Heart Disease in Women: पुरुषों से ज्यादा महिलाओं में बढ़ रहा दिल की बीमारी का जोखिम, जानें किन लक्षणों पर तुरंत जाएं डॉक्टर के पास?

बायोलॉजिकल वजहों से महिलाओं में दिल की बीमारियों का जोखिम और अनुभव पुरुषों से अलग होता है. उदाहरण के लिए, हार्ट अटैक के बाद महिलाओं को ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. डॉक्टर बलबीर सिंह के मुताबिक, हार्ट अटैक का भी पुरुष और महिला पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है.

Cardiovascular Disease in Women (Representative Image/Social Media)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 30 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:25 PM IST
  • महिलाओं में हार्ट डिजीज की चुनौतियां बड़ी हैं
  • हेल्दी लाइफस्टाइल जरूरी है

हाल के कुछ सालों में, दिल की बीमारी के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. अब महिलाओं को लेकर भी एक रिपोर्ट सामने आई है. कार्डियोवैस्कुलर डिजीज या CVD महिलाओं के लिए बढ़ती चिंता का विषय बन गया है. हार्ट अटैक और कोरोनरी आर्टरी डिजीज (CAD) के कारण महिलाओं को बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है. 

मैक्स हेल्थकेयर के कार्डियोलॉजी विभाग के चेयरमैन डॉ. बलबीर सिंह और मैक्स हॉस्पिटल, साकेत के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. अनुपम गोयल ने इस स्टडी को किया है. दिल्ली में हुए Cardiology Summa 2024 में इस स्टडी को पेश किया गया. इसमें बताया गया कि दिल की बीमारी से होने वाली मौतों में काफी हद तक कमी आई है, लेकिन महिलाओं में इसके मामले बढ़ रहे हैं. 

महिलाओं में हार्ट डिजीज की चुनौतियां
आमतौर पर कोरोनरी आर्टरी डिजीज (CAD) और दिल का दौरा (मायोकार्डियल इन्फार्क्शन या MI) को मुख्य रूप से पुरुषों से जोड़कर देखा जाता है. 65 साल से कम उम्र के पुरुषों में ये ज्यादा देखने को मिलता है. हालांकि, इसकी वजह से इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया जाता है कि युवा महिलाएं भी इसकी चपेट में हैं. 2016 में, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया था कि महिलाओं में दिल के दौरे का जोखिम ज्यादा होता है. 

बायोलॉजिकल वजहों से महिलाओं में दिल की बीमारियों का जोखिम और अनुभव पुरुषों से अलग होता है. उदाहरण के लिए, हार्ट अटैक के बाद महिलाओं को ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. डॉक्टर बलबीर सिंह के मुताबिक, हार्ट अटैक का भी पुरुष और महिला पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है. और इसके कारण भी अलग-अलग हो सकते हैं. उनके मुताबिक, महिलाएं 8-10 घंटे दिल का दर्द सहन कर सकती हैं और उतनी ही देरी से अस्पताल में पहुंचती हैं, जबकि पुरुषों में ये 4 से 5 घंटे होता है. 

कैसे की गई स्टडी?
मैक्स हेल्थकेयर की इस स्टडी में पिछले साल STEMI (ST-Elevation Myocardial Infarction) वाले 319 मरीजों की जांच की गई, जिनमें से 63 महिलाएं थीं—जो कुल STEMI मरीजों का लगभग 20% थी. इसमें कई चीजें सामने आईं:

-उम्र का अंतर: महिलाओं में CAD पुरुषों से देर में होता है, और मेनोपॉज के बाद इसके ज्यादा मामले सामने आते हैं. पुरुषों में अधिकतर मरीज 40-65 साल की उम्र वाले थे, जबकि महिलाएं ज्यादातर 55 से 75 साल के बीच की थीं. हालांकि, युवा महिलाओं में भी CAD के मामले बढ़ रहे हैं.

 -देर से अस्पताल आना: महिलाओं में STEMI का इलाज में देरी एक चिंता का विषय है. इसमें लक्षण काफी आम होते हैं, जैसे- लंबे समय तक छाती में दर्द, कमजोरी, बेचैनी, और यहां तक कि गैस्ट्रिक. इन्हीं की वजह से इन लक्षणों को नजरअंदाज कर दिया जाता है. सामाजिक कारणों और दिल की बीमारी के खतरे के प्रति जागरूकता की कमी भी इसमें योगदान देती है.

-कारण: हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और पारिवारिक इतिहास जैसी चीजों के अलावा, कई और स्थितियां हैं- जैसे लुपस और रूमेटोइड आर्थराइटिस आदि. कार्डियोमेटाबोलिक और डिप्रेशन भी दिल की बीमारी की एक वजह हो सकता है. 

महिलाओं को ज्यादा खतरा क्यों है? 
स्टडी से पता चलता है कि महिलाओं में इससे होने वाली मौत की दर भी ज्यादा है. बीपी, डायबिटीज, बैठे रहने की आदत, मेनोपॉज, हार्मोनल बदलाव, ऑटोइम्यून और पुरानी सूजन जैसी बीमारियां इसे और बढ़ा देती हैं. सामाजिक कारण और तनाव और डिप्रेशन जैसी मानसिक स्थितियां भी महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती हैं. इन सबको भी दिल की बीमारी से जोड़कर देखा जाता है. 

कैसे कर सकते हैं इससे बचाव? 
महिलाओं में हार्ट डिजीज के जोखिम और लक्षणों को समझना बहुत जरूरी है. इसके लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं: 

1. असामान्य लक्षणों को पहचानें: अगर महिलाएं लंबे समय तक छाती में दर्द, थकावट, सांस लेने में कठिनाई, या पाचन संबंधी लक्षण अनुभव करती हैं, तो तुरंत डॉक्टर की सहायता लें. 

2. नियमित जांच: खासकर 40 साल से ऊपर या मेनोपॉज वाली महिलाओं को नियमित रूप से हार्ट टेस्ट करवाने चाहिए. इसके अलावा, ब्लड चेकअप, ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर की निगरानी रखनी चाहिए. 

3. हेल्दी लाइफस्टाइल जरूरी: हर दिन फिजिकल एक्टिविटी, अच्छी डाइट जिसमें फैट कम हो और योग या ध्यान जैसे स्ट्रेस मैनेजमेंट उपाय करने चाहिए. अपना एक हेल्दी वजन बनाकर रखें, इसे न ज्यादा कम होने दें और न ही ज्यादा. 

4. जागरूक रहें: ऑटोइम्यून डिजीज और रूमेटोइड आर्थराइटिस वाली महिलाओं में दिल की बीमारियां ज्यादा देखने को मिलती है. इसे लेकर जागरूक रहें. 

दिल की बीमारी के ट्रीटमेंट में जागरूकता और विशेष देखभाल की जरूरत है. अगर बीमारी को जल्दी पहचान लिया जाए और लाइफस्टाइल अच्छा रखा जाए तो कई हद तक इसे कम किया जा सकता है. 

 

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