हम अक्सर हीरोज को फिल्मों में देखते हैं लेकिन कई हीरो आपके और हमारे बीच में ही होते हैं. ठीक ऐसे ही एक हीरो हैं कांस्टेबल बापन दास. भारत-बांग्लादेश सीमा के पास बसे गांव में, कोलकाता की पुलिस स्पेशल सेल में कार्यरत कांस्टेबल बापन दास (Bapan Das) चुपचाप जरूरतमंद लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं. एक दूरदराज के गांव से आने वाले बापन दास लोगों की जिंदगी बचाने का काम कर रहे हैं.
कर रहे हैं लोगों की मदद
बापन दास कोलकाता की स्पेशल सेल में एक कांस्टेबल हैं. वे अकेले ही अपना मिशन चला रहे हैं. वे लोगों को इमरजेंसी में खून दिलवाने का काम करते हैं. उनके पास 2 मोबाइल हैंडसेट हैं जिनमें 7,000 से ज्यादा कॉन्टैक्ट हैं. इन दोनों मोबाइल में नाम, ब्लड ग्रुप और एड्रेस लिखा गया है. ये उन लोगों के नाम हैं जो ब्लड डोनेट करना चाहते हैं. वे ब्लड डोनर्स को जरूरतमंद लोगों से जोड़ने का प्रयास करते हैं.
ब्लड डोनेशन के लिए बनाया है डेटा
दरअसल, इस मिशन की प्रेरणा उन्हें व्यक्तिगत त्रासदी से मिली. उनकी बहन को इलाज के लिए खून की जरूरत थी, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिल सकी, जिसके कारण उनकी जान चली गई थी. बस तभी से बापन दास ने ठान लिया कि वे किसी दूसरे जरूरतमंद को इस समस्या का सामना नहीं करने देंगे. लोगों की मदद के लिए उन्होंने एक डेटा बनाया है जिसमें उन लोगों के नाम हैं जो ब्लड डोनेट कर सकते हैं.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बापन दास कहते हैं, “बचपन में मेरी बहन खाना बनाते समय जल जाने से मर गई थी. जब मैं बड़ा हुआ तो मुझे पता चला कि उसे इलाज के लिए खून की जरूरत है जिसका इंतजाम नहीं हो पा रहा था. इस बात ने मुझे बहुत दुख पहुंचाया.”
स्वामी विवेकानंद हैं मार्गदर्शक
रिपोर्ट के मुताबिक, बापन दास की यात्रा ने एक परिवर्तनकारी मोड़ तब लिया जब उनकी नौकरी 2019 में कोलकाता में एक पुलिस कांस्टेबल के रूप में हुई. उन्होंने इस दौरान अपनी छुट्टी के दिन आराम करने की जगह सेवा करना चुना. उन्हें हावड़ा के बेलूर मठ में स्वामी विवेकानंद के शब्दों में प्रेरणा मिली- आप एक छाप छोड़ने के लिए पैदा हुए हैं. यह उनके जीवन का आदर्श वाक्य बन गया, जिससे उन्हें जरूरतमंदों की मदद करने की प्रेरणा मिली.
जीवन बचाने के लिए 13 साल का समर्पण
कठिन ड्यूटी शेड्यूल के बावजूद, बापन दास ने 13 साल में 191 ब्लड शिविर आयोजित किए हैं. एक वाकया याद करते हुए वे कहते हैं, “मैं सांसद के निजी सुरक्षा अधिकारी के रूप में तैनात था. अचानक उनकी पत्नी बीमार पड़ गईं और मैंने अपने फोन में सेव नंबरों से 16 बोतल खून की व्यवस्था की. यहां तक कि मेरी संपर्क सूची में एक ब्लड डोनर तो 555 किमी की यात्रा करके कोलकाता आए.