CAR T Cell Therapy: कैंसर के मरीजों के लिए नई उम्मीद, CAR-T सेल थैरेपी के जरिए अब भारत में भी होगा किफायती इलाज

टाटा हॉस्पिटल और आईआईटी मुंबई ने ब्लड कैंसर के इलाज के लिए एक नई तकनीक सीएआर-टी का आविष्कार किया है. आइए जानते हैं कि ये क्या है और इससे भारत में कैंसर का इलाज कितना सस्ता हो सकता है.

CAR-T Cell therapy
पारस दामा
  • मुंबई,
  • 15 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 12:27 PM IST
  • महंगा है इस तकनीक का इलाज
  • कार-टी सेल एक तरह की इम्युनोथैरेपी है

कैंसर जानलेवा बीमारी है. हर साल इस बीमारी से लाखों लोग जान गवां देते हैं. पिछले कुछ सालों में बच्चे भी कैंसर की चपटे में आ रहे हैं. कैंसर के इलाज के लिए रेडियो थैरेपी और प्रोटॉन थैरेपी है मगर इलाज के बाद मरीज पर इसका प्रभाव रह जाता है. मुंबई में टाटा हॉस्पिटल ने कार-टी थैरेपी की शुरुआत की थी और इस सीएआर-टी थैरेपी से इस साल एक मरीज़ कैंसर से पूरे तरीके से मुक्त होकर ठीक हुआ है.

क्या है सीएआर-टी थैरेपी

टाटा हॉस्पिटल और आईआईटी मुंबई ने ब्लड कैंसर के इलाज के लिए एक नई तकनीक सीएआर-टी का आविष्कार किया है, जो बच्चों पर लगभग 99 प्रतिशत काम करती है. कार- टी सेल थैरेपी एक तरह की इम्युनोथैरेपी है. इसमें हमारे ही शरीर की कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के लिए प्रोग्राम किया जाता है.

महंगा है इस तकनीक का इलाज

यह तकनीक तब इस्तेमाल में लाई जाएगी जब सभी मौजूदा तरीके विफल हो जाएंगे. ज्यादा उम्र के लोगों में ये काफी कारगर साबित हुई है. सीएआर-टी थैरेपी के परीक्षण दो चरणों में किए गए हैं, जिसमें लगभग 100 लोगों का इलाज किया गया है. सीएआर-टी तकनीक अभी तक केवल अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के पास ही थी, भारत के लोग भी इस तकनीक से इलाज कराने विदेश जाते हैं. लेकिन ये काफी महंगी साबित होती है. विदेशों में इसके इलाज पर करीब 3 से 4 करोड़ रुपये का खर्च आता है.

अब सस्ता होगा कैंसर का इलाज

आईआईटी बॉम्बे और टाटा हॉस्पिटल द्वारा बनाए इस स्वदेशी टेक्नोलॉजी से भारत में ब्लड कैंसर का इलाज सिर्फ 50 लाख रुपये में हो सकता है. वहीं सीएआर-टी तकनीक से एक ही डोज़ में पूरा इलाज संभव है. इसमें मरीज को अस्पताल में भर्ती किया जाता है और उसके ब्लड सैंपल लिए जाते हैं. मरीज के खून के सैंपल को प्रयोगशाला भेजा जाता है और उस पर काम किया जाता है. ब्लड के सैंपल में सीएआर-टी कोशिकाएं तैयार की जाती हैं और उसके बाद मरीज को एक डोज दी जाती है.

 

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