ऑफिस में करना पड़ता है फोकस्ड रहने का दिखावा! घर में जाहिर करनी पड़ती है फेक हैप्पीनेस! ये कुछ और नहीं प्लीसेंटिज़्म है

प्लीजेंटिज्म आमतौर पर ऑफिस के दबावों के कारण होता है. कर्मचारी अक्सर सोचते हैं कि उन्हें हर हाल में अच्छा दिखना है ताकि उन्हें आलसी, कमजोर, या फिर अनप्रोफेशनल न समझा जाए.

Pleasanteeism
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:29 PM IST
  • जाहिर करनी पड़ती है फेक हैप्पीनेस
  • दुनिया भर के वर्कप्लेस में एक बढ़ती हुई समस्या

आज के समय में वर्कलोड के चलते ज्यादातर लोग मेंटली और फिजिकली थक जाते हैं लेकिन वो महसूस नहीं होने देते कि वो थके हैं या थकावट के कारण उनका काम में मन नहीं लग रहा है. इस सिचुएशन को 'प्लीजेंटिज्म' (Pleasenteeism) कहा जाता है. इसका मतलब है काम के समय में अपने असली एक्स्प्रेशन छुपाकर खुश रहने का नाटक करना, जबकि अंदर ही अंदर आप तनाव, थकावट, या नाखुशी महसूस कर रहे होते हैं. यह दुनिया भर के वर्कप्लेस में एक बढ़ती हुई समस्या है, जिस पर ध्यान न दिए जाने पर अक्सर गंभीर मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां पैदा होती हैं.

क्यों होता है प्लीजेंटिज्म?
प्लीजेंटिज्म आमतौर पर ऑफिस के दबावों के कारण होता है. कर्मचारी अक्सर सोचते हैं कि उन्हें हर हाल में अच्छा दिखना है ताकि उन्हें आलसी, कमजोर, या फिर अनप्रोफेशनल न समझा जाए. आज के कॉम्पिटेटिव माहौल में अक्सर यह उम्मीद की जाती है कि आप हर दिन 100% एनर्जी और उत्साह के साथ काम करें. एक आइटी प्रोफेशनल के मुताबिक उन्हें भी काम करते समय कई बार थका हुआ महसूस होता है, लेकिन फिर भी वो मुस्कुराते रहते हैं. वो बताते हैं कि बस वो ही नहीं सब ऐसा ही करते हैं, अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो वो कमजोर समझे जाएंगे. यह दबाव कर्मचारियों को अपनी असली फीलिंग्स को छिपाने और मदद मांगने से भी रोकता है.

Pleasanteeism in office

काम करने की क्षमता और मेंटल हेल्थ पर इसका असर 
हर समय अपनी सच्ची फीलिंग्स को छिपाना मेंटल हेल्थ पर गहरा असर डालता है. प्लीजेंटिज्म से जुड़े कर्मचारी ज्यादा तनाव और चिंता का अनुभव करते हैं. धीरे-धीरे, यह बर्नआउट, डिप्रेशन और नौकरी से नापसंदगी की ओर ले जाता है. इस तरह के दबाव से काम की क्वालिटी भी गिरने लगती है. मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के बावजूद खुद को काम के लिए मजबूर करना स्थिति को और बिगाड़ देता है. इससे मेंटल स्ट्रेस और ज्यादा बढ़ जाता है और व्यक्ति अपनी समस्याओं को लेकर और अधिक कमजोर महसूस करने लगता है.

'हसल कल्चर' से बचना जरूरी
आज की 'हसल कल्चर' में यह धारणा बन गई है कि हर समय व्यस्त रहना और मेहनत करते रहना ही सफलता की चाबी है. लेकिन इस कल्चर के पीछे छिपा मानसिक और शारीरिक नुकसान लंबे समय से कर्मचारियों की सेहत पर बुरा असर डालता है. आप कितनी भी पॉजिटिव होने का नाटक करें, लेकिन अगर आप अंदर से थके हुए हैं, तो यह लंबे समय तक टिक नहीं पाएगा. इसका असर आपकी मानसिक और शारीरिक सेहत पर जरूर ही पड़ेगा.

प्लीजेंटिज्म से कैसे बच सकते हैं?
  
1.  मेंटल हेल्थ को सबसे ऊपर रखें
कर्मचारियों के मेंटल हेल्थ पर खुलकर बात करने का माहौल बनाना जरूरी है. मैनेजर्स को कर्मचारियों में तनाव के लक्षण पहचानने और उनकी मदद के लिए ट्रेन करना चाहिए. कर्मचारियों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि वे बिना किसी झिझक के अपनी समस्याएं बता सकते हैं.  

2. ब्रेक्स और छुट्टियों को बढ़ावा दें
काम के बाद कर्मचारियों को पूरी तरह से डिस्कनेक्ट होने के लिए कहें. नियमित छुट्टियां लेने का माहौल बनाएं ताकि वे खुद को रिफ्रेश कर सकें.  

3.  फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स जैसे ऑप्शन दें
रिमोट वर्क या फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स जैसे ऑप्शन दें ताकि कर्मचारियों को कम तनाव हो.

4. एक सुरक्षित माहौल बनाएं
नियमित वन-ऑन-वन मीटिंग्स और ओपन-डोर पॉलिसी अपनाएं. यह तय करें कि कर्मचारी अपनी थकावट बताने में कोई परेशानी न महसूस करें और इसे कमजोरी न समझा जाए.

मेंटल हेल्थ के लिए जागरूकता जरूरी
प्लीजेंटिज्म कोई नई समस्या नहीं है. यह हमेशा से वर्कप्लेस का हिस्सा रहा है, लेकिन इसे लेकर अब खुलकर बात हो रही है. काम पर सिर्फ उपस्थित होना ही जरूरी नहीं है, बल्कि अपनी पूरी क्षमता के साथ योगदान देना जरूरी है और यह तभी मुमकिन है जब आप मेटंली और फिजिकली फिट रहें.

यह स्टोरी निशांत सिंह ने लिखी है, निशांत GNTTV में बतौर इंटर्न काम कर रहे हैं.

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