Cancer Detection with AI: अब समय से पहले कैंसर का पता लगाएगी एआई, PGI Chandigarh में तैयार हो रहा ऐप

इस ऐप को विकसित करने के लिए पीजीआई ने लिवर कैंसर के 2000 और ओरल कैंसर के 2500 मरीजों का डेटा जुटाया है. 15 से 20 हजार डिजिटल इमेज भी बनाई गई हैं. इन्हीं इमेज और डेटा का एआई आधारित ऐप विश्लेषण करेगा.

Siddharth Singhal, Head of Health Insurance at PolicyBazaar, attributes the rising prevalence of these cancers to pollution and poor lifestyle choices.
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 11 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 12:10 AM IST

उत्तर भारत के लिए वरदान कहे जाने वाले पीजीआई चंडीगढ़ (Post Graduate Institute of Medical Education and Research) एक ऐसा मोबाइल ऐप तैयार कर रहा है जो लिवर और ओरल कैंसर से जंग में बड़ी कामयाबी के तौर पर साबित होगा. इस ऐप का उद्देश्य एक इंसान में कैंसर होने की संभावना का पता लगाना होगा. इसकी मदद से आशा वर्कर खुद भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लिवर और ओरल कैंसर की स्क्रीनिंग कर सकेंगी. 

इस ऐप को विकसित करने के लिए पीजीआई ने लिवर कैंसर के 2000 और ओरल कैंसर के 2500 मरीजों का डेटा जुटाया है. 15 से 20 हजार डिजिटल इमेज का इस्तेमाल भी किया जा रहा है. इन्हीं इमेज और डेटा का एआई आधारित ऐप विश्लेषण करेगा और कैंसर होने की संभावना का पता लगाएगा. 

मुंह के कैंसर पर क्या कहते हैं आंकड़े?
मुंह का कैंसर इस समय भारत के लिए बड़ा सिरदर्द है. भारत में अभी 59 में से हर एक पुरुष मुंह के कैंसर से जूझ रहा है. वहीं 139 में से 1 महिला मुंह के कैंसर से पीड़ित है. इसकी बड़ी वजह तंबाकू, गुटखा और सिगरेट के सेवन के अलावा जेनेटिक भी है. कैंसर के कुल मरीजों में ओरल कैंसर से मरने वालों की संख्या 42 फीसदी से ज्यादा है. सबसे बड़ी समस्या यह है कि मुंह के कैंसर से पीड़ित ज्यादातर मरीज एडवांस स्टेज में इलाज के लिए पहुंचते हैं. इसी वजह से उनके बचने की संभावना सिर्फ पांच प्रतिशत रह जाती है. 

कैसे काम आएगा ऐप?
पीजीआई चंडीगढ़ के ओरल हेल्थ साइंस सेंटर में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अर्पित गुप्ता कहते हैं, "हम अपनी प्रैक्टिस में देखते हैं कि भारत ओरल कैंसर का हब है. पुरुषों में यह कैंसर सर्वाधिक है. हमारे सामने समस्या यह है कि जब तक मरीज हमारे पास आते हैं तब तक कैंसर बहुत बढ़ चुका होता है. इस समय तक कैंसर उन्हें बहुत नुकसान पहुंचा चुका होता है."

डॉक्टर गुप्ता कहते हैं, "हमारी कोशिश है कि कैंसर होने से पहले उन लक्षणों की पहचान कर ली जाए ताकि हम रोकथाम और इलाज के जरिए पेशेंट को कैंसर के जाल में फंसने से रोक सकें. हम यह चाहते हैं कि एक एआई आधारित ऐप बने जिसका इस्तेमाल कर शुरुआत में ही कैंसर का पता लगाया जा सके."

ऐप किस तरह काम करेगा?
इस ऐप को ट्रेन करने के लिए लिवर कैंसर की दो हजार जबकि मुंह के कैंसर की ढाई हजार तस्वीरें ली गई हैं. यह तस्वीरें ऐप में 'फीड' की जाएंगी. फिर जब कोई डॉक्टर या आशा वर्कर किसी मरीज के मुंह या लीवर की स्क्रीनिंग करेगा तो ऐप इन्हीं तस्वीरों के आधार पर कैंसर सेल्स का पता लगाएगा. 

डॉक्टर गुप्ता कहते हैं, "हम ऐसा ऐप बनाना चाहते हैं जिसमें एक आशा वर्कर भी मरीज के मुंह की तस्वीर ले, और थोड़ी सी डीटेल डालने पर ही पता चल जाए कि मरीज को कैंसर होने की संभावना है या नहीं."

डॉक्टर का कहना है कि वह जल्द ही अन्य अस्पतालों से डेटा लेकर उसका इस्तेमाल भी करेंगे. भारत में कैंसर के इलाज की लागत तीन से पांच लाख रुपए के बीच होती है. लेकिन अगर समय से पहले कैंसर के होने की संभावना का पता लगा लिया जाएगा तो इसका इलाज भी आसान होगा. 

 

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