Bone Marrow Transplant: दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में 7 साल के बच्चे का हुआ पहला सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट...डॉक्टरों ने बताया खास उपलब्धि

दिल्ली में पहली बार एक 7 साल के बच्चे का पहला सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया. बच्चे को 6 महीने पहले आर्मी हॉस्पिटल रेफर किया गया था लेकिन डोनर न मिलने की वजह से उसे इंतजार करना पड़ा. बच्चा अभी पूरी तरह से स्वस्थ है.

Bone Marrow Transplant
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:51 PM IST

दिल्ली कैंट स्थित आर्मी हॉस्पिटल (रिसर्च एंड रेफरल) में एक सात साल के बच्चे का सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया है. अस्पताल में हेमेटोलॉजी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन विभाग में डॉक्टरों की टीम के मुताबिक बच्चे को प्राइमरी इम्यूनोडेफिशिएंसी डिसऑर्डर (immunodeficiency disorder) था. पहली बार इस तरह की सर्जरी से ऐसी बीमारी से जूझ रहे तमाम बच्चों और उनके परिवारों के लिए उम्मीद की किरण दिखी है.   

क्या थी बीमारी?
सिपाही प्रदीप पौडेल के बेटे सुशांत जब एक साल के थे, तब उन्हें एआरपीसी1बी नाम की बीमारी का पता चला था. यह इम्यूनोडेफिशिएंसी का एक बहुत ही दुर्लभ रूप है. यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें मरीज का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से कमजोर हो जाता है जिसकी वजह से उसे बार-बार कई तरह के इन्फेक्शन और कई तरह की अन्य जटिलताओं का खतरा होता है.

मरीज को छह महीने पहले आर्मी हॉस्पिटल (आर एंड आर) में रेफर किया गया था, लेकिन उसके पास एचएलए मैचिंग सिबलिंग डोनर नहीं था. अस्पताल में हेमेटोलॉजी टीम ने एक उपयुक्त डोनर को खोजने और सावधानीपूर्वक इसे ट्रांसप्लांट करने के लिए काफी मेहनत की.

कब मिला डोनर?
30 नवंबर को किए गए मैच्ड अनरिलेटेड डोनर (MUD) ट्रांसप्लांट में एक एचएलए संगत डोनर से स्वस्थ स्टेम कोशिकाओं को निकालना शामिल था, जो इस मामले में एक स्वैच्छिक असंबंधित डोनर था. इन सेल्स को फिर सुशांत पौडेल के ब्लड में डाला गया. कीमोथेरेपी की बहुत अधिक खुराक से बच्चे की कोशिकाएं नष्ट हो गई थीं. इस प्रक्रिया का उद्देश्य दोषपूर्ण प्रतिरक्षा कोशिकाओं को स्वस्थ कोशिकाओं से बदलना था, ताकि व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सके.

पहला ऐसा ट्रांसप्लांट
सफल प्रत्यारोपण के बाद, अस्पताल के कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल अजित नीलकांतन ने कहा, "यह अस्पताल में संपूर्ण चिकित्सा बिरादरी के लिए बहुत गर्व और संतुष्टि का क्षण है और टीम के प्रयास के कारण यह सफल हो पाया." हेमेटोलॉजी विभाग के एचओडी ब्रिगेडियर राजन कपूर ने कहा, “सुशांत पौडेल की यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं है. यह उपलब्धि हमारी समर्पित मेडिकल टीम के सहयोगात्मक प्रयासों, सुशांत के परिवार के अटूट समर्थन और डोनर की उदारता का प्रमाण है. हमारी जानकारी के अनुसार, यह भारत में इस इम्युनोडेफिशिएंसी के लिए पहला ऐसा प्रत्यारोपण है.

हेमेटोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार कर्नल राजीव कुमार ने कहा, “पांच में से केवल एक मरीज का अपने भाई-बहन  के साथ पूरा एचएलए मैच होता है. DATRI से इस मरीज में प्राप्त HLA से मेल खाने वाले असंबद्ध दाता स्टेम कोशिकाओं की उपलब्धता, वास्तव में जीवन-घातक इम्यूनोडेफिशिएंसी विकार से पीड़ित ऐसे रोगियों के लिए एक गेम चेंजर है. सुशांत पौडेल के परिवार के सदस्यों ने उन्हें नया जीवन देने के लिए डॉक्टरों की टीम को धन्यवाद दिया.
 

 

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