आपके कानों की कमजोरी आपके दिल को खतरे में डाल रही है? चौंकाने वाला खुलासा जो हर किसी को जानना चाहिए!

यह स्टडी इसलिए खास है क्योंकि इसमें सुनने की क्षमता को ऑब्जेक्टिव तरीके से मापा गया. डिजिट ट्रिपलेट टेस्ट (Digit Triplets Test) के जरिए लोगों की सुनने की क्षमता को जांचा गया, जिसे स्पीच-रिसेप्शन-थ्रेशोल्ड (SRT) के रूप में मापा जाता है. यह टेस्ट यह बताता है कि आप कितनी अच्छी तरह से शोर में बोली को समझ सकते हैं. जितना ज्यादा SRT स्कोर, उतनी कम सुनने की क्षमता.

Silent Heart Attack (Photo/Unsplash)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 12:31 PM IST
  • दिल की बीमारी को लेकर नया खुलासा
  • कानों की कमजोरी आपको खतरे में डाल रही

क्या आपने कभी सोचा है कि आपके कानों की कमजोरी सिर्फ सुनने तक सीमित नहीं, बल्कि आपके दिल की सेहत को भी प्रभावित कर सकती है? जी हां, एक नई और सनसनीखेज स्टडी ने खुलासा किया है कि कम सुनाई देना (Hearing Impairment) आपके दिल की विफलता (Heart Failure) के जोखिम को बढ़ा सकता है! 

यूके बायोबैंक (UK Biobank) की एक ताजा रिसर्च ने 1,64,431 लोगों पर अध्ययन किया और पाया कि जिन लोगों को सुनने में दिक्कत होती है, उनमें हार्ट फेल्यर (HF) का खतरा सामान्य लोगों की तुलना में ज्यादा होता है. इस स्टडी में 11.7 साल तक लोगों की सेहत पर नजर रखी गई और 4449 लोग हार्ट फेल्यर का शिकार हुए. चौंकाने वाली बात यह है कि जिन लोगों की सुनने की क्षमता कम थी, उनमें हार्ट फेल्यर का जोखिम 15% से 28% तक ज्यादा था.

लेकिन यह रिश्ता इतना सीधा नहीं है. रिसर्च बताती है कि सुनने की कमजोरी के साथ-साथ कुछ मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors) भी इस खतरे को बढ़ाते हैं. खासकर, मानसिक तनाव (Psychological Distress) इस रिश्ते में 16.9% की भूमिका निभाता है. यानी, अगर आप सुनने की समस्या के कारण तनावग्रस्त रहते हैं, तो आपके दिल पर इसका बुरा असर पड़ सकता है.

कैसे हुई यह स्टडी और क्यों है यह खास?
यह स्टडी इसलिए खास है क्योंकि इसमें सुनने की क्षमता को ऑब्जेक्टिव तरीके से मापा गया. डिजिट ट्रिपलेट टेस्ट (Digit Triplets Test) के जरिए लोगों की सुनने की क्षमता को जांचा गया, जिसे स्पीच-रिसेप्शन-थ्रेशोल्ड (SRT) के रूप में मापा जाता है. यह टेस्ट यह बताता है कि आप कितनी अच्छी तरह से शोर में बोली को समझ सकते हैं. जितना ज्यादा SRT स्कोर, उतनी कम सुनने की क्षमता.

इस स्टडी में शामिल लोग 2006 से 2010 के बीच यूके बायोबैंक में रजिस्टर्ड थे. इनमें से किसी को भी शुरू में हार्ट फेल्यर नहीं था. रिसर्चर्स ने अस्पताल के रिकॉर्ड और मृत्यु रजिस्टर के जरिए यह पता लगाया कि कितने लोगों को बाद में हार्ट फेल्यर हुआ. साथ ही, उन्होंने यह भी देखा कि सामाजिक अलगाव (Social Isolation), मानसिक तनाव (Psychological Distress), और न्यूरोटिसिज्म (Neuroticism) जैसे कारक इस जोखिम को कैसे प्रभावित करते हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े?
जिन लोगों का SRT स्कोर ज्यादा था, उनमें हार्ट फेल्यर का जोखिम प्रति स्टैंडर्ड डेविएशन (SD) बढ़ने पर 5% ज्यादा था. सामान्य सुनने की क्षमता वालों की तुलना में, जिनकी सुनने की क्षमता कम थी, उनमें हार्ट फेल्यर का जोखिम 15% (अपर्याप्त सुनने वाले), 28% (खराब सुनने वाले), और 26% (हियरिंग ऐड यूजर्स) ज्यादा था. मानसिक तनाव ने इस रिश्ते में 16.9% की मध्यस्थता (Mediation) की, जबकि सामाजिक अलगाव और न्यूरोटिसिज्म ने क्रमशः 3.0% और 3.1% की भूमिका निभाई. जिन लोगों को पहले से कोरोनरी हार्ट डिजीज या स्ट्रोक नहीं था, उनमें यह रिश्ता और भी मजबूत था.

क्यों हो रही है यह समस्या?
आप सोच रहे होंगे कि सुनने की कमजोरी का दिल से क्या लेना-देना? दरअसल, सुनने की समस्या सिर्फ कानों तक सीमित नहीं रहती. यह आपकी जिंदगी को कई तरह से प्रभावित करती है:

  1. सामाजिक अलगाव (Social Isolation): जब आपको सुनने में दिक्कत होती है, तो आप बातचीत से कटने लगते हैं. दोस्तों और परिवार से दूरी बढ़ती है, जिससे अकेलापन बढ़ता है. अकेलापन दिल की सेहत के लिए खतरनाक है.
  2. मानसिक तनाव (Psychological Distress): सुनने की समस्या के कारण आप तनावग्रस्त हो सकते हैं. बातचीत में दिक्कत, गलतफहमियां, और आत्मविश्वास की कमी तनाव को बढ़ाती हैं, जो आपके दिल पर बोझ डालता है.
  3. न्यूरोटिसिज्म (Neuroticism): यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जिसमें आप छोटी-छोटी बातों पर ज्यादा चिंता करते हैं. सुनने की कमजोरी इस चिंता को और बढ़ा सकती है.

भारत के लिए क्यों जरूरी है यह जानकारी?
भारत में हार्ट फेल्यर एक बढ़ती हुई समस्या है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में हृदय रोगों के कारण होने वाली मौतें चिंताजनक रूप से बढ़ रही हैं. साथ ही, उम्र बढ़ने के साथ सुनने की कमजोरी भी आम होती जा रही है. खासकर, ग्रामीण इलाकों में लोग सुनने की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेते और इसे "बुढ़ापे का हिस्सा" मान लेते हैं. लेकिन यह स्टडी चेतावनी देती है कि सुनने की छोटी-सी समस्या आपके दिल को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है.

भारत में मानसिक तनाव और सामाजिक अलगाव भी बड़ी समस्याएं हैं. शहरी जिंदगी की भागदौड़ और ग्रामीण इलाकों में सामाजिक सुविधाओं की कमी दोनों ही लोगों को अकेला बनाती हैं. अगर सुनने की कमजोरी इस अकेलेपन को और बढ़ाए, तो यह आपके दिल के लिए दोहरा खतरा बन सकता है.

क्या करें रोकथाम के लिए?
अब सवाल यह है कि इस खतरे से कैसे बचा जाए? अच्छी खबर यह है कि कुछ आसान कदम उठाकर आप अपने दिल और कानों दोनों की सेहत सुधार सकते हैं:

  • नियमित सुनने की जांच: अगर आपको लगता है कि आपको सुनने में दिक्कत हो रही है, तो तुरंत ऑडियोलॉजिस्ट से मिलें. हियरिंग ऐड या अन्य उपचार आपकी जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं.
  • तनाव से बचें: योग, ध्यान, और परिवार के साथ समय बिताना तनाव को कम करता है. सुनने की समस्या होने पर शर्मिंदगी महसूस करने की बजाय खुलकर बात करें.
  • सामाजिक सक्रियता: दोस्तों और परिवार के साथ जुड़े रहें. सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लें, जैसे कि क्लब, सामुदायिक कार्यक्रम, या धार्मिक आयोजन.
  • दिल की सेहत का ध्यान: नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, और ब्लड प्रेशर व डायबिटीज की जांच आपके दिल को स्वस्थ रखेगी.
  • डॉक्टर की सलाह: अगर आपको हार्ट फेल्यर का कोई लक्षण (जैसे सांस फूलना, थकान, या पैरों में सूजन) दिखे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
इस स्टडी के लेखकों का कहना है कि सुनने की सेहत को अब तक दिल की बीमारियों जोखिम को गंभीरता से नहीं लिया जाता. लेकिन अब समय आ गया है कि डॉक्टर्स और मरीज दोनों सुनने की समस्याओं को हल्के में न लें. खासकर, मानसिक तनाव को कम करने के लिए काउंसलिंग और सामाजिक सहायता जरूरी है. यह स्टडी नीति-निर्माताओं के लिए भी एक संदेश है कि हृदय रोगों की रोकथाम के लिए सुनने की जांच को भी शामिल करना चाहिए.

सुनने की कमजोरी को अब सिर्फ एक छोटी-मोटी समस्या नहीं माना जा सकता. यह आपके दिल की सेहत को प्रभावित कर सकती है, खासकर तब जब यह तनाव और अकेलेपन को बढ़ाए.


 

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