भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अपनी सेहत का ध्यान नहीं रख पाते हैं. ऐसे में कई बीमारियां हमें जाने-अनजाने में जकड़ लेती हैं. इसी कड़ी में अब कई मामले क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) के देखे जा रहे हैं. ये एक तरह से फेफड़ों की बीमारी है, जिसे आमतौर पर सीओपीडी के रूप में जाना जाता है. ये बीमारी फेफड़ों से जुड़ी होती है, जिसमें मरीज को सांस लेने में समस्या होने लगती है. समय के साथ ये बीमारी बिगड़ती जाती है. COPD में दो मुख्य स्थिति शामिल हैं: क्रोनिक ब्रोंकाइटिस (chronic bronchitis) और एम्फायसेमा (emphysema) दोनों स्थितियों के कारण फेफड़ों में हवा का प्रवाह कम हो जाता है और शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बनने लगती है.
COPD के लक्षण
सीओपीडी के लक्षण काफी गंभीर हो सकते हैं. इसमें कई लक्षण शामिल हैं-
- लगातार खांसी जिसमें बलगम (थूक) और कभी-कभी कफ निकलता हो.
- सांस की तकलीफ, खासकर शारीरिक गतिविधियों के दौरान.
- घरघराहट (जब आप सांस लेते हैं तो सीटी की आवाज).
- सीने में जकड़न.
- बार-बार सांस से जुड़ा इन्फेक्शन होना.
- हर वक्त थकान महसूस होना.
ये लक्षण न केवल दैनिक गतिविधियों को प्रभावित करते हैं बल्कि प्रभावित लोगों के जीवन की गुणवत्ता को भी काफी कम कर देते हैं.
भारत में सीओपीडी
भारत में COPD के मामले दुनिया में सबसे ज्यादा है. द लैंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सीओपीडी मामलों की संख्या 1990 के दशक में 28.1 मिलियन से बढ़कर 2016 में 55.3 मिलियन हो गई. भारत में सीओपीडी का आर्थिक बोझ भी काफी है, जिसकी लागत सालाना 48,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है.
सीओपीडी के पीछे की वजह?
सीओपीडी होने के पीछे की कई वजह हो सकती हैं-
-तम्बाकू या स्मोकिंग- सीओपीडी के लिए स्मोकिंग सबसे बड़ी वजह है. तंबाकू के धुएं में मौजूद हानिकारक केमिकल फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे पुरानी सूजन और बढ़ सकती है.
-बायोमास फ्यूल के संपर्क में: भारत में कई लोग खाना पकाने और हीटिंग के लिए बायोमास फ्यूल का उपयोग करते हैं. इन फ्यूल से निकलने वाला धुआं फेफड़ों में जलन पैदा कर सकता है और सीओपीडी होने की वजह बन सकती है.
-वायु प्रदूषण: वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारक सीओपीडी के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं.
सीओपीडी का प्रभाव
सीओपीडी न केवल व्यक्तियों के स्वास्थ्य और उत्पादकता को प्रभावित करता है बल्कि उनके परिवारों और आसपास को भी प्रभावित करता है. इससे शारीरिक और भावनात्मक तनाव हो सकता है, जिससे काफी परेशानी हो सकती है. लेकिन आप इसे मैनेज कर सकते हैं-
-ब्रोंकोडाइलेटर्स: ये दवाएं हमारी सांस लेने वाली नली के आसपास की मांसपेशियों को आराम देने में मदद करती हैं, जिससे सांस लेना आसान हो जाता है. इन्हें अक्सर सीओपीडी लक्षणों को मैनेज के लिए लिया जाता है.
-इनहेल्ड स्टेरॉयड: ये वायुमार्ग की सूजन को कम कर सकते हैं और उसे बढ़ने से रोकने में मदद कर सकते हैं.
-व्यायाम: सांस से जुड़ी एक्सरसाइज फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार कर सकते हैं.
-नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन थेरेपी: एनआईवी थेरेपी मरीजों को मास्क और ट्यूब के माध्यम से हवा दी जाती है. यह थेरेपी CPAP (कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर) के समान है और सीओपीडी रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार कर सकती है.
-ऑक्सीजन थेरेपी: गंभीर सीओपीडी वाले रोगियों को पर्याप्त ऑक्सीजन देने के लिए ऑक्सीजन थेरेपी निर्धारित की जा सकती है.
गौरतलब है कि सीओपीडी को मैनेज करने के लिए सबसे जरूरी है कि इसके कारणों, लक्षणों और प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए. सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियान से लोगों को सीओपीडी के बारे में सजग किया जा सकता है.