International Stuttering Awareness Day: बच्चे के हकलाने के पीछे हो सकते हैं कई कारण.... माता-पिता को रखना चाहिए इन बातों का ख्याल

दुनियाभर में 22 अक्टूबर को 'International Stuttering Awareness Day' सेलिब्रेट किया जाता है. यह दिन लोगों में हकलाने से जुड़ी बातों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए समर्पित है.

International Stuttering Awareness Day
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 22 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 12:38 PM IST

हर साल 22 अक्टूबर को दुनियाभर में 'International Stuttering Awareness Day' (अंतर्राष्ट्रीय हकलाना जागरूकता दिवस) मनाया जाता है. यह दिन उन लोगों को समर्पित है जिन्हें किसी भी तरह की स्पीच प्रॉब्लम है और जो हकलाते हैं. इस दिन को सेलिब्रेट करने के पीछ का उद्देश्य लोगों को हकलाने की समस्या के बारे में जागरूक करना और साथ ही, उन्हें समझाना है कि अगर छोटी उम्र में ही बच्चे पर ध्यान दिया जाए तो उनके हकलाने की समस्या को बहुत हद तक ठीक किया जा सकता है. 

हकलाना एक आम समस्या है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन डेफनेस एंड अदर कम्युनिकेशन डिसऑर्डर (एनआईडीसीडी) के मुताबिक, 5% से 10% बच्चे किसी न किसी समय हकलाते ही हैं, जो आमतौर पर 2 से 6 साल की उम्र के बीच होता है. लेकिन अगर इसी उम्र में माता-पिता बच्चे पर ध्यान दें और सही तरीके या थेरेपी बच्चे को दिलाएं तो यह समस्या बहुत हद तक ठीक हो सकती है. 

क्या होता है हकलाना?
हकलाना (Stammering या Stuttering) एक बोलने से संबंधित बीमारी है, जिसमें व्यक्ति को शब्दों को सही ढंग से बोलने में कठिनाई होती है. हकलाने वाले लोग किसी शब्द या वाक्य को बोलते समय रुक-रुक कर बोलते हैं, किसी अक्षर को बार-बार दोहराते हैं, या किसी शब्द को बोलने में काफी समय लगाते हैं. यह समस्या आमतौर पर बचपन में शुरू होती है, लेकिन बड़े होने पर खत्म हो जाती है. 

हालांकि, जब बचपन में ध्यान न दिया जाए तो कुछ मामलों में यह बड़े होने तक या जिंदगीभर भी बनी रह सकती है. हकलाना कभी-कभी तनाव, घबराहट, या मानसिक दबाव के कारण बढ़ जाता है.  हकलाना पूरी तरह से मानसिक स्थिति नहीं है, बल्कि इसमें शारीरिक और न्यूरोलॉजिकल कारण भी हो सकते हैं.

बचपन से ही दें लक्षणों पर ध्यान

कितने प्रकार का होता है हकलाना?
हकलाना मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है, और इनकी पहचान हकलाने के लक्षणों और कारणों के आधार पर की जाती है.
1. विकासात्मक हकलाना (Developmental Stuttering)
यह सबसे आम प्रकार का हकलाना है और अक्सर बचपन में 2 से 5 साल की उम्र के बीच शुरू होता है. यह तब होता है जब बच्चे की भाषा कौशल और बोलने की क्षमता तेजी से विकसित हो रही होती है, और उनका दिमाग भाषा को सही ढंग से मैनेज नहीं कर पाता है. विकासात्मक हकलाना धीरे-धीरे खत्म भी हो सकता है, लेकिन कुछ मामलों में यह जीवनभर भी बना रह सकता है.

2. न्यूरोजेनिक हकलाना (Neurogenic Stuttering)
यह तब होता है जब दिमाग, नसों या मांसपेशियों के बीच संदेश या मैसेज सही से डिलीवर नहीं होते हैं. इनमें रुकावट या गड़बड़ी होती है. इसका कारण किसी चोट, स्ट्रोक, मस्तिष्क में ट्यूमर, या नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं. इस प्रकार का हकलाना आमतौर पर वयस्कों में देखा जा सकता है.

3. मनोवैज्ञानिक या भावनात्मक हकलाना (Psychogenic Stuttering)
यह मुख्य रूप से  मानसिक तनाव या किसी गंभीर भावनात्मक आघात (इमोशनल ट्रॉमा) के कारण हो सकता. इसमें व्यक्ति मानसिक रूप से किसी चिंता या डर के कारण बोलने में कठिनाई महसूस करता है.

हकलाने के लक्षण 

  • शारीरिक बदलाव जैसे-जैसे बोलते-बोलते अचानक चेहरे का हिलना, होठों का कांपना, अत्यधिक आंखें झपकाना और चेहरे और ऊपरी शरीर में तनाव
  • बात करने की कोशिश करते समय चिड़चिड़ापन होना 
  • बोलना शुरू करने से पहले झिझकना या रुकना
  • बोलने से इंकार कर देना
  • बोलते समय कुछ एक्स्ट्रा आवाज या शब्दों का प्रक्षेप, जैसे "उह" या "उम"
  • एक शब्द या एक बात को बार-बार दोहराना
  • आवाज में तनाव
  • एक बात को रूक-रूक कर कहना
  • शब्दों के साथ लंबी आवाज बनाना, जैसे "मेरा नाम अमाआआआआंदा है."

कुछ बच्चों को शायद पता ही न हो कि वे हकलाते हैं. बहुत ज्यादा तनाव वाले माहौल में रहने से बच्चों में हकलाने की संभावना बढ़ सकती है. हकलाने वालों के लिए पब्लिक में बोलना या किसी अनजान से बात करना बहुत मुश्किल हो सकता है. 

हकलाने से बढ़ता है बच्चे का मानसिक तनाव

हकलाने का कारण
1. आनुवांशिक कारण (Genetic Cause): यदि परिवार में किसी को हकलाने की समस्या रही हो, तो बच्चे में भी इसका खतरा हो सकता है.

2. नर्वस सिस्टम से संबंधित गड़बड़ी (nervous system disorders): मस्तिष्क (Brain) और बोलने की मांसपेशियों (मसल्स) के बीच समन्वय में कमी से हकलाना हो सकता है.

3. बचपन का विकास: बोलने के शुरुआती दौर में जब बच्चे की भाषा तेजी से विकसित हो रही होती है, तो हकलाने की संभावना अधिक हो सकती है.

4. भावनात्मक और मानसिक आघात (emotional and mental trauma): मानसिक तनाव या किसी गंभीर भावनात्मक आघात के कारण भी हकलाना हो सकता है.

कैसे हो सकता है हकलाने का इलाज?
1. स्पीच थेरेपी (Speech Therapy): एक स्पीच थेरेपिस्ट बच्चे को धीरे-धीरे और स्पष्ट बोलने के तरीके सिखाता है. जिसके सहारे हकलाने में काफी सुधार हो सकता है.

2. व्यवहारिक तकनीकें (Behavioral Techniques): बच्चों को मानसिक रूप से शांत रहने और बोलते समय आराम महसूस करने की तकनीकें सिखाई जाती हैं. जो हकलाने को ठीक करने में मदद कर सकती हैं.

3. दवाइयां (Medications): कुछ मामलों में नर्वस सिस्टम को सही और कंट्रोल करने के लिए डॉक्टर दवाइयों का भी सुझाव देते हैं.

4. ग्रुप थेरेपी (Group Therapy): हकलाने वाले अन्य बच्चों के साथ ग्रुप में बातचीत करने से भी बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ सकता है. जो उनके हकलाने को धीरे-धीरे कम करने में मदद कर सकता है.

5. योग: योग भी हकलाने को ठीक करने में मददगार साबित हो सकता है. क्योंकि यह शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बैलेंस स्थापित करने में मदद करता है, जिससे हकलाना कम हो सकता है.

घर में बनाएं खुशनुमा माहौल

माता-पिता कर सकते हैं मदद
माता-पिता बच्चे के हकलाने को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. माता-पिता को बचपन से ही बच्चे के सही विकास पर ध्यान देना चाहिए. अगर आपको लग रहा है कि बच्चे को हकलाने की समस्या है तो आपको कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए:

  • सबसे पहले, जब बच्चा बोल रहा हो, तो धैर्य से उसकी बात सुनें और बीच में टोके बिना उसे पूरा समय दें, ताकि उससे उसका आत्मविश्वास बढ़ सके. 
  • घर में बातचीत का माहौल शांत और सहज रखें, ताकि बच्चा बिना किसी दबाव के अपनी बात कह सके. 
  • माता-पिता खुद धीरे और स्पष्ट बोलें, जिससे बच्चा उनके बोलने के तरीके को देखकर सीख सके. 
  • बच्चे पर सही ढंग से बोलने का दबाव न डालें, बल्कि उसे आराम और आत्मविश्वास के साथ बोलने दें. 
  • बच्चे की कोशिशों की सराहना करें और उसे प्रोत्साहित करें ताकि वह बेहतर महसूस करे. 
  • अगर समस्या बढ़ती है, तो किसी स्पीच थेरेपिस्ट से दिखाए और सही इलाज शुरू करें. 
  • सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि बच्चे को इमोशनल सपोर्ट दें और उसे समझाएं कि हकलाना एक आम समस्या है, जिसे समय के साथ ठीक किया जा सकता है.

(यह स्टोरी निशांत सिंह ने लिखी है. निशांत Gnttv.com में बतौर इंटर्न काम कर रहे हैं.)

 

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