कोरोना से विश्व को राहत मिली नहीं थी कि इसी बीच मंकीपॉक्स (Monkeypox) ने लोगों के बीच दहशत कायम कर दी है. 20 से ज्यादा देशों में इस बीमारी ने अपना पैर पसार दिया है. सबसे ज्यादा मामले स्पेन, अमेरिका, कनाडा, पुर्तगाल और यूरोपीय देशों में देखने को मिल रहे हैं. हालांकि अफ्रीका में यह बीमारी पहले से ही है लेकिन अब अन्य देशों में फैलने से लोग ज्यादा चिंतित हैं. चिंता इस बात की भी है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है लेकिन अब राहत की खबर सामने आई है. वैज्ञानिकों ने स्टडी में पाया है कि चेचक की दवाओं का मंकीपॉक्स के मरीजों पर पॉजिटिव असर हुआ है.
क्या है मंकीपॉक्स बीमारी
साल 1958 में पहली बार यह बीमारी बंदरों में पाई गई और इसलिए इसका नाम मंकीपॉक्स पड़ा. यह बीमारी देखने में चेचक जैसी ही होती है लेकिन डॉक्टर के अनुसार यह उससे अलग है. मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है जो जानवरों से मनुष्यों में फैलता है. जैसे चूहों, बंदरों और गिलहरियों आदि से. अगर इस बीमारी के लक्षण की बात करें तो बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द कमजोरी महसूस करना इसके आम लक्षण हैं. मंकीपॉक्स वायरस का असर सामान्यतः पांच से तेरह दिनों तक रहता है.
ऐसे फैलता है
जो मंकीपॉक्स वायरस से संक्रमित है उसके संपर्क में आने से यह बीमारी फैलती है. इसलिए अलर्ट रहने की जरुरत है. हालांकि भारत के लोगों के लिए राहत की खबर ये है कि फ़िलहाल देश में एक भी केस मंकीपॉक्स का नहीं पाया गया है.
चेचक की दवाओं से जगी आस
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में पाया कि चेचक की दवाएं मंकीपॉक्स बीमारी में कारगर साबित हो सकती है. चेचक की दो दवाएं एंटीवायरल ब्रिनसीडोफोविर और टेकोविरिमैट को वैज्ञानिकों ने 2018 से 2021 के बीच मंकीपॉक्स के सात मरीजों के इलाज में इस्तेमाल किया। शुरुआत में तीन मरीज को ब्रिनसीडोफोविर दिया गया और और एक को टेकोविरिमैट दिया गया. वैज्ञानिकों ने अपने स्टडी में पाया कि जिन तीन मरीज को ब्रिनसीडोफोविर दिया गया उसके हालात में ज्यादा सुधार नहीं हुए लेकिन जिस मरीज को टेकोविरिमैट दिया गया था उसको राहत मिली। इसके बाद वैज्ञानिकों ने इस बात की उम्मीद जागी कि मंकीपॉक्स बीमारी में चेचक की दवा प्रभावी साबित हो सकती है.
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