बंबई हाई कोर्ट की गोवा बेंच के जज जस्टिस एम.एस. सोनक ने शुक्रवार को अपनी “लिविंग विल” यानि जीवित वसीयत दर्ज की है. ऐसा करने वाले वे पहले व्यक्ति बन गए हैं. बता दें, एक जीवित लिविंग विल एक तरह की एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव है. ये एक तरह का कानूनी दस्तावेज है जो मेडिकल ट्रीटमेंट के संबंध में किसी व्यक्ति की इच्छाओं के बारे में बताती है. ये वो स्थिति है जब वह व्यक्ति अपने निर्णय लेने में सक्षम न हो.
एक लिविंग विल क्या है?
लिविंग विल एक एडवांस केयर प्लानिंग है. ये वसीयत व्यक्तियों को उन स्थितियों में मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए अपनी प्राथमिकताएं बताने में मदद करती है, जहां वे अक्षम हैं. इस दस्तावेज में परिवार के सदस्यों को इस बात की अनुमति होती है कि वे उस व्यक्ति की जगह मेडिकल ट्रीटमेंट से जुड़े फैसले लें.
बता दें, 2018 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु (passive euthanasia) को वैध बना दिया था. लेकिन यह लिविंग विल रखने वाले व्यक्ति पर निर्भर है. आसान शब्दों में समझें तो जब कोई व्यक्ति ज्यादा बीमार होता है तब उसे जीवित रखने के लिए अलग-अलग मेडिकल ट्रीटमेंट किए जाते हैं. ऐसे में रोगी के जीवन को लम्बा खींचा जाता है. लेकिन लिविंग विल में व्यक्ति की जगह पर किसी दूसरे व्यक्ति को यह अनुमति दी जाती है कि वह अपनी मर्जी से रोगी के ट्रीटमेंट को बंद करने के लिए कह सकते हैं. व्यक्तियों के लिए जीवित वसीयत बनाना और रजिस्टर करना आसान बनाने के लिए इन दिशानिर्देशों को 2023 में बदला गया था.
जस्टिस एम.एस. सोनक का क्या कहना है?
जस्टिस एम.एस. सोनक इसपर कहते हैं, "यह एक जरूरी चीज है. हम सभी अपना जीवन जीने में बेहद व्यस्त हैं, और इससे हमें जिंदगी के आखिरी पलों पर विचार करने के लिए मुश्किल से ही समय मिलता है. लेकिन इसके लिए हमें थोड़ी जल्दी तैयारी शुरू करनी चाहिए.”
बता दें, गोवा मेडिकल निर्देशों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को औपचारिक बनाने और लागू करने की दिशा में कदम उठाने वाला पहला राज्य बन गया है.
कानूनी दस्तावेज है जीवित वसीयत
जीवित वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है जो आपको चिकित्सा उपचार के बारे में अपनी इच्छाओं को पहले से बताने की अनुमति देता है. यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि अगर आप गंभीर रूप से बीमार या घायल हो जाते हैं और खुद निर्णय नहीं ले पाते हैं तो आपकी स्वास्थ्य देखभाल संबंधी प्राथमिकताएं जानी और सम्मानित की जाएं.
यह वसीयत बताती है कि आप किस प्रकार के मेडिकल ट्रीटमेंट (Medical Treatment) चाहते हैं या नहीं चाहते हैं. उदाहरण के लिए, यह बताता है कि क्या आप वेंटिलेटर या फीडिंग ट्यूब जैसे लाइफ सपोर्टिंग ट्रीटमेंट (Supporting treatment) चाहते हैं. हालांकि, लिविंग वसीयत तभी प्रभावी होती है जब आप अपने निर्णयों को बताने में असमर्थ होते हैं. यह बेहोश होने, कोमा में होने या किसी दूसरी मानसिक रूप से अक्षम होने वाली बीमारी में इस्तेमाल की जा सकती है.
बता दें, आप अपनी वसीयत में हेल्थकेयर प्रॉक्सी (Healthcare Proxy) या एजेंट का नाम भी दे सकते हैं. अगर यह वह व्यक्ति है जिस पर आप भरोसा करते हैं कि वह आपके निर्देशों और सर्वोत्तम हितों के आधार पर आपकी ओर से स्वास्थ्य संबंधी निर्णय ले सकता है.