अब AI मशीन से चेक हो सकेगी डायबिटिक रेटिनोपैथी की दिक्कत

चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) ने एआई (AI) के माध्यम से इस बीमारी को ठीक करने में 85% प्रभावकारिता (Efficacy) पाई है. इसमें अगर पीड़ित व्यक्ति को समय पर इलाज न मिले तो वह अपनी आंखों की रोशनी खो सकता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर
gnttv.com
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  • 22 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 5:08 PM IST
  • इसके लिए लोगों को करना पड़ेगा खर्चा कम
  • AI में विशेषज्ञों की मदद के बगैर इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है
  • अभी रोगी के आंखों की छवि रेडियोग्राफी मशीन की मदद से ली जाती है

हम अक्सर सुनते हैं कि डायबिटीज हमारे शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह हमारी आंखों को भी भारी नुकसान पहुंचा सकता है? इस बीमारी को हम साइंस की भाषा में ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’ (Diabetic Retinopathy) कहते हैं. इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर एक बार इससे आंखों की रोशनी चली गयी तो उसे वापिस नहीं लाया जा सकता. लेकिन चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) ने इसका भी निजात पा लिया है. 

PGIMER के नेत्र विज्ञान (Ophthalmology) विभाग ने एआई (AI) के माध्यम से इस बीमारी को ठीक करने में 85% प्रभावकारिता (Efficacy) पाई है. यानि किसी फिजिशियन की मदद के बगैर ही, आसानी से इसका इलाज किया जा सकता है. बता दें, पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पंचकुला और मोहाली में 250 रोगियों पर इन तीन एआई प्लेटफॉर्म का उपयोग किया गया था.

क्या है डायबिटिक रेटिनोपैथी?

आसान शब्दों में समझें, तो डायबिटिक रेटिनोपैथी बीमारी किसी भी पीड़ित व्यक्ति की रेटिना यानि आंख का वो पर्दा जहां तस्वीर बनती है, को प्रभावित करती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इसमें रेटिना तक खून पहुंचाने वाली नलिकाएं (Trachea) प्रभावित होती हैं. अगर पीड़ित व्यक्ति को समय पर इलाज न मिले तो इससे वह अपनी आंखों की रोशनी खो सकता है. 

ग्रामीण इलाकों में नहीं है रेटिना विशेषज्ञों की पहुंच

PGIMER में कम्यूनिटी ऑप्थल्मोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मोना दुग्गल बताती हैं कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की पहुंच स्वास्थ्य सुविधाओं तक नहीं है. ऐसे में वह रेटिना विशेषज्ञों तक नहीं पहुंच पाते हैं। डायबिटिक रेटिनोपैथी के अधिकतर रोगियों में आखिर तक कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं, और देरी से पता चलने से के कारण आंखों की रोशनी चली जाती है. फंडस फोटोग्राफी (Fundus photography) का उपयोग करके, पीजीआईएमईआर एआई का उपयोग करके रोग के लक्षणों को पता लगाने में सक्षम है. 

उन्होंने आगे बताया कि केंद्र सरकार द्वारा अप्रूवल मिलने के बाद, राज्य सरकारों को एआई-बेस्ड स्क्रीनिंग की सिफारिश की जाएगी ताकि लोगों को सार्वजनिक अस्पतालों में लागत प्रभावी परीक्षण की सुविधा मिल सके.

AI के क्या फायदे होंगे?

वर्तमान की बात करें, तो अभी तक चिकित्सा विज्ञान में ये तकनीक नहीं आयी है. अभी रोगी के आंखों की छवि रेडियोग्राफी मशीन की मदद से ली जाती है, इसके बाद ही डॉक्टर उसे देखकर रोग का पता लगाते हैं. लेकिन यह पूरी प्रशिक्षित नेत्र रोग विशेषज्ञों पर ही निर्भर हैं. 

हालांकि, AI में विशेषज्ञों की मदद के बगैर इसका पता लगाया जा सकता है. एआई-आधारित कैमरों के माध्यम से किए गए रेटिनोपैथी टेस्ट डॉक्टर की सहायता के बिना तेजी से आ सकते हैं. पीजीआईएमईआर विशेषज्ञों के अनुसार, AI से टेस्ट होगा तो उसमें सटीक परिणाम और रोगियों के लिए वह अधिक लागत प्रभावी होगा यानि इसके लिए लोगों को खर्चा कम करना पड़ेगा. 

 

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