जहरीली और दम घुटने वाली हवाओं से बचना है तो करें आयुर्वेद के इन रामबाण औषधियों का सेवन

काढ़े की खासियत है कि वह फेफड़ों को मजबूती देता है क्योंकि उसमें बंसलोचन है जिसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है साथ ही उसमें ब्रोंकास यानी कि फुसफुस होता है जो कपड़ों को मजबूत करता है.

Delhi Air pollution
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 04 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:32 PM IST
  • तुलसी एंटीऑक्सीडेंट का काम करती है.
  • इलायची कफ को गले और फेफड़ों में जमा नहीं होने देती.

दिन-ब-दिन प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है. जनमानस को जहरीली दम घुटने वाली हवाओं में रहना पड़ रहा है जिसकी वजह से लोगों की इम्युनिटी के साथ फेफड़ों में दिक्कत हो रही है. ऐसे में बढ़ते प्रदूषण और भाग दौड़ वाली जिंदगी में हम अपने शरीर का ध्यान नहीं दे पा रहे हैं जिसके चलते स्वास्थ का स्तर गिरता जा रहा है. लेकिन यदि हम अपनी दिनचर्या में थोड़ा सा समय निकाल कर आयुर्वेदिक की तरफ रुख करेंगे तो प्रदूषण से होने वाले दुष्परिणाम से लड़ सकते हैं. डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल के आयुर्वेदिक विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर सुशील पांडे ने प्रदूषण से होने वाले दुष्परिणाम से बचने के लिए जनमानस को आयुर्वेदिक काढ़ा पीने की सलाह दी है. डॉक्टर सुशील पांडे ने बताया कि काढ़ा लोगों के लिए बहुत उपयोगी है.

काढ़े की खासियत है कि वह फेफड़ों को मजबूती देता है क्योंकि उसमें बंसलोचन है जिसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है साथ ही उसमें ब्रोंकास यानी कि फुसफुस होता है जो कपड़ों को मजबूत करता है. काढ़े में मुलेठी का प्रयोग होता है जो गले के संक्रमण को खत्म करता है और साथ ही बलगम को भी जमा नहीं होने देता और यदि बलगम जमा है तो उसे बाहर निकालने में मदद करता है. काढ़े में तुलसी का भी प्रयोग करते हैं जो एंटीऑक्सीडेंट का काम करती है. तुलसी के अलावा दालचीनी का भी इस्तेमाल किया जाता है जो ब्लड थिनर यानी की रक्त को पतला करने में सहायक होता है ताकि सरकुलेशन का प्रभाव ठीक से फेफड़ों में बना रहे और उस पर कोई दबाव भी न आए वही गिलोय इम्युनिटी बढ़ाता है.

डॉ सुशील पांडे ने जानकारी साझा करते हुए बताया कि इलायची और पीपली का भी उपयोग किया जाता है पीपली पित्त शामक है और कफ़ को काटती है. इलायची कफ को गले और फेफड़ों में जमा नहीं होने देती. आरएमएल अस्पताल के आयुर्वेदिक डॉक्टर पांडे बताते हैं कि बरसात के मौसम के बाद जो ठंडी का मौसम होता है, उसमें प्रदूषण में नमी होती है और वह हमारे फेफड़ों में नाक और मुंह के रास्ते से प्रवेश कर जाता है. हमारे फेफड़ों में कफ का संचय हो जाता है. इस काढ़े की सबसे खासियत यह है कि जो यह मौसम चल रहा है. बरसात के बाद ठंडी का उसमें या फेफड़ों को मजबूत करके कफ कोल्ड नहीं होने देता और इसका एक सबसे बड़ा प्लस पॉइंट यह है कि काढ़ा एसिडिटी नहीं बनाता है, जिससे गैस नहीं बनती है. यह दोनों आयुर्वेदिक औषधियां शरीर में गैस बनाती हैं. इस काढ़े का कोई भी साइड इफेक्ट नहीं है. डॉ सुशील ने इसकी सेवन की विधि भी बताई जिसमें उन्होंने बताया कि इस काढ़े का सेवन चाय के तौर पर एक कप सुबह और एक कप शाम को किया जा सकता है. दो टाइम सेवन करने से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं और प्रदूषण से होने वाले फेफड़ों को नुकसान से बचा जा सकता है. सुबह काम से निकलने से पहले चाय के तौर पर इस्तेमाल करें. डॉक्टर पांडे ने आगे यह भी बताया कि यह सभी आयुर्वेदिक औषधियां पंसारी की दुकान पर आसानी से मिल जाएंगी और लोग या औषधियां लेकर इसे घर पर आसानी से बना सकते हैं.

इस काढ़े का प्रयोग आप नियमित तौर पर जैसे चाय पीते हैं उस तरीके से कर सकते हैं. काढ़े में एक चम्मच औषधीय डालें फिर उसे गरम कर लें. चाय की तरह इसे उबालना नहीं है उसके बाद इसे छानकर पी लें. ढाई सौ ग्राम दालचीनी, ढाई सौ ग्राम नींबू घास, इलायची मुलेठी और बंसलोचन 500-500 ग्राम, इसके अलावा पिपली तुलसी और गिलोय 1-1 ग्राम का प्रयोग करते हैं इन सभी को कूटकर पाउडर बना कर रख लें और फिर दो कप पानी लेकर इसमें एक चम्मच डालकर गर्म करके छानकर इसका सेवन करें. वहीं डॉक्टर सुशील पांडे ने दूसरा सेवन भी बताया और कहा कि लॉन्ग और कपूर को यदि समय-समय पर सूंघा जाए तो यह भी फेफड़ों को मजबूत करते हैं. वहीं तीसरी सेवन बताते हुए डॉ सुशील ने बताया कि थोड़ा-सा सेंधा नमक,फिटकरी और हल्दी को लेकर गुनगुने पानी में मिलाकर गरारा कर लें इससे यह होगा कि यह सारी चीजें गले में संक्रमण नहीं होने देगा और गले से नीचे उसे उतरने भी नहीं देगा. साथ ही फेफड़ों को भी मजबूत रखेगा.

लखनऊ से सत्यम मिश्रा की रिपोर्ट

 

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