महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर लोग खुल कर बात करना आज भी पसंद नहीं करते. गांव और पिछड़े इलाक़ों में महिलाओं को अपने स्वास्थ्य की इन समस्याओं की वजह से कई बार गम्भीर बीमारी हो जाती हैं. गोरखपुर की अनु सिंह ने इन मुद्दे को न सिर्फ़ खुलकर लोगों के बीच ले जाने की ठानी बल्कि यूपी, बिहार, झारखंड में महिलाओं का नेट्वर्क तैयार किया है.
अनु को गोरखपुर की गलियों में महिलाओं को समझते हुए अक्सर देखा जा सकता है. समूह में या अकेले में, जहां भी उनको मौक़ा मिलता है महिलाओं को उनके स्वास्थ्य की कुछ ज़रूरी बातें अनु सिंह याद दिलाती हैं.
बैंक की नौकरी छोड़ शुरू किया जागरूकता अभियान
अनु सिंह बताती हैं कि किस तरह माहवारी (पीरियड्स) में कपड़े और पत्ते इस्तेमाल करने से महिलाओं को गम्भीर बीमारी हो जाती हैं. दरअसल, अनु ने न सिर्फ़ महिलाओं को समझाने का ज़िम्मा उठाया है बल्कि वह उनको बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन भी कम मूल्य पर उपलब्ध कराती हैं.
पर कैसे शुरू हुआ ये सब? बैंक में अच्छी नौकरी कर रही अनु के जीवन में बदलाव तब आया जब उन्होंने अपने आस पास महिलाओं और लड़कियों को सिर्फ़ सफ़ाई के अभाव में माहवारी के दौरान परेशान होते देखा. उन्होंने महिलाओं के स्वास्थ्य के मुद्दे को अपना लक्ष्य बनाया. बैंक की नौकरी छोड़कर पूरी तरह इस पर काम करना शुरू कर दिया।
मुश्किलों को किया सामना पर नहीं मानी हार
अनु ने नौकरी छोड़ने के बाद 2018 में अपनी संस्था बनायी. पर उनकी राह इतनी आसान नहीं थी. माहवारी और सैनिटेरी नैपकिन जैसे विषय पर खुले तरीक़े से बात करने पर उनको विरोध का सामना करना पड़ा. गांव में लोग बुरा भला कहते. और तो और कई दोस्तों ने भी इस विषय पर अनु की सक्रियता की वजह से उनका साथ छोड़ दिया.
पर अगर कुछ मन में ठान लिया जाए तो हर रुकावट को पार करने की ताक़त आ ही जाती है. अनु भी धीरे-धीरे आगे बढ़ती गयीं. अनु को राह में कुछ साथी भी मिलते रहे. अनु महिलाओं को माहवारी में कपड़े, राख जैसी चीजों के इस्तेमाल के खिलाफ जागरूक करने के साथ-साथ, यह भी बताती हैं कि बाजार में उपलब्ध सामानय सैनिटरी नैपकिन से ज्यादा सुरक्षित बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन हैं.
खुद बना रही हैं बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन
अनु ने देखा कि महिलाओं के पास किफायती सैनिटरी नैपकिन विकल्प नहीं है तो उन्होंने खुद बायोडिग्रेडेबल सैनिटेरी नैपकिन बनाने की यूनिट की शुरुआत की. अब वह एंटी-बैक्टीरियल वाली सैनिटरी नैपकिन भी तैयार करवाती हैं.
बनाया 5,000 महिलाओं का नेटवर्क
आज अनु का काम उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों के अलावा बिहार, झारखंड, असम तक भी फैला है. अनु के इस काम में बहुत से पुरुष वॉलंटियर्स भी जुड़े हैं. साथ ही, उन्होंने कई छोटे शहरों की महिलाओं को जोड़ा है. अनु ने गांव-गांव जाकर महिलाओं को समझाने के लिए क़रीब 5,000 महिलाओं का नेटवर्क तैयार किया है, जो ज़िलों और गांव में महिलाओं को स्वास्थ्य की जानकारी देती हैं.
अनु अपनी मैन्यूफैक्चरिंग युनिट में महिलाओं को गोजगार भी दे रही है. सैनिटेरी नैपकिन की पैकिंग से लेकर गांव-क़स्बों में इसे बिक्री के लिए व्यक्तिगत रूप से उपलब्ध कराने का काम भी महिलाएं करती हैं. स्वास्थ्य पर जागरूकता के साथ-साथ उन्हें रोज़गार के अवसर भी मिल रहे हैं.