कोविड महामारी के करीब 4 साल बाद ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) ने माना है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन के दुर्लभ साइड इफेक्ट्स (Rare side effect) हो सकते हैं. हालांकि कंपनी ने वैक्सीन के पक्ष में अपने तर्क भी रखे हैं.
एस्ट्राजेनेका वही कंपनी है जिसके फॉर्मूले पर भारत में कोविशील्ड वैक्सीन (Covishield Vaccine) तैयार की गई है. इसका निर्माण अदार पूनावाला की सीरम इंस्टीट्यूट (Serum Institute of india) ने किया है. भारत में करोड़ों लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन ही लगाई गई है.
कब और कैसे शुरू हुआ ये मामला
एस्ट्राजेनेका के खिलाफ ब्रिटेन के जेमी स्कॉट नाम के शख्स ने मुकदमा दर्ज कराया है. उनका आरोप है कि वैक्सीन लगवाने के बाद उनकी हालत खराब हुई. शरीर में खून के थक्के बनने का सीधा असर उनके दिमाग पर पड़ा. आज वे थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम की समस्या से जूझ रहे हैं. स्कॉट के ब्रेन में इंटर्नल ब्लीडिंग भी हुई थी.
स्कॉट का आरोप है कि कंपनी ने इसके असर को लेकर गलत जानकारी दी. एस्ट्राजेनेका के खिलाफ हाईकोर्ट में 51 केस चल रहे हैं. सभी का आरोप है कि इस वैक्सीन से उन्हें गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा और कई लोगों ने अपनी जान भी गवां दी. पीड़ितों ने कंपनी से करीब 1 हजार करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा है.
इस पूरे मामले में हमने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के चिकित्सक और कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मोहसिन वली से बातचीत की. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश...
डॉ. वली कहते हैं, थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम ऑटोइम्यून बीमारी है. कुछ लोगों में ये डायग्नोस भी नहीं हो पाता. वैक्सीन के अलावा ये इडियोपैथिक की वजह से भी हो सकता है यानी जहां हमें बीमारी के कारण का पता ही नहीं चल पाता. कोविशील्ड वैक्सीन लगाने वाले देशों के अलावा भी कुछ देशों में ये बीमारी देखने को मिली है. कोविशील्ड के साइडइफेक्ट mRNA वैक्सीन की तुलना में बेहद कम दिखाई दिए हैं.
डॉ. मोहसिन वली जोर देकर कहते हैं कि कोविड और लॉन्ग कोविड के लक्षण बेहद कॉमन हैं, अब ऐसी स्थिति में ये पता लगाना मुश्किल है कि ये साइड इफेक्ट वैक्सीन की वजह से हुए हैं या लॉन्ग कोविड की वजह से. भारत के परिप्रेक्ष्य में इसकी रिसर्च की जानी चाहिए
हाल ही में ICMR ने अपनी रिसर्च में कहा था कि हमारी दोनों वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित हैं. इसलिए भारतीयों को वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है. जिन लोगों ने भारत में कोविशील्ड भारत में ली है उन्हें अगर किसी तरह के साइड इफेक्ट होने होते तो अब तक हो चुके होते.
इन्हें हमें वैक्सीन से अलग परिप्रेक्ष्य में देखना होगा. हमारे यहां ICMR ने पूरी रिसर्च की है. इसलिए कम से कम भारत के मामले में ये कहा जा सकता है कि जिन लोगों को कोविड का संक्रमण हुआ है उनमें लॉन्ग कोविड के साइड इफेक्ट भी देखने को मिले. इस साइड इफेक्ट में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम भी शामिल है.
इंटर्नल ब्लीडिंग, शरीर में चकत्ते पड़ता, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट में क्लॉटिंग आदि टीटीएस के लक्षणों में आता है. इसमें थ्रॉम्बोसिस भी हो सकता है और ब्लीडिंग भी हो सकती है. थ्रॉम्बोसिस क्लॉटिंग को कहते हैं और ब्लीडिंग का संबंध हैमरेज से है. कोविड के वायरस से ये दोनों चीजें संभव हैं.
'इसी वैक्सीन से करोड़ों लोगों की जान भी बची'
जब हम वैक्सीन के साइड इफेक्ट की बात करते हैं तो हमें ये बात भी करनी चाहिए कि इस वैक्सीन ने कितने करोड़ों लोगों की जान बचाई है. मेडिकल टर्म में कहा जाता है कि अगर फायदा साइड इफेक्ट से ज्यादा हो तो उस दवाई को Relatively Safe माना जाता है. किसी भी दवाई या वैक्सीन के साइड इफेक्ट का मूल्यांकन करने के लिए हमें 10 साल का समय चाहिए लेकिन इस वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल दिया गया था ताकि लोगों की जान बचाई जा सके.
लॉन्ग कोविड एक ऐसी बीमारी है, जिसका असर हम अभी तक देख रहे हैं. ज्यादातर वैक्सीन के साइड इफेक्ट तुरंत होते हैं, जोकि पहले से बताए गए थे. अब जो साइड इफेक्ट की बात सामने आ रही है वो रिसर्च का विषय है. भारत में इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि कोविशील्ड वैक्सीन से ये सिंड्रोम होता है.
हाल ही में ली है वैक्सीन तो लक्षण दिख सकते हैं
ब्रिटिश हाईकोर्ट में जमा किए गए दस्तावेजों में एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी वैक्सीन से कुछ मामलों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है. टीटीएस दुर्लभ लेकिन गंभीर बीमारी है, जिन लोगों को हाल ही में टीके लगाए गए हैं, उन्हें लक्षणों को लेकर जागरूक रहना बेहद जरूरी है. टीकाकरण के कुछ हफ्तों के भीतर TTS बीमारी से जुड़े कोई लक्षण दिखें तो डॉक्टर से संपर्क करें. टीटीएस की प्रारंभिक पहचान और उपचार जरूरी है.
क्या लोगों को घबराने की जरूरत है?
सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि क्या जिन लोगों ने कोविशील्ड ली है, उन्हें वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स अब भी हो सकते हैं? तो इसका जवाब है नहीं. डॉक्टर्स की मानें तो टीके के साइड इफेक्ट आमतौर पर टीकाकरण के कुछ हफ्तों (1-4 सप्ताह) के भीतर होते हैं. इसलिए भारत में जिन लोगों ने 2 साल पहले वैक्सीन ली थी, उन्हें अब चिंता करने की जरूरत नहीं है.
TTS वैक्सीन ना लगवाने की स्थिति में भी हो सकता है
थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) में शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है. कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाने की स्थिति में भी थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम हो सकता है. इसके दुष्प्रभाव अति से अति दुर्लभ मामलों में ही सामने आ सकते हैं.
वैज्ञानिकों ने 2021 में भी इस वैक्सीन से होने वाली एक बीमारी इम्यून थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (VITT) की पहचान की थी. वहीं, एस्ट्रजेनेका ने कहा, हमारी रेगुलेटरी अथॉरिटी सभी दवाइयों और वैक्सीन के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए सभी मानकों का पालन करती है.
टीटीएस के सामान्य लक्षण
टीटीएस के लक्षणों में गंभीर या लगातार सिरदर्द, धुंधला दिखना, सांस लेने में कठिनाई, छाती में दर्द, पैर में सूजन, लगातार पेट दर्द रहना, इंजेक्शन वाली जगह से हटकर स्किन पर छोटे खून के धब्बे शामिल हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि टीटीएस कोई नई बीमारी है. ये बीमारी साल 1924 में ही सामने आई थी, जब 16 वर्षीय लड़की में इसका केस मिला था.