केरल राज्य ने अमीबिक मेनिंगोएनसेफेलाइटिस (Amoebic Meningoencephalitis) की रोकथाम, डाइग्नोस और ट्रीटमेंट को लेकर गाइडलाइन जारी की है. ऐसा पहली बार है कि देश में इस बीमारी को लेकर किसी भी तरह के दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. इस पहल का उद्देश्य इस घातक बीमारी को कंट्रोल करना और मैनेज करना है. बता दें, ये बीमारी दूषित पानी में पाए जाने वाले फ्री-लिविंग अमीबा (free-living amoeba ) के कारण होती है.
अमीबिक मेनिंगोएनसेफेलाइटिस क्या है?
अमीबिक मेनिंगोएनसेफेलाइटिस एक ब्रेन इंफेक्शन है जो नेगलेरिया फाउलेरी अमीबा (the Naegleria fowleri amoeba) की वजह से होता है. ये आमतौर पर झीलों, नदियों और गर्म झरनों जैसी जगह पाया जाता है. इंफेक्शन आमतौर पर तब होता है जब दूषित पानी नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है. इससे दिमाग में गंभीर सूजन हो जाती है. ये बीमारी बड़ी तेजी से बढ़ती है, जिससे तुरंत इलाज नहीं हो पाता है.
केरल ने जारी की गाइडलाइन
केरल की नई गाइडलाइन में अमीबिक मेनिंगोएनसेफेलाइटिस को लेकर एक एसओपी का एक सेट है. इसमें बताया गया है कि इस बीमारी को कैसे मैनेज किया जा सकता है और इसका ट्रीटमेंट कैसे होगा. इसमें कई चीजें बताई गई हैं-
1. रोगी का इतिहास जानकर शुरुआती जांच
-अगर किसी में मैनिंजाइटिस के लक्षण दिख रहे हैं तो रोगी से पिछले 14 दिनों के भीतर ताजे पानी के संपर्क में आने के बारे में पूछा जाना चाहिए. इस कदम से ट्रीटमेंट करना में मदद मिलेगी.
2. संदिग्ध मामलों की जांच
-रोगी से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे तालाब, नदी, झरने जैसी चीजों में नहाएं हैं? अगर हां तो नेगलेरिया फाउलेरी को लेकर उनकी जांच होनी चाहिए.
3. PAM पर विचार
-ऐसे मामलों में जहां बैक्टीरियल मैनिंजाइटिस के रोगी एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक नहीं हो रहे हैं या उनकी हालत बिगड़ रही है तो प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) पर विचार किया जाना चाहिए.
4. वेट माउंट एग्जामिनेशन
-सभी टर्बिड या ओपलेसेंट CSF सैंपल की वेट माउंट जांच अनिवार्य है. इससे जल्दी पता लगाने में मदद मिलती है, जिससे जल्द ट्रीटमेंट हो सकेगा.
5. रिपोर्टिंग और आगे की टेस्टिंग
- अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस मामलों की सूचना जिला निगरानी अधिकारी (डीएसओ) को दी जानी चाहिए, अगर जरूरी हो तो पीसीआर और जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए सैंपल भेजे जाएं.
6. ट्रीटमेंट
-PAM के ट्रीटमेंट में एक बड़ी टीम शामिल होनी चाहिए, जिसमें चिकित्सक, बाल रोग विशेषज्ञ, इंटेंसिविस्ट, संक्रामक रोग विशेषज्ञ, न्यूरोलॉजिस्ट और माइक्रोबायोलॉजिस्ट शामिल हों.