अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके स्किन के माध्यम से टीके पहुंचाए जा सकते हैं. यह तरीका त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाता है और दर्दनाक सुइयों की भी जरूरत नहीं होती है. सुई-मुक्त वैक्सीन बनाने के लिए, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के डार्सी डन-लॉलेस और उनके सहयोगियों ने वैक्सीन मॉलेक्यूल्स को छोटे, कप के आकार के प्रोटीन के साथ मिलाया. फिर उन्होंने चूहों की स्किन पर लिक्विड मिक्सचर लगाया और इसे लगभग डेढ़ मिनट तक अल्ट्रासाउंड में रखा - जैसे कि सोनोग्राम के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
कैसे करता है काम
सबसे पहले, अल्ट्रासाउंड ने मिश्रण को त्वचा की ऊपरी परतों में पहुंचाया, जहां प्रोटीन के आकार के कारण टीके से भरे बुलबुले बन गए. जैसे-जैसे अल्ट्रासाउंड स्किन को हिट करता है बुलबुले फूट जाते हैं और ये वैक्सीन रिलीज करते हैं. बुलबुले टूटने की प्रोसेस में कुछ डेड स्किन सेल्स भी साफ हो गईं, जिससे स्किन ज्यादा परमिएबल (पारगम्य) हो गई और ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन मॉलेक्यूल्स स्किन के अंदर जा पाते हैं.
एक सुई वैक्सीन मॉलेक्यूल्स को स्किन के नीचे की मांसपेशियों में पहुंचाती है, जबकि अल्ट्रासाउंड तकनीक वैक्सीन को स्किन की ऊपरी परतों तक पहुंचाती है. लेकिन डन-लॉलेस का कहना है कि यह प्रक्रिया इम्यूनाइजेशन के लिए पर्याप्त है.
क्या रहा एक्सपेरिमेंट का रिजल्ट
जीवित चूहों के साथ टेस्टिंग में, रिसर्चर्स ने पाया कि जहां अल्ट्रासाउंड मेथड ने पारंपरिक सुई की तुलना में वैक्सीन के 700 गुना कम मॉलेक्यूल पहुंचाए, वहीं जानवरों ने ज्यादा एंटीबॉडी का उत्पादन किया. रिसर्चर्स का कहना है कि चूहों में दर्द के कोई लक्षण नहीं दिखा और उनकी स्किन को भी कोई नुकसान नहीं हुआ.
डन-लॉलेस का कहना है कि एंटीबॉडी का बढ़ा हुआ उत्पादन मांसपेशियों की तुलना में स्किन में ज्यादा इम्यूनिटी सेल्स के कारण हो सकता है, लेकिन वे अभी भी जांच कर रहे हैं. उन्होंने 4 दिसंबर को सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में अकाउस्टिक्स 2023 सम्मेलन में रिसर्च प्रेजेंट की.