Exclusive: क्या सच में सैनिटरी पैड के इस्तेमाल से है कैंसर का खतरा? Dr. Tanaya ने बताया स्टडी में मौजूद गलतियों के बारे में   

सैनिटरी पैड (Sanitary Pads) को लेकर हाल ही में एक स्टडी हुई. इसमें पैड्स के इस्तेमाल को कैंसर (Cancer) से जोड़ा गया. एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक ने इस स्टडी को किया. इसे लेकर डॉ क्यूटरस (Dr Cutreus) के रूप में जानी जाने वालीं डॉक्टर तनेया कहती हैं कि इसमें कई सारे लूपहोल हैं.

सैनिटरी पैड्स (प्रतीकात्मक तस्वीर)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 13 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 9:32 AM IST
  • रिसर्च में कई गलतियां
  • देश में बहुत कम महिलाएं करती हैं सेनिटरी पैड्स का इस्तेमाल 

सैनिटरी पैड को लेकर हाल ही में एक स्टडी हुई जिसमें बताया गया कि पैड्स के इस्तेमाल से कैंसर होने का खतरा बढ़ सकता है. एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक में प्रोग्राम कोर्डिनेटर और इस स्टडी में शामिल डॉक्टर अमित ने बताया कि सैनिटरी पैड्स में कई ऐसे कैमिकल मिले हैं, जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक हैं. इसमें भारत में सैनिटरी नैपकिन बेचने वाले 10 ब्रांड्स के प्रॉडक्ट्स को शामिल किया गया. स्टडी में पाया गया कि सभी सैंपलों में थैलेट्स (Phthalates) और वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOCs) मिले हैं, जो कैंसर की सेल्स बनाने में सक्षम होते हैं. स्टडी में कहा गया कि सैनिटरी नैपकिन के दो ब्रांड, जिसमें सोफी एंटीबैक्टीरियल और प्लश प्योर कॉटन शामिल हैं में थैलेट्स की मात्रा यूरोपीय संघ (European Standard Limit) के मानक 0.1% से अधिक थी. स्टडी में ये भी कहा गया है भारत में सेनेटरी पैड्स में थैलेट्स पर कोई लिमिट नहीं लगाई जाती है.

हालांकि, कई डॉक्टर्स ने इस स्टडी पर आपत्ति जताई है. उनकी मानें तो इस स्टडी में कई सारी टेक्निकल गलतियां हैं. इसके अलावा कई सारी ऐसी बातें हैं जिन्हें इसमें बताया जाना चाहिए था लेकिन नहीं बताया गया है. 

स्टडी में किया गया है वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड और थैलेट्स का जिक्र 

इस रिसर्च को लेकर GNT डिजिटल ने डॉक्टर तनेया (Dr. Tanaya Narendra) से बात की. डॉ. क्यूटरस (Dr Cutreus) के रूप में जानी जाने वालीं डॉक्टर तनेया कहती हैं कि इसमें कई सारे लूपहोल हैं. डॉक्टर तनेया कहती हैं, “सेनिटरी पेड्स में कुछ कंपाउड्स होते हैं जिन्हें हम वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOC) कहते हैं. ये हर चीज से रिलीज होते हैं. ये हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं. ये हर चीज में मौजूद हैं, जैसे पेंट, नेल पॉलिश आदि. लेकिन एक सेफ लिमिट होती है जिसमें हम वीओसी अब्सॉर्ब कर सकते हैं. इसके अलावा थैलेट्स (Phthalates) होते हैं. ये भी एक ऐसा केमिकल कंपाउंड होता है, जो कैंसर का कारण हो सकता है और इनसे कई बीमारी हो सकती हैं. हालांकि, जैसा सभी केमिकल कंपाउंड के साथ होता है कि एक लेवल पर ही हम उनका इस्तेमाल कर सकते हैं. ये ठीक ऐसा ही है जैसे बहुत ज्यादा पानी पीने से भी इंसान मर सकता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि पानी खराब चीज है या हम पानी पीना छोड़ दें. मेडिसिन में कहा जाता है डोज मैक्स द पोइजन यानि किसी भी कंपाउंड का अच्छा असर या खराब असर उसकी डोज पर निर्धारित करता है. हम कितनी डोज ले रहे हैं कितनी मात्रा में इसपर निभर करता है.”

क्या हैं रिसर्च की टेक्निकल गलतियां?

दरअसल, रिपोर्ट में एनजीओ ने कुछ सेनिटरी पैड्स की जांच की और पाया कि उसमें थैलेट्स और वीओसी की जो मात्रा है वो निर्धारित मात्रा से ज्यादा है. और ये इतनी ज्यादा थी कि इनके अनुसार इनसे कैंसर होता है. इसपर डॉक्टर तनेया कहती हैं, “ये ठीक इसी तरह है कि जैसे धूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए क्योंकि धूप से कैंसर हो सकता है. इसके अलावा, इस स्टडी में कोई दूसरा ऑप्शन नहीं बताया गया है कि अगर महिलाएं पैड्स इस्तेमाल न करें तो फिर उसकी जगह पर क्या करें? इतना ही नहीं जब मैंने कई सेनिटरी पैड्स की कंपनियों से बात की तो उनसे जुड़े एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिस तरह से ये रिसर्च की गई है जिसमें इन्होंने वीओसी और थैलेट्स की मात्रा पता की गई है वो एक प्रैक्टिकल तरीका नहीं है. जिस साइंटिफिक मेथड को इन्होंने इस्तेमाल किया है उससे हमें एलिवेटेड नंबर्स मिलते हैं. इसके अलावा जो टेबल दी गई है उसमें भी गलती है.”

टेबल

यहां दी गई टेबल में सभी टेस्ट किए गए सैनिटरी नैपकिन में थैलेट के लेवल को प्रति अरब भागों में बताया गया है. अब, सभी थैलेट्स जोड़कर EU लिमिट 0.1% है, जो 1000 पीपीएम या 1000,000 पीपीबी है. इसमें सोफी एंटीबैक्टीरियल में 26,750 पीपीबी थैलेट्स और प्लश प्योर कॉटन में 32,110 पीपीबी फेथेलेट्स हैं. यानि ये ईयू की 1000,000 पीपीबी की लिमिट से ज्यादा नहीं हैं. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पब्लिकेशन में बुनियादी गणित की गलतियां हैं. 

यहां देखें पूरा इंटरव्यू-

देश में बहुत कम महिलाएं करती हैं सेनिटरी पैड्स का इस्तेमाल 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) की रिपोर्ट के अनुसार, 15-24 साल कीलगभग 50 प्रतिशत महिलाएं अभी भी माहवारी (Periods) के समय लिए कपड़े का उपयोग करती हैं. इसका कारण पीरियड्स के बारे में कम जागरूकता और सही रिसोर्सेस तक उनकी पहुंच न होना है. एक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि गंदे कपड़े का इस्तेमाल बार बार करना महिलाओं के लिए जानलेवा हो सकता है. डॉक्टर तनेया इसे लेकर कहती हैं, “हमारे देश में पहले से ही बहुत कम महिलाएं के पास सेनिटरी पैड्स का एक्सेस है. कुछ आंकड़ों के मुताबिक केवल 12% ऐसी महिलाएं हैं जो पैड्स का इस्तेमाल करती हैं. मेरा मानना है कि अगर आप किसी चीज को इस्तेमाल करने से मना कर रहे हैं तो आपको ये भी बताना चाहिए कि और क्या इस्तेमाल किया जा सकता है.”

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