दुनिया में पहली बार चंडीगढ़ पीजीआई के डॉक्टरों ने एक ऐसी दवा तैयार की है जो शरीर में मौजूद छोटे से छोटा ट्यूमर भी ढूंढ सकती है. ये दवाई चंडीगढ़ के पीजीआई के अलावा दुनिया के किसी हॉस्पिटल में उपलब्ध नहीं है.
पिट्यूटरी ग्लैंड के अंदर जो सबसे छोटा ट्यूमर होता है पहले उसे एमआरआई और पेट स्कैन के जरिए ढूंढने की कोशिश की जाती थी लेकिन अब इस तकनीक के जरिए बिना चीर फाड़ के बिल्कुल सही जगह पर उसे ढूंढ लिया जाएगा. इस स्कैन और तकनीक की कीमत लगभग 7000 से 9000 रुपये होगी.
कोर्टिसोल हार्मोन मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने और तनाव से निपटने में मदद करता है. कभी-कभी शरीर ज्यादा मात्रा में कोर्टिसोल बनाने लगता है और इससे "कुशिंग सिंड्रोम" की स्थिति पैदा हो सकती है. ऐसा अलग-अलग कारणों से हो सकता है. एक सामान्य कारण पिट्यूटरी ग्रंथि में एक छोटा ट्यूमर है जिसे कॉर्टिकोट्रोपिनोमा कहा जाता है.
पीजीआई की डॉक्टर रमा वालिया और डॉक्टर जया ने इंडिया टुडे को बताया कि ये दवाई इंजेक्शन के जरिए मरीजों के शरीर में दाखिल की जाती है और ये दवा वहीं जाकर अपना असर दिखाती है जहां पर ट्यूमर होता है. क्योंकि ये छोटा ट्यूमर एमआरआई में भी नजर नहीं आता है. शरीर में कई ऐसे ट्यूमर बन जाते हैं जो बहुत छोटे होते हैं और दिखाई नहीं देते, और ये बड़े होकर कैंसर का रूप ले लेते हैं.
ये पता लगाने के लिए कि कुशिंग सिंड्रोम का कारण क्या है और यह कहां से आ रहा है, ट्यूमर का लोकलाइजेशन करना होगा. पिट्यूटरी ग्रंथि में इन छोटे ट्यूमर या कॉर्टिकोट्रोपिनोमा को देखने के लिए हम अक्सर एमआरआई का उपयोग करते हैं लेकिन एमआरआई तस्वीरें हमेशा यह नहीं दिखा सकती हैं कि कुशिंग सिंड्रोम का कारण क्या है या यह कहाँ से आ रहा है. डॉक्टर रमा वालिया ने बताया कि इस दवाई से हमने अब तक 64 मरीजों का इलाज किया है और सभी मरीज बिल्कुल स्वस्थ हैं. उन्होंने कहा कि दुनियाभर से हमें इस दवा के लिए कॉल आते हैं. हमने इस दवा का पेटेंट करवा लिया है.