दमोह में एक फर्जी डॉक्टर ने 7 लोगों की जान ले ली. खुद को लंदन का मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट एन जोन केम बताने वाले डॉक्टर को पुलिस ने प्रयागराज से हिरासत में ले लिया है. बता दें कि दमोह के मिशन अस्पताल में हार्ट सर्जरी के बाद सात मरीजों की मौत का दावा किया गया है.
खुद को बताया फेमस कार्डियोलॉजिस्ट
दरअसल डॉ एन जोन केमनाम के फेमस कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर ब्रिटेन लंदन में है और शिकायत में कहा गया है कि इस डॉक्टर में ब्रिटेन के फेमस डॉक्टर के नाम के फर्जी दस्तावेज बताकर मिशनरी अस्पताल में नौकरी ली और फिर बिना किसी अनुभव के ऑपरेशन किए और इसी वजह से ये मौतें हुईं.
भारत में पहला सफल हार्ट ट्रांसप्लांट 1994 में हुआ
भारत में हार्ट ट्रांसप्लांट कराने का खर्च करीब 20 से 35 लाख तक आता है. Asian Heart Institute, दिल्ली एम्स और पुणे का डीपीयू सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल हार्ट ट्रांसप्लांट करने वाले बेहतरीन अस्पतालों में से एक है. देश में हर साल 4 से 5 हजार रोगियों को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता. हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद 5 साल तक जीवित रहने की दर लगभग 75% है. भारत में पहला सफल हार्ट ट्रांसप्लांट 3 अगस्त, 1994 को AIIMS, नई दिल्ली में किया गया था. क्या आप जानते हैं सबसे पहले हार्ट ट्रांसप्लांट किसका और कब किया गया था? चलिए जानते हैं दुनिया के पहले हार्ट ट्रांसप्लांट के बारे में.
9 घंटे में पूरा हुआ था पहला हार्ट ट्रांसप्लांट
3 दिसंबर 1967 को दुनिया का 'पहला ह्यूमन हार्ट ट्रांसप्लांट' हुआ था. ये ट्रांसप्लांट दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन के Groote Schuur हॉस्पिटल में हुआ था. क्रिस्टियन बर्नार्ड ने ये ट्रांसप्लांट किया था और इसमें करीब 9 घंटे का वक्त लगा था. ह्यूमन टू ह्यूमन हार्ट ट्रांसप्लांट करने से पहले बर्नार्ड ने कई सालों तक दक्षिण अफ्रीका में 'रोगी' कुत्तों पर ट्रांसप्लांट तकनीक आजमाया.
ब्रेन डेड लड़की का दिल लगाया गया था
ये मेडिकल हिस्ट्री के लिए ऐतिहासिक दिन था. इस ट्रांसप्लांट को दुनिया भर में सुर्खियां मिली और बर्नार्ड रातोंरात सेलिब्रिटी बन गए. ये ट्रांसप्लांट लुई वशकांस्की नाम के मरीज का किया गया था. उनका दिल 25 साल की बैंक क्लर्क डेनिस डरवाल के दिल से बदला गया था. डेनिस एक्सीडेंट के बाद ब्रेन डेड थी. हालांकि वशकांस्की ट्रांसप्लांट के बाद सिर्फ 18 दिन ही जिंद रह पाए. निमोनिया की वजह से उनकी मौत हो गई.
आपको जानकर हैरानी होगी कि बर्नार्ड की सर्जरी टीम में हैमिल्टन नाम का शख्स भी था जो अस्पताल का सफाईकर्मी था, बाद में ट्रेनिंग लेकर वो ट्रांसप्लांट रिसर्च टीम का मेंबर बना था. शरीर के अंगों का पहला ट्रांसप्लांट किडनी (1954) का हुआ था.
क्या है पूरा मामला
दरअसल, एमपी के दमोह में चल रहे ईसाई मिशनरी के मिशन अस्पताल में बीते महीने करीब 7 मरीजों की मौत हो जाने के आरोप के बाद खलबली मच गई. इन मौतों के लिए फेक कार्डियालॉजिस्ट जिम्मेदार है. खुद को लंदन का कार्डियोलॉजिस्ट बताकर उसने कई लोगों की हार्ट सर्जरी कर डाली. अस्पताल में जो सात मौतें हुईं वो हार्ट के ऑपरेशन की वजह से हुई. मामले की जांच चल रही है. जांच में पता चला कि उसकी डिग्री और अनुभव पूरी तरह फर्जी थे. इससे पहले आरोपी डॉ. जॉन केम के खिलाफ रविवार देर रात एफआईआर दर्ज की गई थी.