AI-Based Solution to Respiratory Disease: चंद मिनटों में रेस्पिरेटरी और जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाएगा यह सॉफ्टवेयर, IIT मंडी के स्टार्टअप ने बनाया AI-बेस्ड डिवाइस

आईआईटी मंडी के एक स्टार्टअप ने हाल ही में एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड इमेजिंग सॉल्यूशन बनाया है जो श्वसन संबंधी असामान्यताओं, हैपेटॉबिलिअरी रोगों और बच्चों में आनुवंशिक विकारों का आसानी से पता लगाएगा.

चंद मिनटों में रेस्पिरेटरी और जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाएगा यह सॉफ्टवेयर
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 02 मई 2023,
  • अपडेटेड 12:53 PM IST
  • एक्स-रे डाल कर मिनटों में लगेगा बीमारी का पता
  • शुरुआती दौर में नहीं लग पाता है बीमारियों का पता

एआई ने मानव जाति के लिए काफी क्रांति की है. ये धीरे-धीरे लोगों को जिंदगियों को आसान करता जा रहा है. इसमें होने वाले तरह-तरह के आविष्कार लोगों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रहे हैं. अब आईआईटी-मंडी के एक स्टार्टअप ने श्वसन संबंधी असामान्यताओं, हैपेटॉबिलिअरी रोगों और बच्चों में आनुवंशिक विकारों का जल्द पता लगाने के लिए एक कम दाम वाला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड इमेजिंग सॉल्यूशन बनाया है. 

एक्स-रे डाल कर मिनटों में लगेगा बीमारी का पता
डेक्ट्रोसेल हेल्थकेयर के इनोवेटर्स ने एक ऐसा प्लेटफार्म बनाया है जहां आप डिजिटल और एनालॉग चेस्ट एक्स-रे इमेज और बच्चों की तस्वीरें अपलोड करके कुछ ही मिनटों में श्वसन संबंधी असामान्यताओं जैसे क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और ट्यूबरक्लोसिस जैसी बीमारियों का तुरंत पता लगा सकेंगे. डेक्ट्रोसेल हेल्थकेयर एंड रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड की सह-संस्थापक सौम्या शुक्ला ने कहा, "एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और एमएल (मशीन लर्निंग) स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी बड़े बदलाव ला सकती है. यह युग सुपर-इंटेलिजेंस का जन्म देखेगा. मशीन और मनुष्य दोनों मिलकर लगातार ब्रह्मांड का विस्तार कर रहे हैं. 

शुरुआती दौर में नहीं लग पाता है बीमारियों का पता
सौम्या ने बताया कि भारत की आबादी 1.4 अरब है और चिकित्सा रिपोर्ट के अनुसार, पांच में से एक व्यक्ति किसी पुरानी बीमारी से पीड़ित है. उन्होंने कहा कि हैपेटॉबिलिअरी रोग, विशेष रूप से दुर्दमता, और श्वसन की स्थिति जैसे अंतरालीय फेफड़े की बीमारी (आईएलडी), सीओपीडी, और फेफड़ों का कैंसर एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट है और मौजूदा नैदानिक ​​समाधानों में से अधिकांश देर से होने वाली बीमारियों पर केंद्रित हैं. 

उन्होंने आगे कहा, "इन बीमारियों में से अधिकांश में शुरुआत में कोई बड़ा लक्षण नहीं होता है. जिससे शुरुआती चरण में इसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है. इसे रोकने के लिए, डेक्ट्रोसेल हेल्थकेयर किफायती नैदानिक उपकरण बनाने पर काम कर रहा है. इस तरह की पुरानी बीमारियों का जल्दी पता लगाने के लिए रोगी के पास आशाजनक स्वास्थ्य परिणामों के साथ ठीक होने का अच्छा मौका है."

मिस डायग्नोस से भी मिलेगा छुटकारा
शोधकर्ताओं ने दावा किया कि ये सॉफ्टवेयर बीमारियों का पता उनके शुरुआती दौर में ही लगा लेंगे. जिसके बाद उन्हें विशेष स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकेंगी. कई बार लोगों में गलत बीमारियां डायग्नोस हो जाती हैं. ये सॉफ्टवेयर इससे भी छुटकारा दिलाएगा. सौम्या का कहना है कि, "टेक्नोलॉजी की मदद से दुनिया के सबसे दूरस्थ हिस्से में भी स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाई जा सकती हैंडेक्ट्रोसेल हेल्थकेयर में, हमने अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश को बड़े पैमाने पर इस प्रभाव को शुरू करने के लिए चुना है, और फिर इसे राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर ले जाएंगे."

 

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