देश के सात शीर्ष चिकित्सा संस्थानों में इलाज कराने वाले 12,148 कैंसर रोगियों के बीच एक अध्ययन किया गया. इस अध्ययन के अनुसार, एक कैंसर रोगी अपनी स्थिति और बीमा कवरेज की परवाह किए बिना अपने इलाज पर सालाना लगभग 3.3 लाख रुपये खर्च करता है. इसमें अध्ययन में एम्स दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़ और टाटा मेमोरियल सेंटर मुंबई से लिए गया डेटा शामिल है.
कितना आता है खर्च
अध्ययन, जो 'फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ (एफपीएच)' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, से पता चलता है कि एक औसत कैंसर रोगी अपनी जेब से प्रति आउट पेशेंट परामर्श 8,053 रुपये खर्च करता है. अस्पताल में भर्ती होने के बाद आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (ओओपीई) 39,085 रुपये तक आता है. लेकिन अध्ययन से पता चलता है कि रोगी को बार-बार अस्पताल जाना पड़ता है जिसकी वजह से अस्पताल में भर्ती होने (क्रमशः 30% और 17%) की तुलना में कैटेस्ट्रोफिक स्वास्थ्य व्यय (CHE) बेवजह बढ़ता है और गरीब (क्रमशः 80% और 67%) होने की अधिक संभावना है. अध्ययन में बाह्य रोगी उपचार चाहने वाले लगभग 60% मरीज और 62.8% अस्पताल में भर्ती मरीज कुछ स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के अंतर्गत कवर पाए गए.
बीमा योजना भी नहीं आती काम
बाह्य रोगी उपचार में कीमोथेरेपी के साथ-साथ नियमित निगरानी और सहायक देखभाल के लिए निदान भी शामिल है. शोधकर्ताओं ने अध्ययन में बताया है कि सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित अधिकांश स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में इसके स्वास्थ्य लाभ पैकेज में केवल आंतरिक रोगी देखभाल शामिल है, जिससे बाह्य रोगी देखभाल को दायरे से बाहर रखा जाता है. यहां तक कि कवर किए गए रोगी देखभाल के लिए भी, रोग डॉयग्नोज स्थापित होने के बाद वित्तीय सुरक्षा शुरू हो जाती है, जिसका अर्थ है कि संभावित कैंसर के मामलों में प्रारंभिक निदान और स्टेजिंग का भुगतान रोगियों को अपनी जेब से करना होता है.
डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल करना चाहिए
डॉ शंकर प्रिजा के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया. उन्होंने कहा, ''आयुष्मान भारत PM-JAY के स्वास्थ्य लाभ पैकेज में लागत प्रभावी उपचारों को शामिल करके कैंसर पैकेजों के विस्तार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिन्हें आउट पेशेंट देखभाल में वितरित किया जा सकता है. दूसरा, उपचार शुरू होने से पहले कैंसर रोगियों के स्टेजिंग के लिए उपलब्ध डॉग्नोस्टिक सर्विस की लागत को फाइनेंस करने के लिए डिजिटल भुगतान प्रणालियों का उपयोग किया जाना चाहिए. ”
एफपीएच अध्ययन के अनुसार, बाह्य रोगी उपचार के लिए सभी ओओपीई (ऑउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंडीचर) में डॉग्नोस्टिक टेस्ट का हिस्सा 36% था. अस्पताल में भर्ती होने के मामले में, ओओपीई का अधिकतम 45% दवाएं खरीदने में खर्च किया गया था.