लंदन से आई ये खबर किसी चमत्कार से कम नहीं है. एक महिला, जिसे डॉक्टरों ने बताया था कि वह कभी मां नहीं बन पाएगी, आज अपनी नन्हीं सी बच्ची को गोद में लिए बैठी है. उसका चेहरा चमक रहा है, आंखों में आंसू हैं... लेकिन खुशी के. बच्ची का नाम है "एमी"– उसी बहन के नाम पर जिसने अपना गर्भाशय देकर इसे मुमकिन बनाया.
ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि एक सच्ची घटना है.
जब मुमकिन नहीं था मां बनना...
ग्रेस डेविडसन, उम्र 36 साल, यूनाइटेड किंगडम के नॉर्थ लंदन में रहती हैं. लेकिन एक वक्त ऐसा था जब उन्हें लगता था कि वो कभी मां नहीं बन सकेंगी. ग्रेस Mayer-Rokitansky-Küster-Hauser (MRKH) सिंड्रोम से पीड़ित हैं – एक ऐसी दुर्लभ स्थिति जिसमें लड़की जन्म से ही गर्भाशय के बिना पैदा होती है, हालांकि अंडाशय (ovaries) काम करते हैं.
मतलब-हार्मोनल तौर पर महिला पूरी तरह स्वस्थ होती है, लेकिन गर्भधारण करना नामुमकिन.
बहन ने दिया ‘मां’ बनने का तोहफा
इस दर्द को केवल वही समझ सकता है जो कभी खुद मां बनने का सपना देख चुका हो. लेकिन ग्रेस की जिंदगी में एक ‘एंजेल’ थीं – उनकी बहन एमी पर्डी. एमी पहले से दो बच्चों की मां थीं और परिवार बढ़ाने का इरादा नहीं था. साल 2023 में UK में पहला सफल womb transplant हुआ और ये ट्रांसप्लांट किया गया एमी का गर्भाशय ग्रेस के शरीर में!
इस सर्जरी को अंजाम देने में 17 घंटे लगे और 30 से ज्यादा डॉक्टरों की टीम लगी. ये एक तरह का इतिहास था.
"एमी" का जन्म
इस ऐतिहासिक ट्रांसप्लांट के ठीक दो साल बाद, फरवरी 2025 में, ग्रेस और उनके पति एंगस के घर आई एक नन्ही परी– बेबी एमी. जन्म के समय बच्ची का वजन महज 2 किलो से थोड़ा ज्यादा था, लेकिन मां-बाप की आंखों में उसकी कीमत अनमोल थी. ग्रेस ने कहा, “हमने कभी यह कल्पना नहीं की थी कि ऐसा दिन देखेंगे. एमी को पहली बार गोद में लेना जैसे किसी सपने को जीना था.”
बच्ची का मिडल नेम रखा गया "इसाबेल", उस सर्जन के नाम पर जिसने ये पूरी प्रक्रिया सफलतापूर्वक की– डॉक्टर इसाबेल कीरोगा.
मेडिकल चमत्कार, लेकिन Caveat जरूरी है...
जहां ये खबर एक 'मेडिकल मिरेकल' की तरह है, वहीं इसके साथ जुड़ी कुछ चेतावनियां और सीमाएं भी हैं-
1. लाइफटाइम इम्यूनो-सप्रेसेंट दवाइयों का खतरा
ग्रेस को अब भी रोज़ाना दवाइयां लेनी पड़ती हैं ताकि शरीर transplanted गर्भाशय को रिजेक्ट न कर दे. ये दवाइयां इम्यून सिस्टम को दबा देती हैं, जिससे कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए, डॉक्टरों ने सलाह दी है कि दूसरा बच्चा होने के बाद गर्भाशय को हटा दिया जाएगा.
2. सिर्फ IVF से संभव
इस तरह की प्रेगनेंसी नेचुरल कंसीव से नहीं हो सकती. ग्रेस ने पहले से IVF के जरिए embryos बनवाकर स्टोर कर रखे थे. यह तकनीक महंगी भी है और हर किसी के लिए संभव नहीं.
3. लिविंग डोनर का मिलना मुश्किल
अब तक UK में केवल कुछ ही ट्रांसप्लांट हुए हैं. कुल 15 महिलाओं के लिए clinical trial की अनुमति मिली है, जिनमें से सिर्फ 5 केस लिविंग डोनर से होंगे. बाकी 10 केस में मृत डोनर की जरूरत होगी – जो कि एक बहुत ही रेयर डोनेशन है.
ये भावुक पल सिर्फ ग्रेस के लिए ही नहीं, बल्कि उनकी बहन के लिए भी खास था. एमी ने कहा, “मैंने कोई कमी महसूस नहीं की क्योंकि मैं जानती थी कि मेरी बहन को एक नई जिंदगी मिली है.”
दुनिया भर में ऐसे कितने केस?
बता दें, UK में एक ट्रांसप्लांट की औसत लागत £30,000 (करीब 32 लाख रुपये) होती है. Womb Transplant UK नामक एक चैरिटी इस प्रक्रिया को फंड कर रही है, और अभी उनके पास दो और ट्रांसप्लांट कराने लायक पैसा है. गुड न्यूज ये है कि सभी डॉक्टर्स ने इस केस में अपना समय फ्री में दिया.