पराली जलाने से महिलाओं में बढ़ रही फेफड़ों की समस्या, जानें कैसे?

स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव से संबंधित इस शोध को पटियाला, पंजाब के छह गांवों में दो चरणों में आयोजित किया गया था. पहला चरणा अक्टूबर 2018 और मार्च-अप्रैल 2019 में किया गया था. उसके बाद दूसरा चरण नवंबर 2018 के अंत में उन्हीं गांवों में किया गया था. दरअसल नवंबर के समय में सबसे ज्यादा पराली जलाई जाती है, इसके साथ ही मौसम में भी बदलाव आता है.

पराली जलाना फेफड़ों के लिए हानिकारक है
शताक्षी सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:30 PM IST
  • महिलाओं के स्वास्थ को विशेष रूप से पराली जलाने से तकलीफ होती है
  • ये शोध स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव से संबंधित सबसे बड़ा शोध है

भारत में पराली जलाना एक गंभीर समस्या है. पराली जलाने के कारण प्रदूषण भी लगातार बढ़ता चला जा रहा है. पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की वजह से फेफड़ों को भी काफी नुकसान पहुंचता है. हाल ही में हुए एक शोध में पाया गया है कि ग्रामीण पंजाब में महिलाओं को विशेष रूप से पराली जलाने से हानि पहुंची है. दरअसल ये शोध स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव से संबंधित हुए शोधों में सबसे बड़ा है.

दो चरणों मे हुआ शोध
इस शोध को पटियाला, पंजाब के छह गांवों में दो चरणों में आयोजित किया गया था. पहला चरणा अक्टूबर 2018 और मार्च-अप्रैल 2019 में किया गया था. उसके बाद दूसरा चरण नवंबर 2018 के अंत में उन्हीं गांवों में किया गया था. दरअसल नवंबर के समय में सबसे ज्यादा पराली जलाई जाती है, इसके साथ ही मौसम में भी बदलाव आता है. वायु गुणवत्ता में परिवर्तन को मापने के लिए इन अवधियों को चुना गया था. इस शोध में 10 से 60 साल की उम्र के करीब 3,600 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था. जबकि पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण और श्वसन स्वास्थ्य के बीच संबंध व्यापक रूप से प्रलेखित हैं, भारत में ऐसे अध्ययन काफी कम हुए हैं, जिन्होंने फेफड़ों के स्वास्थ्य पर खराब हवा के प्रभाव को स्पष्ट रूप से सिद्ध किया हो.

इन लक्षणों पर दें ध्यान
पराली जलाने के कारण श्वसन रोगों के लक्षणों में दो से तीन गुना वृद्धि देखी गई है. जिसमें 10 से 60 साल की उम्र में घरघराहट, काम करने पर सांस फूलना, सुबह खांसी, रात में खांसी, त्वचा पर चकत्ते, नाक बहना या आंखों में खुजली आदि शामिल हैं. अध्ययन में पाया गया है कि श्वसन संबंधी शिकायतों की सबसे अधिक संख्या बुजुर्ग आबादी में दर्ज की गई है. खाना पकाने के ईंधन, वेंटिलेशन, सड़क से दूरी आदि के प्रभाव को नियंत्रित करने के बाद भी पार्टिकुलेट मैटर के बढ़ने के कारण लोगों में फेफड़ों की समस्या पाई गई. शोध के अनुसार पुरुषों में 10-14% तक फेफड़ों की समस्या देखी गई वहीं सभी आयु वर्ग की महिलाओं में लगभग 15-18% तक ये समस्या देखी गई. इस शोध में द एनर्जी रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI), दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा लिखे गए अध्ययन में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों का योगदान है.

सबसे ज्यादा पंजाब में क्यों जल रही पराली?
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पंजाब में धान की करीब 30 फीसदी कटाई बची है. इस साल बारिश ज्यादा होने के कारण कटाई में पहले ही देर हुई है. धान की फसलों में लेट वैराइटी के धान भी हैं. जिस कारण गेहूं और सरसों जैसी रबी सीजन की फसलों की बुवाई का वक्त निकल रहा है. ऐसे में किसान पराली गलाने की जगह पराली जलाने में फायदा देख रहे हैं. जिससे उनका समय भी बच रहा है. दूसरे राज्यों की तरह पंजाब सरकार ने पूसा डीकम्पोजर का प्रचार भी नहीं किया इसलिए वहां पराली सबसे ज्यादा जलाई जा रही है.

 

 

Read more!

RECOMMENDED