Gene Editing Tool: ब्रिटेन ने दिखाई जीन थेरेपी को हरी झंडी, ब्लड डिसऑर्डर से जुड़ी बीमारी का हो सकेगा इलाज!

कैसगेवी एक जीन-एडिटिंग थेरेपी है. इसमें हीमोग्लोबिन एन्कोडिंग के लिए जिम्मेदार जीन को मॉडिफाई करने के लिए CRISPR-Cas9 का उपयोग किया जाता है. जीन BCL11A को जब मॉडिफाई किया जाता है.

Gene Editing Tool
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 20 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 12:46 PM IST
  • यूके की मंजूरी और क्लिनिकल ट्रायल
  • भारत में हो सकता है इससे फायदा 

दुनिया में कई हजार किंग ब्लड डिसऑर्डर से जुड़ी बीमारियों का सामना कर रहे हैं. लेकिन अब इसका इलाज हो सकेगा. इसे लेकर ब्रिटेन ने दुनिया की पहले जीन थेरेपी को हरी झंडी दिखा दी है. यूनाइटेड किंगडम में मेडिसिन एंड हेल्थ केयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (MHRA) ने जीन थेरेपी को मंजूरी दे दी है. इसकी मदद से दो ब्लड डिसऑर्डर- सिकल सेल डिजीज (SCD) और बीटा-थैलेसीमिया को ठीक किया जा सकेगा. कैसगेवी नाम की थेरेपी, में जीन-एडिटिंग टूल क्रिस्प्र का उपयोग किया जाता है और भारत के लिए गेम-चेंजर हो सकती है. बता दें, दुनिया में सबसे ज्यादा थैलेसीमिया और एससीडी के रोगी भारत में हैं. 

भारत को क्रिस्पर की जरूरत क्यों है?

भारत एससीडी और बीटा-थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों की भारी संख्या से जूझ रहा है, जिसमें 2 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हैं. अकेले थैलेसीमिया मेजर में सालाना 10,000-15,000 बच्चों का जन्म होता है, जिन्हें बार-बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है. ये पूरी यात्रा काफी चुनौतीपूर्ण होती है. भारत में इस अभूतपूर्व तकनीक को लागू करने की लागत $1.2 मिलियन से $1.7 मिलियन के बीच होने का अनुमान है. 

यूके की मंजूरी और क्लिनिकल ट्रायल

वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स और सीआरआईएसपीआर थेरेप्यूटिक्स के बीच सहयोग के बाद इसे एमएचआरए की मंजूरी भी मिल गई है. वहीं अगर ट्रायल की बात करें, तो इसमें 45 सिकल-सेल वाले रोगियों का टेस्ट किया गया. इनमे से 28 ने ट्रीटमेंट के बाद कम से कम एक साल तक दर्द से पूरी तरह राहत का अनुभव किया. इसी तरह, गंभीर बीटा-थैलेसीमिया के केस में, 42 में से 39 प्रतिभागी कम से कम एक साल के लिए ब्लड इंफेक्शन से मुक्त किया गया. 

कैसगेवी कैसे काम करता है:

अब अगर कैसगेवी (Casgevy) की बात करें, तो ये एक जीन-एडिटिंग थेरेपी है. इसमें हीमोग्लोबिन एन्कोडिंग के लिए जिम्मेदार जीन को मॉडिफाई करने के लिए CRISPR-Cas9 का उपयोग किया जाता है. जीन BCL11A को जब मॉडिफाई किया जाता है. इससे एक विशिष्ट प्रकार के हीमोग्लोबिन बनने बंद हो जाते हैं. कैसगेवी शरीर को हीमोग्लोबिन का उत्पादन करने में सक्षम बनाता है. 

भारत में हो सकता है इससे फायदा 

भारत में हेल्थकेयर प्रोफेशनल जीन थेरेपी की टेस्टिंग और ट्रीटमेंट शुरू करने का आग्रह कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, डॉ. चंद्रकांत एमवी टेक्नोलॉजी से जुड़े जोखिमों और नैतिक चुनौतियों से निपटने के लिए एक मजबूत नियामक ढांचे की जरूरत पर जोर देते हैं. ऐसे में भारत में जीन थेरेपी से कई लोगों की मदद की जा सकती है. 

 

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