टाटा मेमोरियल अस्पताल जल्द ही खोपोली में आयुर्वेद के माध्यम से कैंसर के रिसर्च और ट्रीटमेंट के लिए समर्पित देश का पहला अस्पताल बनाने जा रहा है. खोपोली में लगभग 20 एकड़ भूमि पर 100 बिस्तरों वाला अस्पताल और अनुसंधान केंद्र स्थापित किया जाएगा.
इस परिसर में कैंसर के लिए आयुर्वेदिक उपचारों की खोज के लिए समर्पित एक अनुसंधान केंद्र होगा. उम्मीद है कि साल 2026 तक अस्पताल और अनुसंधान केंद्र का पूरा हो जाएगा. समसामयिक कैंसर उपचारों से जुड़े वित्तीय बोझ और पर्याप्त दुष्प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए, टाटा मेमोरियल अस्पताल में सिर और गर्दन कैंसर विभाग के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने नवीन समाधानों की आवश्यकता पर जोर दिया।
इन्युनिटी बढ़ाने के लिए दवा
टाटा अस्पताल के कैंसर विभाग (हेड ऐंड नेक) के प्रमुख डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने बताया कि एलोपैथी ट्रीटमेंट काफी खर्चीला है. आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंडिचर है. साथ ही कई साइड इफेक्ट्स भी होते हैं. ट्रीटमेंट के दौरान कुछ मरीजों की स्थिति ऐसी हो जाती है कि वे मुंह से खाना भी नहीं खा पाते. इलाज के दौरान वे काफी कमजोर हो जाते हैं. डॉ पंकज ने बताया कि कैंसर का आज भी कोई कारगर उपचार संभव नहीं है इसलिए ऐसी दवाइयों को डिस्कवर करने पर काम हो रहा है. ये मौजूदा इलाज को बेहतर बनाएगा और कैंसर रोगियों पर वह असरदार होगा. एक बार कैंसर की चपेट में आने से मरीज को उसका साइड इफेक्ट जिंदगी भर सहना पड़ता है. इतना ही नहीं, यह बीमारी दोबारा होने की संभावना भी होती है इसलिए ऐसी दवा के निर्माण पर जोर दिया जा रहा है, जो ट्रीटमेंट खत्म होने के बाद भी मरीज की इम्यूनिटी को बढ़ा सके. मेडिसिनल प्लांट्स व हर्ब्स की मदद से ऐसी दवाइयों की खोज कर रहे हैं, जो मरीजों का कारगर तरीके से इलाज करने में सक्षम हो.
रिसर्च डाटा उपलब्ध
फॉर्मास्यूटिकल कंपनियां आयुर्वेद पर काम नहीं करेंगी, इसलिए टाटा जैसे एकेडमिक इंस्टिट्यूट को पहल करनी होगी. इसके लिए उन जड़ी बूटियों की खोज करनी होगी, जो सदियों से इंसानों के लिए फायदेमंद साबित होती रही हैं. देश में काफी समय से आयुर्वेदिक दवाइयों का उपयोग किया जा रहा है लेकिन इसके फायदे को लेकर अभी कोई डाटा उपलब्ध नहीं है. इसे अब तक प्रूव नहीं किया गया है. यह भारत का पहला कैंसर अस्पताल होगा, जो आयुर्वेद के माध्यम से कैंसर पर शोध और उपचार करेगा. अध्ययन कैंसर के उपचार में दवा संयोजनों की प्रभावशीलता पर जोर देता है. अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए अमलाकी युक्त रसायन चूर्ण, कैंसर के उपचार में क्षमता रखता है.
रिपोर्ट में कहा गया “तो, आयुर्वेद का उपयोग कैंसर में सहायक चिकित्सा के रूप में किया जाता है. आजकल नोनी कैप्सूल का उपयोग सहायक औषधि के रूप में किया जाता है जिसमें नोनी मेन इंग्रेडिएंट होता है और स्कोपोलेटिन जैसे एल्कलॉइड में एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं. आयुर्वेदिक दवाओं में भी साइटोप्रोटेक्टिव क्रिया होती है, इसलिए इसका उपयोग कैंसर रोगियों में सहायक चिकित्सा के रूप में किया जाता है.”
खुद उगाएंगे प्लांट
डॉ. चतुर्वेदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि फार्मास्युटिकल कंपनियां आमतौर पर आयुर्वेद की उपेक्षा करती हैं, जिससे टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) जैसे संस्थानों को इन पारंपरिक औषधीय पौधों के अप्रयुक्त संभावित लाभों का सक्रिय रूप से पता लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है, जिन्होंने लंबे समय से मानव कल्याण में योगदान दिया है. उन्होंने कहा, "इस नए अस्पताल और अनुसंधान केंद्र की भूमिका अनुसंधान और यह निर्धारित करने की होगी कि क्या ये आयुर्वेदिक दवाएं वास्तव में कैंसर के इलाज में सहायक हैं."
कई बार आपने भी सोशल मीडिया जैसे वॉट्सऐप, फेसबुक, यू-ट्यूब पर इस तरह के विज्ञापन देखे होंगे जो कुछ मेडिसिनल प्लांट और हर्ब्स की मदद से कैंसर को ठीक करने का दावा करते हैं, जोकि गलत है. डॉ. चतुर्वेदी ने बताया वो महाराष्ट्र सरकार द्वारा दी गई लगभग 20 से 21 एकड़ जमीन पर इन प्लांट्स को उगाएंगे और उसका संरक्षण करेंगे.