सिर्फ हरियाणा तक सीमित नहीं है. सुनील ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई गांवों और शहरों में भी इस विषय पर जागरूकता फैलाई है.

पुरुषों की बदलती सोच
सुनील बताते हैं कि उनकी क्लासेज में पुरुषों की प्रतिक्रियाएं अलग-अलग होती हैं. कुछ पुरुष कहते हैं कि मेनोपॉज के बाद उन्हें सैनिटरी पैड्स खरीदने की जरूरत नहीं होती, जिससे पैसे बचते हैं. कुछ का मानना है कि मेनोपॉज के बाद महिलाओं को सेक्स के दौरान प्रोटेक्शन की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन जब उन्हें बताया जाता है कि मेनोपॉज के दौरान महिलाओं को कितनी शारीरिक और मानसिक समस्याएं होती हैं, तो उनकी सोच बदलने लगती है.

मर्दों को दे रहे औरतों की सेहत को लेकर क्लासेज (फोटो क्रेडिट-सुनील जागलान)

वे कहते हैं, “जब मैंने उन्हें समझाया कि हॉर्मोनल बदलाव के कारण महिलाओं की हड्डियां कमजोर हो सकती हैं, डिप्रेशन हो सकता है और उनकी नींद भी प्रभावित हो सकती है, तब जाकर उन्हें अहसास हुआ कि यह कितना गंभीर विषय है.”

सरकारी योजनाओं में बदलाव की मांग
सुनील के मुताबिक, महिलाओं की सेहत को बेहतर बनाने के लिए सरकारी योजनाओं में बदलाव की जरूरत है. वे कहते हैं, “हम चाहते हैं कि आयुष्मान भारत योजना में मेनोपॉज से जुड़ी काउंसलिंग और सर्जरी को शामिल किया जाए. हर महिला को यह सुविधा मुफ्त में मिलनी चाहिए. इसके अलावा, आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स को बुजुर्ग महिलाओं की देखभाल की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए.”

बदलाव की शुरुआत
सुनील की पहल का असर अब दिखने लगा है. उनके द्वारा बनाए गए ‘मेनोपॉज चार्ट’ को कई गांवों में लगाया गया है. वे ‘वीमेन फ्रेंडली पंचायत’ बनाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं. उनकी योजना है कि 2025 तक इस अभियान को हर ग्राम पंचायत और ग्राम सभा तक पहुंचाया जाए. 

मेनोपॉज चार्ट (फोटो क्रेडिट-सुनील जागलान)

सुनील का मानना है कि महिलाओं की सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ाने में पुरुषों की भूमिका अहम है. वे कहते हैं, “एक बेटा अगर अपनी मां के मेनोपॉज का समय जानता है, एक पति अगर अपनी पत्नी की इस अवस्था को समझता है, तो इससे महिलाओं को बहुत मदद मिल सकती है. हमें ‘हैप्पी मदर्स डे’ कहने से आगे बढ़कर उनकी सेहत का ख्याल रखना होगा.”

जागरूकता का सफर जारी
सुनील जागलान की यह पहल उन तमाम सामाजिक मुद्दों पर चर्चा को प्रेरित करती है, जिन पर आज भी पर्दा डाल दिया जाता है. उनकी कोशिश है कि मेनोपॉज को लेकर समाज में खुलकर बात हो और महिलाएं बिना किसी झिझक के अपनी समस्याएं साझा कर सकें. वे कहते हैं, “यह सिर्फ शुरुआत है. जब तक हर गांव और हर घर में इस विषय पर बात नहीं होगी, तब तक हमारा अभियान जारी रहेगा.” 
 

 

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