महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में एक व्यक्ति की गुलियन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barre Syndrome) से मौत हो गई है, जबकि पुणे में इस बीमारी के 100 मामले सामने आ चुके हैं. ये महाराष्ट्र में GBS से होने वाली पहली मौत मानी जा रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 80% GBS के मामले पुणे के सिंहगढ़ रोड स्थित नांदेड गांव के एक बड़े कुएं के पास से आए हैं. इन मामलों की नंबर बढ़ने का कारण जल प्रदूषण हो सकता है.
उन्होंने आश्वासन दिया कि इस मुद्दे को लेकर नगर निगम सतर्कता बरत रहा है. GBS के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 7 सदस्यीय एक्सपर्ट टीम महाराष्ट्र भेजी है, जो राज्य को स्थिति की निगरानी और मैनेजमेंट में मदद करेगी. इसके साथ ही महाराष्ट्र सरकार ने भी एक तेज प्रतिक्रिया टीम (Rapid Response Team) बनाई है. जो इस बीमारी के मामलों की जांच करेगी.
क्या है गुलियन-बैरे सिंड्रोम?
GBS एक दुर्लभ लेकिन गंभीर ऑटोइम्यून बीमारी है, जो शरीर की नसों (नर्वस सिस्टम) को प्रभावित करती है. इस बीमारी में मसल्स में कमजोरी और लकवे (paralysis) के लक्षण दिखाई देते हैं. अगर इसे समय पर नहीं पहचाना जाए और इलाज नहीं किया जाएं तो यह गंभीर परेशानियां पैदा कर सकता है. इस बीमारी का नाम फ्रांस के दो न्यूरोलॉजिस्ट Georges Guillain और Jean Alexandre Barré के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1916 में इसे पहली बार इस बीमारी को पहचाना था.
मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (द्वारका) के न्यूरोलॉजी प्रिंसिपल डायरेक्टर डॉ. आनंद सक्सेना के अनुसार, गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) ये बीमारी 1,00,000 लोगों में से 1% से 2% को प्रभावित करती है. GBS तब होता है जब किसी व्यक्ति के शरीर में वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी बनाता है. ये एंटीबॉडी गलती से हमारी नसों पर हमला कर देती हैं, जिससे नसें कमजोर होने लगती हैं और शरीर में कमजोरी या लकवा जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. इसे Molecular Mimicry कहते हैं, क्योंकि वायरस या बैक्टीरिया के कुछ हिस्से हमारी नसों की तरह दिखते हैं, जिससे शरीर भ्रमित हो जाता है और अपनी ही नसों को नुकसान पहुंचाने लगता है.
पुणे में GBS के 101 मामले, 16 मरीज वेंटिलेटर पर
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के कारण क्या हैं?
इस बीमारी का सटीक कारण अभी पता नहीं चला है, लेकिन इसे कुछ इंफेक्शन या बीमारियां ट्रिगर कर सकती हैं, जैसे-
गुलियन-बैरे सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं?
इस बीमारी की शुरुआत अक्सर पैरों और हाथों में झनझनाहट और कमजोरी से होती है, जो धीरे-धीरे ऊपरी शरीर तक फैल सकती है. GBS के आम लक्षणों के बारे में बात करें तो ये हैं-
फिलहाल, डॉक्टर लोगों को अधपका या कच्चा पनीर, चीज़ या चावल आदि खाने से बचने की सलाह दे रहे हैं क्योंकि अधपके या कच्चे डेयरी प्रोडक्ट्स को खाने से आपको GBS होने का खतरा बढ़ता है.
कितने प्रकार के होते हैं गुलियन-बैरे सिंड्रोम?
गुलियन-बैरे सिंड्रोम अलग-अलग प्रकारों में देखा जाता है-
1. तीव्र सूजन संबंधी डिमाइलेटिंग पॉलीन्यूरोपैथी ( Acute Inflammatory Demyelinating Polyneuropathy): पश्चिमी देशों में सबसे आम प्रकार, जिसमें नसों के बाहरी आवरण (myelin sheath) को नुकसान पहुंचता है.
2. एक्सोनल फॉर्म-
3. मिलर फिशर सिंड्रोम (MFS): एक दुर्लभ प्रकार, जिसमें आंखों की मसल्स में कमजोरी, बैलेंस खोना और रिफ्लेक्स का कम होना शामिल है.
गुलियन-बैरे सिंड्रोम किस उम्र के लोगों को ज्यादा प्रभावित करता है?
आमतौर पर 30 से 60 साल की उम्र के लोगों में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम ज्यादा देखा जाता है, लेकिन यह किसी को भी हो सकता है. डॉक्टरों के मुताबिक अगर इस बीमारी को समय पर पहचान लिया जाए और सही इलाज मिले, तो मरीज ठीक हो सकता है.
गंभीर मरीज, जिन्हें सांस लेने और निगलने में दिक्कत होती है और वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है, वे भी 3 से 6 महीने के भीतर सही इलाज और अच्छी फिजियोथेरेपी से पूरी तरह ठीक हो सकते हैं. हाल ही में, पुणे से एक छह साल के बच्चे की रिकवरी की खबर आई है. सही देखभाल और फिजियोथेरेपी ने बच्चे की रिकवरी को मुमकिन किया.
गुलियन-बैरे सिंड्रोम का इलाज और देखभाल
गुलियन-बैरे सिंड्रोम एक संभावित जानलेवा बीमारी है, इसलिए मरीजों को अस्पताल में भर्ती कर निगरानी में रखना जरूरी होता है. इलाज के कुछ जरूरी बातो ध्यान देना बहुत जरूरी होता हैं, जैसे मरीज की सांस, हार्ट बीट और ब्लड प्रेशर पर लगातार नजर रखी जाती है. गंभीर मामलों में वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है. इन्फेक्शन, ब्लड क्लॉटिंग और ब्लड प्रेशर की समस्याओं से बचाव के लिए विशेष देखभाल जरूरी होती है. गुलियन-बैरे सिंड्रोम का कोई परमानेंट इलाज नहीं है, लेकिन कुछ इलाज इससे उबरने में मदद कर सकते हैं, जैसे
प्लाज़्मा थेरेपी (Plasma Exchange)- इसमें खून से हानिकारक एंटीबॉडी को हटाया जाता है, जिससे लक्षणों में सुधार होता है.
इंट्रावीनस इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) थेरेपी- ये शरीर में एंटीबॉडी को संतुलित करने में मदद करती है और लक्षणों की तेजी को कम कर सकती है.
ये इलाज गुलियन-बैरे सिंड्रोम के लक्षण दिखने के 7 से 14 दिनों के भीतर सबसे ज्यादा प्रभावी होता है. समय पर गुलियन-बैरे सिंड्रोम के इलाज से मरीज 3 से 6 महीने में पूरी तरह से ठीक हो सकता है. इस बीमारी से बचने के लिए सावधानी बरतें और साफ पानी पिएं, अच्छी स्वच्छता बनाए रखें और शरीर में लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें.
(यह रिपोर्ट निशांत सिंह ने लिखी है. निशांत GNTTV.COM के साथ बतौर इंटर्न काम कर रहे हैं.)