कैंसर रोगियों के लिए अच्छी और सुखद खबर है. अब अमेरिका के बाद भारत में CART-T यानी की काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी (कार-टी) सेल थेरेपी के जरिए कैंसर पीड़ितों का इलाज किया जाएगा. चंडीगढ़ पीजीआई ने ट्रायल के तौर पर इस तकनीक से तीन मरीजों का सफल इलाज किया. अब इसे शुरू करने के लिए आवश्यक प्रक्रियाएं पूरी की जा रहीं हैं. यह पीजीआई ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए बड़ी उपलब्धि है. क्योंकि इस तकनीक से विदेश में इलाज कराने पर 4 से 5 करोड़ रुपये का खर्च आता है जबकि पीजीआई में 50 से 60 लाख रुपए ही लगेंगे.
पीजीआई के क्लिनिकल हेमेटोलॉजी विभाग के हेड प्रो. पंकज मल्होत्रा ने गुड न्यूज टुडे से खास बातचीत में बताया, कि कार-टी सेल थेरेपी एक प्रकार की इम्यूनोथेरेपी है. इसमें कैंसर पीड़ित मरीज के सेल्स टिशू लेकर उसकी जांच के लिए बैंगलुरु स्थित इम्यूनिल लैब में भेजे जाते हैं. इन सेल्स टिशू को फ्रीज कर इनमें जो भी कमी होती है, उसे पूरा कर योग्य बनाया जाता है. फिर इन टिशू को उसी मरीज में दोबारा प्रत्यारोपित किया जाता है. इसमें टी सेल्स का इस्तेमाल किया जाता है. ये सेल्स इम्यून सिस्टम का ही एक हिस्सा होती हैं.
कैसे किया गया सफल इलाज
इस थेरेपी में मरीज के ब्लड से ही टी सेल्स का एक सैंपल लेकर उसकी कमी को पूरा किया जाता है. टिशू में किसी भी प्रकार की कमी को ड्रग्स या अन्य चिकित्सा तकनीकों से पूरा किया जाता है, फिर इन टिशू को फ्रीजर तकनीक के जरिए सुरक्षित मरीज में प्रत्यारोपित करने के लिए पहुंचाया जाता है. पीजीआई ने जिन तीन मरीजों पर कार टी सेल थेरेपी का सफल प्रशिक्षण किया है, उन सभी के टिशू बैंगलुरु स्थित इम्यूनिल लैब में भेजे गए थे.
तीन और अस्पतालों में चल रहा है प्रशिक्षण
देश में कार-टी सेल थेरेपी को लेकर पीजीआई चंडीगढ़ के अलावा तीन जगहों पर प्रशिक्षण चल रहा है. इनमें मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल कैंसर हास्पिटल, चेन्नई स्थित अपोलो हास्पिटल और बैंगलुरु स्थित नारायणा हास्पिटल में कैंसर के इलाज के लिए इस नई तकनीक पर काम किया जा रहा है. पूरे उत्तर भारत में और सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों में पीजीआई एकमात्र पहला अस्पताल है, जो इस नई तकनीक का प्रशिक्षण कर रहा है.
कैंसर के मरीजों पर नई तकनीक का किया जाएगा प्रयोग
प्रो. पंकज मल्होत्रा ने कहा पीजीआई ने भारत सरकार को कार-टी सेल थेरेपी के जरिए तीन मरीजों पर किए सफल प्रशिक्षण और इस तकनीक के बारे में अपनी रिपोर्ट दी है। जैसे ही कैंसर के इलाज की इस नई तकनीक को लाइसेंस के रूप में मंजूरी मिली है, पीजीआइ में अन्य कैंसर के मरीजों पर इस नई तकनीक का प्रयोग किया जाएगा.