What Are Microplastics: माइक्रोप्लास्टिक क्या है? पर्यावरण और लोगों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है!

Microplastics: शोधकर्ता लगभग 20 सालों से माइक्रोप्लास्टिक्स से होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित हैं. माइक्रोप्लास्टिक पांच मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं. माइक्रोप्लास्टिक के छोटे कण छह दिनों तक हवा में रह सकते हैं.

Microplastics
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 15 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 11:21 AM IST
  • माइक्रोप्लास्टिक के छोटे कण छह दिनों तक हवा में रह सकते हैं.
  • माइक्रोप्लास्टिक पांच मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं.

समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है. हालांकि चीन के वैज्ञानिकों ने इस समस्या से पार पाने का एक नया तरीका ढूंढ निकाला है. चीनी वैज्ञानिकों ने रोबोटिक मछली तैयार की है, ये मछली सूक्ष्म प्लास्टिक खाती है. इससे समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक की समस्या खत्म करने में मदद मिलेगी. 

क्या होते हैं माइक्रोप्लास्टिक
माइक्रोप्लास्टिक पांच मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं. इनका आकार एक तिल के बीज के बराबर हो सकता है. प्लास्टिक अलग-अलग रास्तों से होकर समुद्र में पहुंच जाता है, जहां सूरज, हवा या अन्य कारणों से प्लास्टिक सूक्ष्म कणों में टूट जाता है, जो माइक्रोप्लास्टिक बनता है.

पर्यावरण पर माइक्रोप्लास्टिक का क्या प्रभाव पड़ता है
माइक्रोप्लास्टिक न केवल इंसानी स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा हैं. माइक्रोप्लास्टिक के छोटे कण बैक्टीरिया और लगातार कार्बनिक प्रदूषकों के वाहक के रूप में काम करते हैं.पीओपी जहरीले कार्बनिक यौगिक होते हैं, जिन्हें खत्म होने में सालों लग जाते हैं. यह उच्च साद्रता के कारण इंसानों और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं. माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी बर्फ पिघलने की रफ्तार पर भी असर डाल रही है.

प्लास्टिक से इंसानों के कितना खतरा है
शोधकर्ता लगभग 20 सालों से माइक्रोप्लास्टिक्स से होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित हैं. माइक्रोप्लास्टिक के छोटे कण छह दिनों तक हवा में रह सकते हैं. कई बार ये कण इंसानों के फेफड़ों तक भी पहुंच जाते हैं. ये छोटे कण शरीर की कोशिकाओं की कार्य प्रणाली को खराब कर सकते हैं. सीफूड खाने के बाद प्लास्टिक मनुष्यों के शरीर में पहुंच जाता है. इससे त्वचा और सांस संबंधी जोखिम बढ़ सकते हैं. ऐसे में जरूरी है प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग को कम किया जाए. दुनिया में हर साल 400 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है. सरकार ने प्लास्टिक के कम उपयोग को लेकर कई कदम उठाए हैं लेकिन लोगों में अभी भी इसे लेकर जागरूकता कम ही है. मार्केट में सामान खरीदने जाने वाले लोग आज भी पॉलिथिन पर ही निर्भर हैं. 

 

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