मेडिकल बिल पर एक भारतीय अपनी कमाई का औसत हिस्सा खर्च करता है. महंगाई बढ़ने के साथ इलाज आदि के लिए खर्च किया जाने वाला पैसा भी बढ़ा है. भारत में इलाज की महंगाई दर एशिया में सबसे ज्यादा है. यह 14 फीसदी पहुंच गई है. दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में संक्रामक बीमारियों का खर्च पांच साल में दोगुना हो गया है. इंश्योरेंस क्लेम के डेटा के अनुसार जिन सामान्य बीमारियों के लिए अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है, उनके इलाज की लागत पांच वर्षों में दोगुनी से अधिक हो गई है. इंश्योरटेक कंपनी प्लम की कॉर्पोरेट इंडिया की हेल्थ रिपोर्ट 2023 के अनुसार सेहत की देखभाल में लागत बढ़ने से कर्मचारियों पर वित्तीय बोझ काफी बढ़ गया है. रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में 71 फीसदी लोग अपने पैसे मेडिकल पर खर्च कर रहे हैं. सिर्फ 15 फीसदी ही ऐसी कंपनियां हैं जो कर्मचारियों के हेल्थ इंश्योरेंस मुहैया कराती हैं.
कितना आया अंतर
रिपोर्ट में कहा गया कि इलाज का खर्च नौ करोड़ लोगों पर असामान्य रूप से प्रभाव डाल रहा है और इसकी लागत उनके कुल व्यय के 10 फीसदी से अधिक है. इलाज की बढ़ती लागत ने कर्मचारियों पर भी वित्तीय बोझ बढ़ा दिया है. पिछले पांच सालों में अस्पताल में भर्ती होने के बाद इलाज में होने वाला खर्च दोगुना हो गया है. संक्रामक बीमारियों और सांस से जुड़े विकार के इलाज के लिए बीमा क्लेम तेजी से बढ़े हैं. आंकड़ो के अनुसार, संक्रामक रोग के इलाज के लिए 2018 में औसतन बीमा क्लेम 24,569 रुपये हुआ करता था, जो अब बढ़कर 64,135 रुपये तक पहुंच गया है. यह राशि मुंबई जैसे महानगरों में अधिक है, जहां संक्रामक रोगों के लिए औसत दावा लगभग 30,000 रुपये से बढ़कर लगभग 80,000 रुपये हो गया है. श्वसन संबंधी विकारों के लिए, औसत दावा 18% की सीएजीआर के अनुसार 48,452 रुपये से बढ़कर 94,245 रुपये हो गया. मुंबई में, लागत लगभग 80,000 रुपये से बढ़कर 1.7 लाख रुपये हो गई है.
प्रीमियम बढ़ाना मजबूरी- बीमा कंपनी
कोरोना महामारी के बाद इलाज खर्च में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. खासकर इलाज में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों पर भी खर्च बढ़ा है. पहले कुल बिल में इन सामग्रियों का हिस्सा 3 से 4 फीसदी हुआ करता था, जो अब बढ़कर 15 फीसदी हो चुका है. स्वास्थ्य बीमा मांग में तेजी की वजह से इलाज महंगा हुआ है. बीमा का प्रीमियम सालभर में 10 से 25 प्रतिशत बढ़ा है. बीमा कंपनियों का कहना है कि लागत और बीमा क्लेम बढ़ रहे हैं. ऐसे में प्रीमियम बढ़ाना मजबूरी है.
युवाओं में जागरुकता कम
भारत में सेहत की देखभाल में आने वाली लागत तेजी से बढ़ रही है. कई कर्मचारी कवरेज का खर्च नहीं उठा पाते हैं. ऐसे में कंपनियों को अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए और ज्यादा कोशिश करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ते मेडिकल खर्च की वजह से 9 करोड़ से ज्यादा भारतीयों की जिंदगी पर असर पड़ा है. उनकी कमाई का 10 फीसदी हिस्सा बीमारियों के इलाज पर खर्च होता है. कंपनियां जो हेल्थ इंश्योरेंस सुविधा उपलब्ध कराती हैं इसको लेकर 20 से 30 साल के युवाओं के बीच जागरुकता बेहद कम है. वहीं 42 फीसदी का मानना है कि कंपनी की ओर से मुहैया कराई जाने वाली पॉलिसी को कर्मचारियों के अनुकूल बनाना जरूरी है.