Fatty Liver Test: लोगों में बढ़ रही फैटी लिवर की बीमारी! जानें कब और किसे करवाना चाहिए लिवर फंक्शन टेस्ट? 

Liver Function Test: चाहे लिवर डैमेज के शुरुआती लक्षणों का पता लगाना हो, दवाओं के प्रभावों की निगरानी करना हो या पुरानी लिवर की बीमारियों को मैनेज करना हो, लिवर फंक्शन टेस्ट बड़ी भूमिका निभाते हैं.

Liver Function Test (Representative Image)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 31 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 3:07 PM IST
  • लोगों में बढ़ रही फैटी लिवर की बीमारी
  • लिवर चेक करवाना है जरूरी

जब बॉडी चेकअप (Body Checkup) की बात आती है तो लिवर चेक करने की सलाह जरूर दी जाती है. लिवर चेक करने के लिए सबसे प्रभावी तरीकों में से एक लिवर फंक्शन टेस्ट (LFT) है. ये टेस्ट, जिन्हें आमतौर पर लिवर केमिस्ट्री (Liver Chemistry) कहा जाता है, खून में एंजाइम, प्रोटीन और बिलीरुबिन के लेवल को मापकर लिवर में मौजूद दिक्कतों का पता लगाने में मदद करते हैं.

लाइफस्टाइल में बदलाव और शराब पीने से फैटी लिवर (Fatty Liver) जैसी बीमारी काफी लोगों में देखी जा रही है. ऐसे में जरूरी है कि आपको पता हो कि लिवर चेक कब करवाना है. 

लिवर फंक्शन टेस्ट क्या हैं?
लिवर फंक्शन टेस्ट कई सारे ब्लड टेस्ट होते हैं जो लिवर में मौजूद अलग-अलग चीजों के लेवल मापते हैं. 

-एलेनिन एमिनोट्रांस्फरेज (ALT): यह एंजाइम लिवर सेल्स के लिए प्रोटीन को एनर्जी में बदलने में मदद करता है. ज्यादा ALT लेवल अक्सर लिवर के खराब होने का संकेत होता है. 

-एस्पार्टेट एमिनोट्रांस्फरेज (AST): ALT की तरह ही, यह एंजाइम अमीनो एसिड मेटाबोलिज्म में भूमिका निभाता है. AST का हाई लेवल लिवर या मांसपेशियों को नुकसान होने का संकेत दे सकता है.

-एल्कलाइन फॉस्फेट (ALP): यह एंजाइम लिवर, पित्त नलिकाओं और हड्डियों में पाया जाता है. ALP का बढ़ा हुआ लेवल पित्त नली में रुकावट, लिवर की बीमारी या हड्डियों की बीमारियों का संकेत दे सकता है.

-गामा-ग्लूटामिल ट्रांस्फरेज (GGT): यह एंजाइम टॉक्सिक चीजों और दवाओं के मेटाबोलिज्म में शामिल होता है. GGT का बढ़ा हुआ लेवल पित्त नली की समस्याओं या लिवर के डैमेज होने का संकेत दे सकता है.

-बिलीरुबिन: बिलीरुबिन रेड ब्लड सेल्स के टूटने से बनने वाला वेस्ट प्रोडक्ट है. बिलीरुबिन के हाई लेवल से पीलिया हो सकता है. इसमें स्किन और आंखों में पीलापन आ जाता है. 

-एल्ब्यूमिन: इस प्रोटीन को लिवर बनाता है. एल्ब्यूमिन का लेवल कम होता है तो ये लिवर की बीमारी या कुपोषण का संकेत हो सकता है. 

लिवर फंक्शन टेस्ट की सलाह क्यों दी जाती है?
लिवर फंक्शन टेस्ट की सलाह अलग-अलग समय पर दी जा सकती है:

1. वायरल एक्सपोजर: अगर हेपेटाइटिस बी या सी जैसे वायरस के संपर्क में आने की संभावना है, तो संभावित लिवर डैमेज की जांच के लिए अक्सर लिवर फंक्शन टेस्ट की सलाह दी जाती है.

2. मेडिकेशन की मॉनिटरिंग: स्टैटिन, NSAIDs (नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स), एंटीबायोटिक्स, एंटीसीजर दवाएं और टीबी ट्रीटमेंट सहित कुछ दवाएं लिवर के काम को प्रभावित कर सकती हैं. इन प्रभावों की निगरानी के लिए अक्सर LFT किए जाते हैं.

3. क्रोनिक लिवर डिजीज मैनेजमेंट: फैटी लिवर डिजीज, हेपेटाइटिस या सिरोसिस जैसी क्रॉनिक लिवर डिजीज से पीड़ित व्यक्तियों के लिए, बीमारी कितनी बढ़ी या घटी है को ट्रैक करने और ट्रीटमेंट के लिए नियमित लिवर फंक्शन टेस्ट जरूरी होते हैं. 

4. लिवर डिजीज का पारिवारिक इतिहास: फैटी लिवर डिजीज या विल्सन डिजीज जैसी जेनेटिक बीमारियों सहित लिवर डिजीज के पारिवारिक इतिहास वाले लोगों को एहतियात के तौर पर लिवर फंक्शन टेस्ट करवाने की सलाह दी जा सकती है.

5. लिवर डिसफंक्शन के लक्षण: अगर किसी व्यक्ति में पीलिया, पेट में दर्द, थकान या गहरे रंग का पेशाब जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, तो लिवर फंक्शन टेस्ट की सलाह दी जाती है.

लिवर फंक्शन टेस्ट लिवर की हेल्थ को ठीक करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. चाहे लिवर डैमेज के शुरुआती लक्षणों का पता लगाना हो, दवाओं के प्रभावों की निगरानी करना हो या पुरानी लिवर की बीमारियों को मैनेज करना हो, ये टेस्ट बड़ी भूमिका निभाते हैं. अगर आप भी लिवर से जुड़ी किसी बीमारी से जूझ रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए. 


 

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