भारतीय वैज्ञानिकों ने COVID-19 का मुकाबला करने के लिए बनाया बायोडिग्रेडेबल फेस मास्क, खुद ही कर देता है कीटाणुओं का सफाया

मंत्रालय ने कहा कि पारंपरिक मास्क पहनकर वायरस के ट्रांसमिशन को कंट्रोल करना चुनौतीपूर्ण रहा है, खासकर एयरपोर्ट, अस्पतालों, स्टेशनों और शॉपिंग मॉल जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में जहां वायरस लोड ज्यादा होता है.

भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया बायोडिग्रेडेबल फेस मास्क
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 06 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 12:23 AM IST
  • भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने COVID-19 महामारी से लड़ने के लिए एक सेल्फ-डिसइंफेक्टिंग एंटीवायरल मास्क बनाया है.
  • ये एंटीवायरल मास्क कॉपर बेस्ड नैनोपार्टिकल्स से कोटेड है.

कोरोना महामारी का खतरा अभी थमा नहीं है. दूसरी लहर के बाद कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन ने दुनियाभर में तीसरी लहर का खतरा पैदा कर दिया. अभी दुनिया उससे उबर भी नहीं पायी थी कि हाल ही में ओमिक्रॉन वेरिएंट का भी एक नया सब-वेरिएंट BA.2 सामने आया है जो नई मुसीबत बनता जा रहा है. ऐसे में वैक्सीनेशन के साथ-साथ इस महामारी से बचने का सबसे प्रभावी तरीका है मास्क लगाना और सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करना. कोविड के प्रकोप से बचने के लिए तमाम देशों तमाम देशों ने प्रोटोकॉल निकाले हैं, जिसके तहत मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना और सैनीटाइजर का इस्तेमाल करना जरूरी है. 

मार्केट में तरह-तरह के मास्क मौजूद हैं. जिसमें कपड़े के मास्क, N-95 मास्क, सर्जिकल मास्क जैसे कई ऑप्शन मौजूद हैं. पर हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक नया मास्क बनाया है.  विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने शुक्रवार को जानकारी दी कि भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने COVID-19 महामारी से लड़ने के लिए एक सेल्फ-डिसइंफेक्टिंग एंटीवायरल मास्क बनाया है. ये एंटीवायरल मास्क कॉपर बेस्ड नैनोपार्टिकल्स से कोटेड है. यह COVID-19 के साथ ही कई दूसरे वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण से रोकथाम देता है. मंत्रालय के अनुसार, ये मास्क बायोडिग्रेडेबल, अत्यधिक ब्रीथेबल और धोने योग्य है. 

ज्यादा प्रभावी हैं ये मास्क 

मास्क पहनना वायरस को फैलने से रोकने के लिए महत्वपूर्ण और प्रभावी स्वास्थ्य उपायों में से एक है. ज्यादातर ट्रांसमिशन श्वसन कणों के माध्यम से होता है जो मुख्य रूप से एयरबॉर्न होते हैं. मंत्रालय ने कहा कि पारंपरिक मास्क पहनकर वायरस के ट्रांसमिशन को कंट्रोल करना चुनौतीपूर्ण रहा है, खासकर एयरपोर्ट, अस्पतालों, स्टेशनों और शॉपिंग मॉल जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में जहां वायरस लोड ज्यादा होता है. मंत्रालय के मुताबिक भारतीय बाजार में उपलब्ध महंगे मास्क न तो एंटीवायरल और न ही एंटीबैक्टिरियल गुण प्रदर्शित करते हैं."

 मंत्रालय के मुताबिक वर्तमान फेस मास्क केवल वायरस को फ़िल्टर करते हैं और उन्हें मारते नहीं हैं. इसलिए, अगर मास्क ठीक से नहीं पहने जाते हैं या उन्हें डिस्पोज नहीं किया जाता है, तो वे वायरस का ट्रांसमिशन कर सकते हैं. इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स (एआरसीआई) के शोधकर्ताओं ने नैनो-मिशन परियोजना के तहत बेंगलुरु स्थित एक कंपनी, सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीएसआईआर-सीसीएमबी) और रेसिल केमिकल्स के सहयोग से फेस मास्क विकसित किया जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने स्पॉन्सर किया था. 

सेल्फ-डिसइंफेक्टिंग हैं ये एंटीवायरल मास्क

मंत्रालय ने कहा, "बाहरी परत के रूप में नैनोपार्टिकल कोटेड कपड़े के साथ सिंगल और ट्रिपल लेयर जैसे अलग-अलग डिज़ाइन वाले प्रोटोटाइप मास्क का प्रदर्शन किया गया है. एक सिंगल लेयर मास्क एक नियमित मास्क पर सुरक्षात्मक एंटीवायरल बाहरी मास्क के रूप में फायदेमंद होता है. साधारण मल्टी-लेयर क्लॉथ मास्क की तुलना में COVID-19 ट्रांसमिशन को कम करने के लिए इन सेल्फ-डिसइंफेक्टिंग क्लॉथ मास्क पहनना ज्यादा बेहतर है."

 

 

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