Nomophobia: मोबाइल से पल भर के लिए भी नहीं रह पाते हैं दूर? होने लगती है घबराहट! हो सकते हैं नोमोफोबिया के शिकार, जानें क्या है यह बीमारी

मोबाइल फोन हमारी जिंदगी का जरूरी हिस्सा है लेकिन कुछ लोगों के लिए ये लत बन चुका है. अगर आप फोन को खुद से दूर नहीं कर पाते हैं. फोन के बिना बेचैनी और घबराहट होने लगती है तो सावधान हो जाइए. एक रिपोर्ट की मानें तो 60% यूथ नोमोफोबिया की लत का शिकार है.

Girl Using Phone: Photo: Pexels
अपूर्वा राय
  • नई दिल्ली,
  • 26 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 4:33 PM IST
  • मोबाइल फोन लत की तरह
  • ऐसे पहचानें फोबिया के लक्षण

हर वक्त फोन स्क्रॉल करना, फोन के बिना बेचैन हो जाना, रात को अचानक उठकर फोन देखना, हर वक्त फोन को चार्ज करना... या फिर बिना किसी वजह से फोन चेक करते रहना...क्या आप भी इसी तरह की स्थिति से गुजर रहे हैं. अगर हां तो हो सकता है आप नोमोफोबिया के शिकार हों.

नहीं रह पाते फोन के बिना?
अगर आप फोन को खुद से दूर नहीं कर पाते हैं. फोन के बिना बेचैनी और घबराहट होने लगती है तो सावधान हो जाइए. एक रिपोर्ट की मानें तो 60% यूथ नोमोफोबिया की लत का शिकार है. अगर आप भी उन लोगों में से हैं जो लगातार स्मार्टफोन यूज करते हैं तो आप भी नोमोफोबिया के शिकार हो सकते हैं. 

नोमोफोबिया क्या है और ये क्यों होता है
यह शब्द 2009 में पहली बार इस्तेमाल किया गया था और जिसका मतलब है "नो-मोबाइल-फोन-फोबिया". यानी फोन के बिना रहने से डरना. WHO ने बेशक नोमोफोबिया को मानसिक बीमारी के रूप में क्लासीफाई नहीं किया है, लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स इसे चिंताजनक स्थिति मानते हैं क्योंकि वैश्विक आबादी में से 80.7% के पास फोन है.

नोमोफोबिया के मनोवैज्ञानिक परिणाम एंग्जाइटी और डिप्रेशन है. ऐसा माना जाता है कि मोबाइल फोन हमें एक दूसरे के साथ संपर्क में मदद करते हैं लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब ऑनलाइन रिश्ते आमने-सामने के रिश्तों की जगह ले लेते हैं. घंटों बैठकर फोन में उन लोगों से बातें करना जिनसे आप जीवन में कभी मिले ही नहीं हैं, आपके उन रिश्तों को प्रभावि कर सकते हैं जो आपके सुख दुख के साथी हैं.

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नोमोफोबिया के लक्षण क्या हैं?
मोबाइल फोन न होने पर डर, चिंता और घबराहट की भावना पैदा होना.
मोबाइल को कभी स्विच ऑफ न करना.
हर वक्त फोन की बैटरी को चार्ज रखने के लिए परेशान रहना.
लगातार मोबाइल जांचते रहना कि कहीं कोई कॉल, मैसेज तो नहीं आया.
इंटरनेट न चलने पर चिड़चिड़ा महसूस होना.
रात को उठकर अचानक फोन खोजने लगना.
फोन चलाने के लिए लोगों से मिलना जुलना बंद करना

नोमोफोबिया की वजह से और भी बीमारियां
नोमोफोबिया अपने आप में कई बीमारियों का न्योता है. मोबाइल फोन की लत से नींद आने में मुश्किल होती है. 70 फीसदी लोग मोबाइल स्क्रीन को देखते समय आंखें सिकोड़ते हैं इसे विजन सिंड्रोम कहा जाता है. जिसमें पीड़ित को आंखें सूखने और धुंधला दिखने की शिकायत होती है. लगातार फोन का इ्स्तेमाल करने पर कंधे और गर्दन का दर्द बढ़ सकता है.

क्या कहते हैं आंकड़े
84% लोग ये मानते हैं कि वे एक दिन भी अपने फोन के बिना नहीं रह सकते हैं.
37% एडल्ट्स और 60% टीनएजर्स ने माना कि उन्हें अपने स्मार्टफोन की लत है. वो एक पल भी फोन के बिना नहीं रह पाते हैं.
45% स्मार्टफोन यूजर्स ने माना कि फोन खो जाने पर उन्हें घबराहट या चिंता सताती है.
20% हर 10 मिनट में अपना फोन चेक करते हैं.
50% स्मार्टफोन यूजर्स फिल्म देखने के दौरान फेसबुक चेक करते हैं.

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नोमोफोबिया से कैसे बचा जा सकता है?

  • मोबाइल इस्तेमाल करने की लिमिट सेट करें, जैसे सोते वक्त कभी भी फोन का इस्तेमाल न करें. 

  • हर जगह फोन लेकर जाने से बचें. इससे आपकी फोन की लत धीरे-धीरे कम होने लगेगी.

  • सबसे जरूरी चीजों के ही नोटिफेकेशन ऑन रखें. फिजूल नोटिफिकेशन को ऑफ कर दें. इससे आपका ध्यान फोन पर कम जाएगा.

  • मोबाइल चलाने के अलावा कुछ प्रोडक्टिव काम करने की भी कोशिश करें, खाली वक्त में वॉक पर जाएं, किताबें पढ़ें, टीवी देखें.

  • मोबाइल के साथ समय बिताने के बजाय अपने दोस्‍तों, करीबियों और परिवार के सदस्‍यों के साथ समय बिताएं.

  • सोशल मीडिया से दूरी बनाएं. आजकल लोग सबसे ज्यादा इंस्टाग्राम पर रील्स देखने में समय बिताते हैं. सोशल मीडिया के इस्तेमाल का समय तय करें, बेवजह घटों स्क्रॉल करने से बचें.

  • कुछ एप्लिकेशन जिन्हें हम समय बर्बाद करने वाला मानते हैं, उन्हें अनइंस्टॉल कर दें.

  • अगर हम बातचीत कर रहे हैं, खा रहे हैं, दूसरे लोगों के साथ फुरसत के पल बिता रहे हैं तो कभी फोन पर ध्यान न दें.

 

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