डॉक्टरों का करिश्मा: बिना ऑपरेशन एक होल के जरिए निकाले 156 किडनी स्टोंस, बनाया रिकॉर्ड

किडनी एक्टोपिक थी और यह यूरिनरी ट्रैक में अपनी नॉर्मल पोजीशन के बजाय उसके पेट के पास स्थित थी. अस्पताल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "यद्यपि असामान्य स्थान पर किडनी होना हमारे लिए समस्या नहीं थी, लेकिन ऐसी किडनी से पथरी निकालना निश्चित रूप से एक चुनौतीपूर्ण कार्य था."

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 17 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 10:10 AM IST
  • एक्टोपिक किडनी की वजह से मामला हुआ पेचीदा
  • शरीर में दो साल से अधिक समय से बन रहे होंगे पत्थर

भारतीय डॉक्टरों ने एक बार फिर से असंभव को संभव कर दिखाया है. हैदराबाद के एक प्रमुख अस्पताल के डॉक्टरों ने एक ऐसा कमाल कर दिखाया है, जिसे सुनकर हर कोई हैरान रह जाएगा. डॉक्टरों की इस टीम ने  एक 50 वर्षीय मरीज के शरीर में हुए होल के जरिए कुल 156 पथरियां निकाली हैं. डॉक्टरों ने एक बड़ी सर्जरी के बजाय लेप्रोस्कोपी और एंडोस्कोपी का इस्तेमाल किया. इस प्रक्रिया का उपयोग करके देश में किसी एक मरीज के शरीर से निकाले गए पत्थरों की यह सबसे अधिक संख्या है. यह प्रक्रिया करीब तीन घंटे तक चली. रोगी, जो अब स्वस्थ है और अपनी नियमित दिनचर्या में लौट आया है, हुबली से आया था और उसे प्रीति यूरोलॉजी और किडनी अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

एक्टोपिक किडनी की वजह से मामला हुआ पेचीदा 

रोगी, बसवराज मदीवालर पेशे से एक स्कूल शिक्षक है. उसके पेट के पास अचानक बहुत तेज  दर्द होने पर उसने स्क्रीनिंग कराई में पेट के निचले भाग में पथरियों का एक बड़ा क्लस्टर दिखाई दिया. यह मामला तब और पेचीदा हो गया जब डॉक्टरों को पता चला कि मरीज की किडनी एक्टोपिक थी और यह यूरिनरी ट्रैक में अपनी नॉर्मल पोजीशन के बजाय उसके पेट के पास स्थित थी. अस्पताल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "यद्यपि असामान्य स्थान पर किडनी होना हमारे लिए समस्या नहीं थी, लेकिन ऐसी किडनी से पथरी निकालना निश्चित रूप से एक चुनौतीपूर्ण कार्य था."

शरीर में दो साल से अधिक समय से बन रहे होंगे पत्थर

अस्पताल के यूरोलॉजिस्ट और मैनेजिंग डायरेक्टर, डॉ वी चंद्र मोहन ने इस बारे में कहा, "ये पत्थर रोगी के शरीर में दो साल से अधिक समय से बन रहे होंगे, लेकिन उसने पहले कभी भी किसी भी लक्षण का अनुभव नहीं किया. हालांकि, अचानक दर्द की घटना ने उसे सभी आवश्यक टेस्ट्स से गुजरने के लिए मजबूर कर दिया जिससे हमें शरीर में रीनल स्टोंस के क्लस्टर की मौजूदगी का पता चला. उनकी हेल्थ कंडीशन का आकलन करने के बाद, हमने बड़ी सर्जरी के बजाय पत्थरों को निकालने के लिए लेप्रोस्कोपी और एंडोस्कोपी का सहारा लेने का फैसला किया. "


 

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