हाल ही में, गुड़गांव ट्रैफिक पुलिस ने एक ब्रेन-डेड व्यक्ति के अंगों को आर्टेमिस अस्पताल से इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट तक कम समय में पहुंचाने के लिए 19 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर मार्ग बनाया. इन अंगों को फ्लाइट से जयपुर और हैदराबाद पहुंचाना था.
19 किलोमीटर की इस दूरी को मात्र 13 मिनट में तय किया गया. आम तौर पर, नियमित ट्रैफिक घंटों के दौरान इस रास्ते को कवर करने में 30-35 मिनट से ज्यादा समय लगता है. बताया जा रहा है कि स्वास्थ्य कर्मी दो एंबुलेंस में अंगों को लेकर सीमा तक पहुंचे, जहां से दिल्ली पुलिस ने उनकी एयरपोर्ट तक पहुंचने में मदद की.
बची 8 लोगों का जान
बताया जा रहा है कि 25 वर्षीय भूपेंद्र सिंह सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे. बाद में जब उन्हें आर्टेमिस में भर्ती कराया गया तो उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया. उनके माता-पिता ने अपने बेटे के अंगों को दान करने का फैसला किया. जिस कारण आज 8 लोगों को नया जीवन मिला है.
मृतक के पिता हरीश सिंह का कहना है कि उनका बेटा उन्हें छोड़ गया लेकिन अब आठ परिवारों में जिवित है. भुपेंद्र के लीवर और एक किडनी को गुड़गांव के एक मेडिकल फैसिलिटी में भेजा गया. उनके दिल को जयपुर में और उनके फेफड़ों को हैदराबाद भेजा गया. दूसरी किडनी को आर्टेमिस अस्पताल में ही ट्रांसप्लांट के लिए रखा गया.
क्या है ग्रीन कॉरिडोर
ग्रीन कॉरिडोर सिस्टम ऑर्गन ट्रांसप्लांट (अंग प्रत्यारोपण) में तेजी लाने और जीवन बचाने में मदद करने का एक तरीका है. इसके तहत किसी अंग को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के यातायात विभाग सहयोग करता है ताकि ट्रांसपोर्ट के समय को 60-70 प्रतिशत से भी कम किया जा सके.
इस सिस्टम को पहले मेडिकल इमेरजेंसी को संभालने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, और अब इसे दान किए गए अंगों के समय पर ट्रांसफर के लिए तैयार किया जाता है. 'ग्रीन कॉरिडोर' से मतलब ऐसे रूट से है जिसे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल या एयरपोर्ट आदि तक बनाया जाता है.
इस रास्ते को ऐसे प्रबंधित किया जाता कि एंबुलेंस को पूरे रास्ते सिर्फ ग्रीन सिग्नल मिले और समय पर ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए पहुंच जाए.