COVID-19: जानिए हवा में कैसे फैलता है कोरोना वायरस, मास्क पहनने से होता है कितना बचाव?

एक बार हमारे शरीर के बाहर शुष्क हवा के संपर्क में आने पर, वायरस से लदी बड़ी बूंदों से द्रव वाष्पित हो जाता है जो फिर एरोसोल बन जाते हैं. इसका मतलब है कि वे घंटों तक हवा में सस्पेंड रह सकते हैं और संक्रमण का खतरा पैदा कर सकते हैं.

कोरोना वायरस (सांकेतिक तस्वीर)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 19 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:30 PM IST
  • गाने और खांसने में ज्यादा बूंदें निकलती हैं और इन्हें हमारे आस-पास की जगहों में ज्यादा फैलती हैं.
  • सांस लेने या खांसने पर हजारों-लाखों एयरोसोल बूंदें निकलती हैं.

जब से SARS-CoV-2, नोवल कोरोना वायरस ने हमारे जीवन में प्रवेश किया है, तब से मास्क का इस्तेमाल पूरी दुनिया में नॉर्मल हो गया है. ना सिर्फ मास्क बल्कि सैनिटाइजेशन और संक्रामक रोगों के खिलाफ भी लोगों में जागरुकता बढ़ गयी है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि क्या वे काम करते हैं? आखिर इमारतों में वायरस हवा के माध्यम से कैसे फैलता है? क्या मास्क हवा में श्वसन की बूंदों की संख्या को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं और ट्रांसमिशन को कम कर सकते हैं?

इन सब सवालों के जवाब यूसीएल में पर्यावरण इंजीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर, अबीगैल हैथवे और शेफ़ील्ड विश्वविद्यालय में वरिष्ठ व्याख्याता बेंजामिन जोन्स ने दिए. जब हम बात करते हैं, खांसते हैं और सांस लेते हैं तो हमारे मुंह और नाक से हवा का एक झोंका हमारे फेफड़ों से बाहर निकलता है. इस प्रक्रिया में यह फेफड़ों, गले और मुंह से श्वसन द्रव को इकट्ठा करता है और बूंदों को हवा में उत्सर्जित करता है. 

उच्च ऊर्जा वाली वोकल एक्टिविटीज जैसे गाने और खांसने में ज्यादा बूंदें निकलती हैं और इन्हें हमारे आस-पास की जगहों में ज्यादा फैलती हैं. ज्यादातर बूंदें पांच माइक्रोन से छोटी होती हैं (एक माइक्रोन एक मिलीमीटर का हजारवां हिस्सा होता है), जिन्हें एरोसोल कहते हैं. इससे बड़ी कोई भी चीज बूंद कहलाती है और ये 100 माइक्रोन जितनी बड़ी हो सकती है. 

छोटी बूंदें कई घंटों तक हवा में रह सकती हैं

हर बार सांस लेने या खांसने पर अलग-अलग साइज़ के हजारों या लाखों एरोसोल और बूंदें निकलती हैं  उनका आकार जो भी हो, वे हमारे मुंह से गर्म आर्द्र हवा के रूप में अन्य लोगों की ओर आगे बढ़ते हैं. बड़ी बूंदें गुरुत्वाकर्षण के कारण जल्दी से जमीन पर गिरेंगी लेकिन छोटी बूंदें कई घंटों तक हवा में लटकी रह सकती हैं. 

कोरोना वायरस का पता लगने के बाद से पिछले 18 महीनों में, कई अलग-अलग स्थितियों में हवा के नमूनों में SARS-CoV-2 का पता चला है, ज्यादातर अस्पतालों जैसे स्थानों में. आमतौर पर पीसीआर परीक्षणों का उपयोग यह आकलन करने के लिए किया जाता था कि क्या SARS-CoV-2 RNA मौजूद था. वायरल आरएनए अणु एक्सहेल्ड एरोसोल में पाए गए, जिनकी संख्या 10 से 100,000 प्रति क्यूबिक मीटर कमरे की हवा में अलग-अलग थी. 

सांस लेने या खांसने पर हजारों-लाखों एयरोसोल बूंदें निकलती हैं  

बिना लक्षण वाले संक्रमित लोगों में लक्षण प्रदर्शित करने वालों की तुलना में कम वायरल लोड होना जरूरी नहीं है. दोनों ही मामलों में एक मिलीलीटर लार या नाक में वायरस की मात्रा कुछ हज़ार या सैकड़ों अरबों वायरल जीनोम हो सकती है, जिसका अनुपात जीवित वायरस होगा. चूंकि एक माइक्रोन एक मिलीमीटर का एक हजारवां हिस्सा होता है, इसलिए हम यह पता लगा सकते हैं कि जिस समय वे शरीर छोड़ते हैं, पांच माइक्रोन के ज्यादातर एरोसोल में शायद कुछ वायरस कण होंगे. लेकिन 100 माइक्रोन की छोटी बूंद में वायरस के कण दस से लेकर हजारों तक हो सकते हैं. वहीं प्रत्येक सांस या खांसी में कई हजारों या लाखों एयरोसोल बूंदें होंगी.  

मास्क पहनने से उत्सर्जित होने वाले वायरस की मात्रा कम होती है 

एक बार हमारे शरीर के बाहर शुष्क हवा के संपर्क में आने पर, वायरस से लदी बड़ी बूंदों से द्रव वाष्पित हो जाता है जो फिर एरोसोल बन जाते हैं. इसका मतलब है कि वे घंटों तक हवा में सस्पेंड रह सकते हैं और संक्रमण का खतरा पैदा कर सकते हैं. हम जानते हैं कि किसी दिए गए कमरे में किसी व्यक्ति के सांस लेने में वायरस की मात्रा एक संक्रमित व्यक्ति द्वारा हवा में उत्सर्जित वायरस की मात्रा के सीधे आनुपातिक होती है. सरल शब्दों में कहें तो एक कमरे में जितने ज्यादा वायरस सांस छोड़ने से आते हैं, उतने ही कमरे में मौजूद लोग उसमें सांस लेंगे. 

एक संवेदनशील व्यक्ति के सांस लेने में वायरस की सटीक मात्रा संक्रमित व्यक्ति या लोगों से निकटता और आसपास बिताए गए समय सहित कई कारणों पर निर्भर करती है. वायरस संक्रमित व्यक्ति के करीब ज्यादा केंद्रित होता है, जबकि दो मीटर से अधिक की दूरी पर हवा में वायरस फैल जाएगा. मास्क पहनने से उत्सर्जित होने वाले वायरस की मात्रा कम हो जाएगी. लेकिन यह कितनी मदद करता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि पहली बार में कितना वायरस उत्सर्जित हो रहा है. 
 

 

 

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