Sleepwalking: मुंबई में हाल ही में नींद में चलने की बीमारी की वजह से एक 19 वर्षीय युवक की मौत हो गई. मुंबई के मझगांव इलाके में रहने वाला युवक नींद में चलते हुए छठवीं मंजिल की बॉलकनी से गिर गया.
बॉयकुला पुलिस के मुताबिक, युवक पिछले 3-4 दिन से नींद में चल रहा था. युवक जिस बॉलकनी से गिरा, उसमें ग्रिल नहीं थी. हादसे के बाद युवक को अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टर ने युवक को मृत घोषित कर दिया.
क्या है स्लीपवॉकिंग?
नींद में चलने वाली बीमारी को स्लीपवॉकिंग और सोमनाबुलिज्म भी कहते हैं. स्लीपवॉकिंग एक साइकोलॉजिकल बीमारी है जो बेहद कम लोगों को होती है.
इस बीमारी में व्यक्ति गहरी नींद के दौरान चलने लगता है, बेड पर उठकर बैठ जाता है, फ्रिज खोल देता है, खाना बनाने लगता है और कई बार ड्राइविंग भी करने लगता है.
स्लीपवॉकिंग बीमारी में सुबह जागने के बाद व्यक्ति को याद नहीं रहता कि रात को उसने क्या किया था या कहां गया था? नींद में चलने की बीमारी वैसे तो किसी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है लेकिन बच्चों में ये बीमारी आम है.
हाल ही में हुए एक सर्वे में बताया गया है कि स्कूल जाने वाले 2% बच्चे और 1% प्री-स्कूल बच्चे हर हफ्ते में कुछ रात को नींद में चलने लगते हैं.
स्लीपवॉकिंग की वजह
स्लीपवॉकिंग के ज्यादातर केस में ये बीमारी उन लोगों को होती है जो पूरी नींद नहीं ले रहे हैं. इसके अलावा स्लीपवॉकिंग फैमिली हिस्ट्री की वजह से भी होती है. यदि ये बीमारी पहले फैमिली के किसी व्यक्ति को रही हो तो परिवार के दूसरे व्यक्ति को भी स्लीपवॉकिंग बीमारी हो सकती है.
साइकोलॉजिस्ट देविका मनकानी ने गल्फ न्यूज को बताया कि नींद की कमी और खराब नींद के चलते स्लीपवॉकिंग बीमारी की सभावना बढ़ जाती है. नींद की कमी मेंटल हेल्थ पर असर डालती है और सॉइकोलॉजिकल प्रॉब्लम्स भी शुरू हो जाती हैं.
ज्यादा स्ट्रेस लेने और एंग्जाइटी से भी नींद में चलने की बीमारी होती है. नींद में चलने की अन्य वजहों में शराब पीना और कुछ दवाइयां भी शामिल हैं.
स्लीपवॉकिंग पर स्टडी
स्लीपवॉकिंग को रेम(REM) और नॉन-रेम(NON-REM) में डिवाइड किया गया है. स्लीपवॉकिंग आमतौर पर तब होती है जब व्यक्ति नॉन-रेम स्लीपिंग में होता है.
नॉन-रेम स्लीपिंग नॉर्मली रात के शुरूआती एक तिहाई हिस्से में आम है इसलिए आमतौर पर व्यक्ति शुरुआती नींद में स्लीपवॉकिंग करता है.
स्लीपवॉकिंग बीमारी खतरनाक होती है. इससे व्यक्ति की मेंटल हेल्थ पर काफी असर पड़ता है. स्लीप जर्नल में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, स्लीपवॉकिंग एक सीरियस मेडिकल बीमारी है.
जो लोग नींद में चलते हैं, जिनको रात में अच्छी नींद नहीं आती है. ऐसे लोगों को ज्यादा थकान फील होती है. इस स्टडी में ये भी पाया गया कि स्लीपवॉकिंग में कई बार खतरनाक हादसे भी हो सकते हैं.
क्या करें?
अगर व्यक्ति रात में बार-बार नींद में चल रहा है और ये बीमारी ठीक नहीं हो रही है तो उसे डॉक्टर के पास जाना चाहिए. डॉक्टर स्लीपवॉकिंग की दवाई देगा.
स्लीपवॉकिंग के ट्रीटमेंट में अलॉर्म भी शामिल होता है. यदि व्यक्ति नींद में बेड से उठे तो अलॉर्म बजने पर वो जाग जाएगा. रेगुलर एक्सरसाइज करने से आपको नींद अच्छे आएगी. अगर आप अच्छे-से नींद लेते हैं तो स्लीपवॉकिंग की संभावना कम होती है.