Breast Cancer Cases: कम उम्र की महिलाओं में बढ़ रहा ब्रेस्ट कैंसर खतरा, जानें कब करवानी चाहिए इसके लिए स्क्रीनिंग 

कैंसर का जल्दी पता लगाना आज भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. देर से पता लगने के पीछे कई कारण हैं. जैसे स्क्रीनिंग के महत्व के बारे में जागरूकता की कमी, ब्रेस्ट टिश्यू जो मैमोग्राम पर ट्यूमर को दिखने नहीं देते आदि.

Breast Cancer Risk (Photo: Social Media)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 29 जून 2024,
  • अपडेटेड 11:38 AM IST
  • कम उम्र की महिलाओं को ज्यादा खतरा है
  • कैंसर का जल्द पता लगाना है जरूरी 

दुनियाभर में ब्रेस्ट कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं. पॉपुलर टीवी एक्ट्रेस हिना खान भी इसकी चपेट में आ गई हैं. हिना तीसरे स्टेज के ब्रैस्ट कैंसर से जूझ रही हैं. हिना इलाज चल रहा है और उनके फैंस उनके जल्दी ठीक होने की कामना कर रहे हैं. बता दें, भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मामलों की संख्या 2016 में 1.5 लाख से बढ़कर 2022 में 2 लाख हो गई है. 

कम उम्र की महिलाओं को ज्यादा खतरा है

दिल्ली में इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के सीनियर ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. रमेश सरीन के मुताबिक ब्रैस्ट कैंसर युवा महिलाओं को प्रभावित कर रहा है. कम उम्र की महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की बढ़ती घटनाओं के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं. इसमें जीन काफी बड़ी भूमिका निभाते हैं. BRCA1 या BRCA2 जीन में म्यूटेशन होना इसकी सबसे बड़ी वजह है. ये वंशानुगत होते हैं. यानि अगर आपके घर में आपकी मां या नानी या दादी को ब्रेस्ट कैंसर था तो आपको भी ये कैंसर काफी हद तक हो सकता है. 

साथ ही लाइफस्टाइल भी इसका सबसे बड़ा कारण है. प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स, मोटापा, शारीरिक गतिविधि न करना, धूम्रपान, और हार्मोनल रिप्लेसमेंट थेरेपी का लंबे समय तक उपयोग करना इसके जोखिम को बढ़ा देता है.

कितनी जल्दी करवानी चाहिए स्क्रीनिंग 

हालांकि, अगर पहले से ब्रेस्ट कैंसर का पता चल जाए तो इसे हराया जा सकता है. महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए स्क्रीनिंग पर जोर दिया जा रहा है. पारंपरिक दिशानिर्देशों के अनुसार 40 साल की उम्र में मैमोग्राम शुरू करने की सलाह दी जाती है. हालांकि, ब्रेस्ट या ओवेरियन कैंसर के पारिवारिक इतिहास वाली महिलाओं के लिए, पहले ही स्क्रीनिंग की सलाह दी जाती है.

डॉ. रमेश सरीन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "अगर आपके परिवार में इसका इतिहास है, तो पहले ही स्क्रीनिंग करवानी चाहिए. सलाना मैमोग्राम 40 की उम्र से शुरू होना चाहिए, लेकिन ज्यादा जोखिम वाले लोगों को 30 के दशक में ही इसे शुरू करने की सलाह  दी जाती है.”

कैंसर का जल्द पता लगाना है जरूरी 

कैंसर का जल्दी पता लगाना आज भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. देर से पता लगने के पीछे कई कारण हैं. जैसे स्क्रीनिंग के महत्व के बारे में जागरूकता की कमी, ब्रेस्ट टिश्यू जो मैमोग्राम पर ट्यूमर को दिखने नहीं देते आदि. डॉ. रमेश सरीन बताते हैं, ''देर से पता चलने की समस्या बहुआयामी है. ज्यादा घने ब्रेस्ट टिश्यू ट्यूमर को छुपा सकते हैं, और कभी-कभी, नियमित जांच के दौरान छोटे कैंसर छूट जाते हैं. हमें इसका जल्दी पता लगाने में सुधार के लिए और भी एडवांस ​मशीनों की जरूरत है. 

एडवांस डायग्नोस्टिक टूल की भूमिका

पारंपरिक मैमोग्राफी से परे, एडवांस डायग्नोस्टिक टूल की बड़ी भूमिका है-

1. अल्ट्रासाउंड: हाई फ्रक्वेंसी साउंड वेव का उपयोग करते हुए, अल्ट्रासाउंड ब्रेस्ट टिश्यू की ज्यादा साफ़ इमेज देता है. इसलिए अक्सर मैमोग्राफी के साथ इसका उपयोग किया जाता है.

2. मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (MRI): यह तकनीक ब्रेस्ट की साफ़ इमेज बनाने के लिए शक्तिशाली चुंबक और रेडियो वेव का उपयोग करती है. इससे कैंसर का जल्दी पता लग जाता है. 

3. डिजिटल ब्रेस्ट टोमोसिंथेसिस (DBT): 3डी मैमोग्राफी के रूप में भी जाना जाता है. डीबीटी अलग-अलग कोणों से कई एक्स-रे इमेज लेता है, जिससे ब्रेस्ट की एक 3-डी तस्वीर बनती है. 

4. कंट्रास्ट-एन्हांस्ड मैमोग्राफी (CEM): एक कंट्रास्ट डाई का उपयोग करके, सीईएम संभावित कैंसर वाले टिश्यू के क्षेत्रों को उजागर करता है. इससे जल्दी कैंसर का पता लगाया जा सकता है.


 

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