अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई! छोटे बच्चों को शरीर दागने की कुप्रथा से बचाने के लिए डॉक्टर का अभियान, सालों तक संघर्ष कर संवारी लाखों जिंदगियां

गुजरात के पीडियास्ट्रिशियन, डॉ. राजेश माहेश्वरी ने गांवों में छोटे बच्चों के खिलाफ होने वाली शरीर दागने की प्रथा को खत्म करने के लिए दो दशकों से भी ज्यादा समय तक जागरूकता अभियान चलाया है. आज वह हम सबके लिए प्रेरणा हैं.

Dr. Rajesh Maaheshwari
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 27 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 11:16 AM IST
  • साल 1994 में शुरू की प्रैक्टिस
  • गांव-गांव जाकर लोगों को किया जागरूक

आज भी हमारे देश में बहुत सी ऐसी प्रथाएं हैं जो हमारी संस्कृति, तरक्की, और विकास पर सवालिया निशान खड़े करती हैं. आज भी भारत बाल विवाह, दहेज के साथ-साथ कई तरह के अंधविश्वासों से जूझ रहा है. सबसे ज्यादा अंधविश्वास के शिकार लोग अपने बच्चों के मामले में बनते हैं. आज भी भारत में बहुत सी जगहों पर छोटे बच्चों को बीमार पड़ने पर उन्हें पीडियास्ट्रिशियन्स को दिखाने की बजाय लोग झोलाछाप डॉक्टर या ढोंगी बाबाओं के पास लेकर जाते हैं और वे बच्चों को बीमारी से बचाने के नाम पर उनके शरीर को दागते हैं. 

बच्चों के सीने पर दागने की प्रथा बहुत पुरानी है जिसमें किसी गरम लोहे की रोड से बच्चे के शरीर पर निशान बनाया जाता है. यह लोगों में अंधविश्वास के तहत किया जाता है क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से बच्चे बुरी नजर या खांसी-जुकाम जैसी बीमारियों से बचे रहेंगे. लेकिन इसके कारण बहुत से बच्चे अपनी जान गंवा देते हैं और बहुत से बच्चों को सिर्फ अंधविश्वास के चलते गहरी पीड़ा से गुजरना पड़ता है. लेकिन कहते हैं न कि अगर बुराई है तो अच्छाई भी होगी. और वही अच्छाई हैं गुजरात में बच्चों के डॉक्टर राजेश माहेश्वरी, जो पिछले कई सालों से दागने की प्रथा के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं. 

साल 1994 में शुरू की प्रैक्टिस
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश माहेश्वरी के हाथों बहुत से बच्चों को नया जीवन मिला है. डॉ. राजेश ने पीडियास्ट्रिशियन बनने की बाद अगस्त 1994 में भुज में सरकार द्वारा संचालित जीके जनरल अस्पताल ज्वॉइन किया. उन दिनों में, मेडिकल रिसोर्स मिलना मुश्किल था. बहुत सी परेशानियों के बावजूद, डॉ. माहेश्वरी ने कई शिशुओं का इलाज किया और उनकी जान बचाई. अस्पताल में अपने डेढ़ साल के कार्यकाल के दौरान, उनकी मुलाकात वागड़, भचाऊ और रापर जैसे दूरदराज के इलाकों से गंभीर बीमारियों के साथ लाए गए कई शिशुओं से हुई, जिनमें से ज्यादातर बच्चों के शरीर पर दागने के निशान थे. 

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बच्चों के माता-पिता के साथ बातचीत करते हुए, माहेश्वरी को पता चला कि दूरदराज के इलाकों में, जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के अभाव में, लोग अंधविश्वासों का शिकार बनते हैं.  माता-पिता अपने बीमार बच्चों को इलाज के लिए स्थानीय 'भुवा' (काला जादूगर) के पास ले जाना चुनते हैं, जो शरीर पर निशान दागकर इलाज करते हैं. यह सब जानकर वह हैरान रह गए. सरकारी अस्पताल छोड़ने के बाद, उन्होंने गांधीधाम में एक निजी क्लिनिक, मासूम चिल्ड्रन शुरू किया, और भचाऊ के अस्पताल में भी काम किया. यहां भी वह गरीब और सामाजिक रूप से पिछड़े परिवारों के संपर्क में आए जो अंधविश्वासी अनुष्ठानों और प्रथाओं से घिरे हुए थे. 

शरीर दागने की कुप्रथा के खिलाफ प्रयास 
डॉ. राजेश को हैरानी हुई कि बच्चों को न केवल बीमार होने पर बल्कि टीबी की बीमारी को रोकने के लिए उनकी पीठ पर गर्म लोहे के छल्ले दागे गए. रापर, वागड़ जैसी तालुकाओं में स्थिति बहुत खराब थी. बच्चों के शरीर को दागने के मामलों इतने ज्यादा थे कि डॉ राजेश की नींद ही उड़ गई. उनका कहना है कि उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे कि वह परंपरा और अंधविश्वास की किसी चट्टान के सामने खड़े हैं. उन्होंने ठान लिया कि वह सिर्फ बीमारी का इलाज नहीं करेंगे बल्कि इन अंधविश्वासों को खत्म करने की कोशिश करेंगे, खासकर उन इलाकों में जहां साक्षरता कम थी. उन्होंने मन बना लिया था कि वह किसी भी कीमत पर बच्चों के शरीर को दागने की प्रथा को ख़त्म कर देंगे. 

वह जानते थे कि इसका कोई मेडिकली इलाज नहीं है बल्कि इसके लिए जागरूकता की जरूरत है. इन कुप्रथाओं को समाज से हटाने के लिए लोगों के बीच जागरूकता आनी चाहिए. उन्होंने कच्छ के एक प्रमुख दैनिक अखबार से संपर्क किया और समाज में अपनी गहरी जड़ें जमा चुकी इन अमानवीय प्रथाओं के बारे में बताया. उन्होंने वागड़ तालुका के एक बच्चे की केस स्टडी दी, जो 'हाइड्रोसेफालस' से पीड़ित था, एक ऐसी स्थिति जहां दिमाग में लिक्विड जम जाता है. ऐसी बीमारी के लिए इमरजेंसी मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत होती है, लेकिन माता-पिता ने इसके बजाय बच्चे के माथे पर टीका लगवा दिया. इस स्टडी ने पब्लिश किया गया; इसने समाज और यहां तक ​​कि मेडिकल सेक्टर को भी झकझोर कर रख दिया. इससे डॉ. राजेश को दूसरे लोगों से भी मदद मिली. 

गांव-गांव जाकर लोगों को किया जागरूक
इसके बाद डॉ. राजेश ने दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों का रुख किया, लोगों के बीच जागरूकता पैदा की, धार्मिक समारोहों में भाग लिया, शैक्षणिक संस्थानों का दौरा किया, एक गांव से दूसरे गांव तक जनता को संबोधित किया. उनके काम बहुत सी रुकावटें भी आईं. उनके ख़िलाफ़ बदनामी का अभियान चलाया गया, उनके निजी क्लीनिक में लोगों को आना कम हो गया. उन्हें फोन पर और व्यक्तिगत रूप से अंधविश्वास के खिलाफ खड़े होने पर धमकियां मिलीं. लेकिन वह अपनी राह से नहीं हटे और लगातार काम करते रहे. समय के साथ उनको एहसास हुआ कि इस समस्या का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत है. 

उन्होंने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि जब साल 2011 में, जब वागड़ तालुका में एक लड़की के साथ हुई शरीर दागने की घटना मीडिया में आई तो NHRC को झटका लगा. उन्होंने इस मुद्दे और कार्रवाई पर विवरण के लिए गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया. जिस वजह से सरकार न केवल इन मामलों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए हरकत में आई, बल्कि एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया, "अगर किसी बच्चे के शरीर को दागते हुए कोई पाया गया, तो माता-पिता और दागने वाले व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी."

माहेश्वरी ने कहा कि यह सार्वजनिक नोटिस उनके जागरूकता अभियान के लिए एक 'बूस्टर डाइट' के रूप में आया. इससे अभिभावकों और स्थानीय झोलाछाप डॉक्टरों में डर बैठ गया. इस तरह के मामले कम होने लगे; 2014-15 तक नतीजे दिखने शुरू हो गए और 2019 में वागड़ में इस तरह का कोई मामला सामने नहीं आया. 

 

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