अस्थमा को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए 2 मई को विश्व अस्थमा दिवस (World Asthma Day) मनाया जाता है. अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जो कि फेफड़ों पर आक्रमण कर श्वसन प्रणाली (Respiratory System) को प्रभावित करती है. 1998 में बार्सिलोना स्पेन में 35 से ज्यादा देशों में पहला विश्व अस्थमा दिवस मनाया गया था. तब से लेकर हर साल 2 मई को वर्ल्ड अस्थमा डे मनाया जाता है. ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत में 3 करोड़ 50 लाख लोगों को अस्थमा है. भारत में हर साल 1 लाख 98 हजार लोगों की मौत होती है. वहीं दुनिया में हर साल 4 लाख 61 हजार लोगों की मौत अस्थमा से होती है.
विश्व अस्थमा दिवस पर पल्मोनोलॉजिस्ट यानी सांस रोग विशेषज्ञ, डॉक्टर कैलाश नाथ गुप्ता बता रहे हैं अस्थमा से जुड़ी कुछ जरूरी बातें...
कैसे होती है अस्थमा की बीमारी?
अस्थमा हमारी सांस की नलियों की बीमारी है. जब हमारी सांस की नलियों में सूजन आ जाती है... तब सांस लेने में परेशानी होने लगती है. ये सूजन किसी भी वजह से हो सकती है. जिसे हम ट्रिगर्स कहते हैं. कुछ लोगों में धूल, मोल्ड, पराग कण, पालतू जानवरों के रोएं या ठंडक के कपड़ों के कारण भी अस्थमा ट्रिगर हो सकता है. सॉयकलॉजिकल स्ट्रेस यहां तक कि वर्क स्ट्रेस भी लोगों को ट्रिगर कर सकता है. जो लोगों को सांस लेने में परेशानी का कारण बनता है. इससे अस्थमा होता है. खाना बनाने के दौरान गैस चूल्हे से निकलने वाली हानिकारक नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड गैस के कारण लोगों में अस्थमा और सांस से जुड़ी दूसरी बीमारियां होने का खतरा हो सकता है.
अस्थमा अटैक क्यों आता है?
अस्थमा से दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोग पीड़ित हैं. जब किसी भी तरह के एलर्जन हमारे शरीर पर हमला करते हैं और हमारा शरीर उस एलर्जन को झेल नहीं पाता...तो ये ट्रिगर हावी हो जाते हैं और लोगों को अस्थमा का अटैक आता है. हवा में मौजूद छोटे-छोटे तत्व, धूल के कण और जहरीली गैस के कारण अस्थमा अटैक की संभावना बढ़ जाती है. मान लीजिए प्रदूषण ज्यादा हो गया..वो भी लोगों को ट्रिगर कर सकता है. पराली जलाने से भी अस्थमा अटैक आ सकता है. बायो गैस से अस्थमा ट्रिगर होता है. एलपीजी गैस में मिलाए जाने वाले मरकैप्टन केमिकल की वजह से भी अस्थमा ट्रिगर कर सकता है. पालतू जानवरों के बालों, लार और मृत कोशिकाओं से अस्थमा की समस्या अधिक बढ़ सकती है. यदि कॉकरोच से एलर्जी है तो अस्थमा का भी अटैक आ सकता है.
किन लोगों को अस्थमा का खतरा ज्यादा हो सकता है?
अस्थमा बचपन से लेकर बुढ़ापे में कभी भी हो सकता है. प्री मेच्योर बेबीज, ओवर वेट बच्चे, जो लोग स्मोकिंग करते हैं उनमें अस्थमा का खतरा ज्यादा हो सकता है. जरूरी नहीं कि धूल मिट्टी का काम करने वाले लोगों को अस्थमा हो...यह पूरी तरह से ट्रिगर करने पर निर्भर करता है. घरों में इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक पेंट, फ्लोरिंग भी अस्थमा को ट्रिगर कर सकता है. घर को बैक्टीरिया फ्री रखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली फिनाइल से भी अस्थमा ट्रिगर हो सकता है. बहुत से पेशेंट ऐसे हैं जिन्हें घरों में जलाई जाने वाली अगरबत्ती से परेशानी होती है. कैमिकल जलाने पर निकलने वाला धुआं किसी को भी असर कर सकता है. जिन बच्चों के माता-पिता को अस्थमा होता है उनके बच्चों में अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है. किसी व्यक्ति के श्वसन तंत्र में गंभीर संक्रमण होने पर भी अस्थमा की समस्या हो सकती है.
अगर किसी को अस्थमा है तो उसे किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?
इनहेलर को हमेशा अपने साथ ही रखें जिससे इसके लक्षण विकसित होने पर ही इसे तुरंत लिया जा सके.
अस्थमा के मरीजों को पेंट से दूर रहना चाहिए.
अस्थमा के मरीज को शारीरिक गतिविधि का ध्यान रखना चाहिए.
अस्थमा के मरीज बासी खाना या तले हुए पदार्थ न खाएं. अधिक मीठा, ठण्डा पानी, दही का सेवन भी न करें.
जब भी मौसम में बदलाव होते हैं अस्थमा ट्रिगर होता है. बदलते मौसम में अपनी सेहत का ध्यान रखें.
आपको अपने लक्षणों की तरफ ध्यान देना है कि वो किस स्थिति में आपको ट्रिगर करता है और उसी के मुताबिक इलाज कराना है.
महिलाओं को अस्थमा का अधिक खतरा होता है? इसके पीछे कोई खास वजह?
महिलाओं में हॉर्मोनल बदलाव की वजह से अस्थमा का खतरा ज्यादा रहता है. टेस्टोस्टेरोन हार्मोन की कमी की वजह से महिलाओं में अस्थमा विकसित होने की संभावना दोगुनी हो जाती है. वहीं पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन होता है, वो उन्हें अस्थमा से बचाता है. माहवारी से ठीक पहले लड़कियों के हार्मोन में बदलाव होने से अस्थमा अटैक का खतरा रहता है.
अस्थमा के लक्षण
अस्थमा से बचाव के उपाय क्या हैं? और इसका इलाज किन रूपों में किया जाता है?
अस्थमा एक ऐसी बीमारी है, जिसमें सावधानी बरतना बहुत जरूरी है. अस्थमा के शिकार मरीज धूल से बचें, प्रदूषण के दौरान मास्क का इस्तेमाल करें और मौसम बदलने से पहले दवा लेना शुरू कर दें और हमेशा इन्हेलर रखें. अस्थमा के मरीज अपने ट्रिगर्स पर ध्यान देकर इससे बचाव कर सकते हैं. हमें पता होना चाहिए कि हमें किस चीज से एलर्जी है. कई लोगों की शिकायत रहती है कि उन्हें नींबू खाने से अस्थमा हो गया...जबकि इसमें सच्चाई नहीं है. ये महज धारणा है. आपको उन चीजों की लिस्ट बनानी होगी जो आपको ट्रिगर करती हैं. इन चीजों को अवॉइड करें. एनुअल फ्लू का वैक्सीन लेकर आप अस्थमा से बचाव कर सकते हैं. स्मोकिंग से बचाव करें..चाहे तो प्राइमरी स्मोकिंग हो या पैसिव स्मोकिंग. जांच नियमित तौर पर कराते रहें.
लंग फंक्शन टेस्ट के बाद डॉक्टर आपको इलाज के प्रकार बताते हैं. सभी अस्थमा पेशेंट को इनहेलर लेना चाहिए. SOS या लॉन्ग टर्म बेसिस पर इनहेलर लेना चाहिए. इनहेलर अस्थमा का सबसे बेहतरीन इलाज है. लोग इनहेलर से डरते हैं, क्योंकि इसे लेकर मिथ बहुत ज्यादा है. लोगों को लगता है कि इनहेलर की आदत लग जाएगी लेकिन ऐसा नहीं है. इनहेलर एक उपकरण होता है जिसमें दवा डाली जाती है, जो सांस के जरिए अंदर जाती है. इनहेलर को अपनी मर्जी से बीच में छोड़ना आपके लिए खतरा हो सकता है. दवा लेकर अस्थमा पर नियंत्रण पाया जा सकता है.